16 Mar 2024

मनोकामना पूर्ति हेतु माँ दुर्गा साधना.





श्री मातेश्वरी भगवती दुर्गा आदि शक्ति है,जितने भी अवतार हुए हैं सब के सब दुर्गा रूपी जननी के महा कुंड से ही अवतरित हुए हैं । पुराने ग्रंथों में कहीं भी दुर्गा को किसी देव मनुष्य या अन्य किसी शक्ति गर्भ से उत्पन्न होते हुए नहीं दर्शाया गया है ।

 यह परम शक्ति है, सृष्टि का आदि और अंत इन्हीं में निहित है,प्रत्येक युग में अवतरित महापुरुषों ने मां दुर्गा की स्तुति संपन्न की परशुराम ने भी दुर्गा स्तुति की है दत्तात्रेय ने भी मातृ उपासना की है कृष्ण, शिव, गणेश, राम से लेकर सभी के मुख से दुर्गा स्तुति प्रस्फुटित हुई है । प्रत्येक देव मनुष्य एवं जीव के अंदर मातेश्वरी अंश रूप में विराज मान है, दुर्गा तंत्र अपने आप में विराट है अनेक पद्धतियों से अनंत काल से दुर्गा उपासना संपन्न की जा रही है । मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती एक प्रमाणिक और अद्भुत ग्रंथ है, दुर्गा उपासना आत्म अनुशासन पवित्रता और शक्ति संचय करने का सर्वश्रेष्ठ विधान है,प्रत्येक साधक को प्रारंभिक गुरु दीक्षा के साथ नवार्ण मंत्र या गायत्री मंत्र अवश्य ही प्राप्त करना ही चाहिए । दुर्गा उपासना के अनेकों चमत्कारिक परिणाम सामाजिक स्तर पर भी देखने को मिलते हैं । भारतवर्ष में अन्य देशों की अपेक्षा स्त्रियों में मातृत्व की बहुलता है भारतीय स्त्रियों में संतान उत्पत्ति की क्षमता विश्व के अन्य भागों की स्त्रियों की अपेक्षा अत्यधिक है दुर्गा उपासना के कारण ही हमारे देश में वंध्यत्व संतान हीनता नपुंसकता इत्यादि जैसी विषमताएं अल्प मात्रा में देखने को मिलती है । संतानोत्पत्ति भारतवर्ष में एक सहज और सरल जीवन का लक्षण है उपासना के कारण ही नैतिक विकास होता है पाश्चात्य देशों की अपेक्षा भारत में जन्मे हुए बच्चों को पारिवारिक विघटन अपेक्षाकृत अपवाद रूप में ही देखने को मिलता है । विभिन्न परिवारिक संबंधों के कारण यहां की संतानों को मातृत्व अनेकों माध्यम से प्राप्त होता है हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत इस प्रकार है कि एक बालक को अपने जीवन में माता के अलावा दादी नानी परदादी पर नानी इत्यादि से भी विशुद्ध मातृत्व एवं प्रेम और रखरखाव प्रचुरता के साथ मिलता है । अपनत्व एवं परिवार परंपरा के विकास में मातृशक्ति ही अहम भूमिका निभाती है यह सब दिव्य उपहार है परंतु यह आसानी से मिल जाता है इसलिए हम इसके महत्व को नहीं समझते ।


सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥


मंत्र का अर्थ:
हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। हे मां तुम्हें हमारा नमस्कार है।


इस मंत्र के अर्थ के माध्यम से आपको माता के बारे में उनके महत्व को समझ सकते है । 


माँ भगवती दुर्गा उपासना निराकार को साकार करने की पद्धति है । सबको लगता हैं मेरे पास धन होना चाहिए सुख सुविधाएं होना चाहिए मेरे पास पुत्र ऐश्वर्य और पता नहीं क्या-क्या होना चाहिए, चाहिए तो स्वप्न की अवस्था को इंगित करता है इसे साकार कैसे करें? सीधी सी बात है चाह लेने से पुत्र नहीं हो जाएगा इसके लिए तो संपूर्ण व्यवस्था चाहिए संसर्ग चाहिए बीज को विकसित होने के लिए गर्भ चाहिए और गर्भ से उत्पन्न शिशु के लिए उचित देखभाल चाहिए तब कहीं जाकर चाहिए रूपी महत्वाकांक्षा साकार रूप ले सकेगी दुर्गा उपासना का यही रहस्य है । जीवन में अनंत संभावनाओं को साकार स्वरूप दुर्गा उपासना के कारण ही मिलता है दुर्गा उपासना उर्वरक शक्ति प्रदान करती है एवं जब तक उर्वरकता नहीं होगी कुछ भी साकार नहीं हो सकता कुछ नया निर्मित करना ही दुर्गा उपासना है ।


जननी ने प्रकट कर दिया तो फिर चाहे राजपुत्र हो या वन वासी सबको समान अधिकार प्राप्त है प्रकृति भेद नहीं करती भेद करती तो एकलव्य अर्जुन से भी बड़ा धनुर्धर नहीं बन पाता यही दुर्गा रहस्यम है ठीक है,आपको संस्कृत नहीं आती आपने ग्रंथ पुराण नहीं पढ़े हैं परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि आप साधना नहीं कर सकते,अगर आप दुर्गा उपासना संपन्न करते हैं, तो यह भी हो सकता है कि बड़े-बड़े पंडित और तांत्रिक मंत्रिक और प्रवचन करता भी कुछ नहीं कर पाए और आप माता के दर्शन कर लें उनका साक्षात्कार कर लें उनकी कृपा प्राप्त करलें यही विशेषता है । भगवती दुर्गा उपासना की क्यों हर दूसरा व्यक्ति दुर्गा उपासना करता है,इसमें क्या आकर्षण है निश्चित ही दुर्गा तंत्र के इतने विराट होने के पीछे दुर्गा उपासना के चमत्कारिक परिणाम ही हैं साधकों को दुर्गा उपासना में असीमानंद प्राप्त होता है । यह उपासक और माँ के बीच की बात है जब कोई पूजा पद्धति बृहद रूप से सर्वजन प्रिय होती है तो उसमें सर्वजन हित भी छिपा हुआ होता है जनता अपने आपको अनाथ महसूस करती है अपने आप को निरीह लाचार और दुर्गति में पाती है तभी तो दुर्गा उपासना की तरफ भागती है और परिणाम स्वरूप प्रेम से भरपूर मातृशक्ति उन्हें गोद में उठा लेती है । साधक को और क्या चाहिए दुर्गा उपासना से पहले व्यक्ति एकलव्य के रूप में अपने आपको पता है , अगर आप अपने आपको एकलव्य महसूस कर रहे हो तो आने वाला समय आपको दुर्गा उपासना की तरह निश्चित ही ले जाएगा| मातृशक्ति का आंचल मत छोड़ना कसकर थामे रहना बहुत से लोग आएंगे तुम्हारा हाथ छुड़ाने की कोशिश करेंगे कभी-कभी तुम्हारा मन स्वयं आंचल छोड़ने को होगा अध्यात्म की राह में यह सब होता है । अनेकों सिद्धियां चमत्कार तुम्हें आकर ललचायेगें भोग तुम्हारे मुख के पास आकर खड़ा हो जाएगा भोग कहेगा माता का आंचल छोड़ दो और अपने हाथों से मुझे पकड़ो परंतु तुम छोड़ना मत, नहीं तो पार नहीं हो पाओगे जीवन में सुख दुख ऊंच-नीच अच्छा बुरा कर्तव्य कर्म रिश्ते धन उपार्जन पत्नी बच्चे सभी आएंगे इन सब का निर्वाह करते हुए दुर्गेश्वरी के पांव कसकर पकड़े रहना तभी जाकर भवसागर को पार कर पाओगे बस यही मेरा अध्यात्म है और आज तक के आध्यात्मिक जीवन का निचोड़ है इसे कभी मत भूलना और इसे सदैव याद रखना जीवन की पूर्णता है ।


बस लक्ष्य निर्धारित करो दुर्गा साधना प्रत्येक नवरात्रि में संपन्न करो प्रकृति से मांगो प्राप्त होगा उसमें इतनी ताकत है कि असंभव भी संभव हो जाएगा,जब जीव को पंख मिल सकते हैं सींग मिल सकते हैं जल के भीतर रहने के लिए विशेष व्यवस्था मिल सकती है तो कुछ भी प्राप्त हो सकता है । जीव जहां से उत्पन्न हो रहा है उस मातृ कुंड में सब कुछ देने की व्यवस्था है और वह मातृ कुंड अपनी इस नैतिक जिम्मेदारी से बंधा हुआ है|


जो सर्वश्रेष्ठ है वही सर्वेश्वरी है और सर्वश्रेष्ठ साधक ही दुर्गा उपासना सही रूप से संपन्न कर सकते हैं । सर्वश्रेष्ठ आभूषणों से युक्त है श्रेष्ठ शक्तिपुंज है सर्वश्रेष्ठ वाहन पर आरूढ़ है अर्थात दुर्गा उपासना ही सर्वश्रेष्ठ उपासना है सर्वश्रेष्ठ उपासना से सर्वश्रेष्ठ पुरुष का जन्म होता है सर्वश्रेष्ठ पुरुष ही पुरुषोत्तम कहलाएगा विष्णु अवतार के अंतर्गत दुर्गा उपासना ही आती है राम कृष्ण नरसिंह वामन परशुराम इत्यादि सभी अपने-अपने युगों में पुरुषोत्तम कहलाए हैं, केवल दुर्गा उपासना के बल पर सभी अवतार एकलव्य की गति से प्रारंभ हुई और अंत में दुर्गा शक्ति के कारण ही पूजित हुए हैं । दुर्गा शक्ति ने ही मार्कंडेय से श्रेष्ठतम ग्रंथों की रचना करवाई दत्तात्रेय को महा अवधूत बनाया जब व्यक्ति जीवन में लुटता पीटता है दुखी होता है खंड खंड होता है तब दुर्गा उपासना ही एकमात्र उपाय बचता है जिससे कि वह पुनः प्राण प्रतिष्ठित हो जीवन जी पाता है ।


इस बार चैत्र नवरात्रि से पूर्व संपर्क करे,आपको निःशुल्क दुर्गा उपासना का विधि विधान दिया जायेगा । आप सभी से एक ही विनती है "इस जीवन को दुर्गा उपासना में लगा दीजिए, अवश्य ही कल्याण होगा", जय मातादी जी ।




आदेश......