24 Sept 2013

पीताम्बरा:-नवग्रह दोष निवारण साधना


बगलामुखी जी को ही पीताम्बरा कहा जाता है,यह साधना नवरात्रि मे कियी जाने वाली साधना है और अपना प्रभाव तुरंत ही साधक के जीवन मे देखने मिलता है,साधना की यह विशेषता है के माँ पीताम्बरा नक्षत्र स्तंभीनी है और जब नक्षत्र स्तंभीनी से हम प्रार्थना करते है तो हमारे सभी प्रकार के कार्य सहज ही सम्पन्न हो जाते है,अभी तक आपने पीताम्बरा जी की कई साधना ये सम्पन्न की होगी परंतु यह साधना आज के युग मे अत्यंत आवश्यक साधना मानी गयी है,इस साधना से जहा नवग्रह देवता के दोष कम होते वैसे ही उनकी अखंड कृपा भी प्राप्त होती है और जीवन मे कई प्रकार के लाभ होते है,इसी साधना से भाग्योदय भी संभव है॰इस साधना से कालसर्प-दोष,नक्षत्र-दोष,पितृ-दोष,………………कुंडली मे जीतने भी दोष हो उनकी समाप्ती निच्छित ही होती है...............



साधना विधि-

किसी बड़ी सी स्टील के प्लेट मे माँ बगलामुखी यंत्र हल्दी के स्याही से अनार के कलम से निर्मित करे,साधना मे पीले रंग के पुष्प,आसन,वस्त्र का ही उपयोग करे अन्य रंग का उपयोग वर्जित है,मंत्र जाप हल्दी माला या पीली हकीक माला से करना है,समय रात्रिकालीन होगा जो आपको उपयुक्त है,दिशा उत्तर/पच्छिम अति उत्तम है,साधना से पूर्व नित्य गुरु और गणेश पूजन अवश्य सम्पन्न करे और साधना के प्रथम दिवस पर संकल्प अवश्य लीजिये,यह साधना तभी की जाती है जब नवरात्रि का प्रारम्भ शनिवार/मंगलवार को होता है॰



मानसिक पीताम्बरा पूजन


श्री पीताम्बरायै नम: लं पृथ्वीव्यात्मकं गंन्ध समर्पयामी ।
श्री पीताम्बरायै नम: हं  आकाशात्मकं पुष्प समर्पयामी ।
श्री पीताम्बरायै नम: यं वार्यात्मकं धुपं समर्पयामी ।
श्री पीताम्बरायै नम: रं तेजसात्मकं दीपं समर्पयामी ।
श्री पीताम्बरायै नम: वं अमृतात्मकं नैवेद्द्य समर्पयामी ।



ध्यान


मातर्भजय मदविपक्षवदनं जिव्हाचलं कीलय,ब्राम्हीं मुद्रय वदामस्ते पदाचार्या गतीं स्तंभय ।
शत्रुनचूर्णय चूर्णयाशु गदया गौरांगी पीताम्बरे,विघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारुण्यपूर्णेक्षणे ॥


मंत्र-


॥ ॐ नमो भगवते मंगल शनि राहू केतू चतुर्भुजे पीताम्बरे अघोर रात्रि कालरात्रि मनुष्यानां सर्व मंगल तेजस राहवे शांतये शांतये केतवे क्रूर कर्मे दुर्भिक्षता विनाशाय फट स्वाहा ॥



3 माला मंत्र जाप नित्य 9 दिन तक करे और दशमी को विजय मुहूर्त पे पीली सरसो से २७० आहुतिया अग्नि मे समर्पित करे,हो सके तो किसी शिव मंदिर जाकर किसी गरीब भूके आदमी को अन्न दान करके संतुष्ट करे,माला को जल मे विसर्जित करना आवश्यक है और प्लेट मे जो यंत्र निर्माण किया था उसमे जल डालकर प्लेट धोकर वह जल घर मे ही किसी पौधे मे डाल दे..........





श्री सदगुरुजीचरनार्पणमस्तू.................. 

19 Sept 2013

सूर्य-साधना


सूर्य  साधना कैसे की जाती है ?और पितृ पक्ष में महत्वपूर्ण क्यों है?
यह एक आसान सूर्य उपासना है,पितृ ओको सूर्य लोक में स्थान प्राप्त हुआ है इसलिये सूर्य साधना  पितृ पक्ष में महत्वपूर्ण  है.……………

सूर्य का पूजन यंत्र
सूर्य यंत्र को अष्टगंध से बनी स्याही से भोजपत्र या तांबे की चौकोर प्लेट पर बनाकर पूजन के लिये स्थापित किया जाता है।


पूजा-विधि

रविवार को प्रात:काल प्राणायाम आदि प्रात:कालीन क्रियाओं से निवृत होकर "पीठ-न्यास" करना चाहिये,न्यास में विशेषता यह है कि-’ह्रदय का पूर्वादि दिशाओं के भीतर प्रभुता,विमला,सारा,समारा,परमसुखा इन आधार शक्तियों का "अयं सूर्यमण्डलायदशकलात्मने नम:" इस प्रकार से न्यास करना चाहिये।आवरण पूजा हेतु श्रीसूर्ययंत्र का चित्र बनाकर उसे रखें। पहले दिशाओं में पीठ शक्तियों की पूजा करे,फ़िर प्रभूत विमल सार रूपा आधार शक्तियों का यजन करें,अन्त मे परमादि सुखम्पीठ स्वबिम्बान्त को कल्पित करें,फ़िर केशर के मध्य में 
रां दीप्तायै नम:
रीं सूक्ष्मायै नम:
रूं जयायैनम:
रें भद्रायै नम:
रैं विभूत्यै नम:
रों विमलायै नम:
रौं अमौघाये नम:
रं विद्युतायै नम:
र: सर्व्वतोमुख्ये नम:

इस प्रकार पीठ शक्तियों का यजन करना चाहिये।
पीठ शक्तियों में दीप्ता,सूक्ष्मा,जया,भद्रा,विभूति,विमला,अमोघा,विद्युता,सर्वतोमुखी यह नौ पीठ शक्तियां मानी जाती है।

ऋष्यादि-न्यास
इसके पश्चात ऋष्यादि न्यास करना चाहिये,

शिरसिदेवभाग ऋषये नम:
मुखे गायत्रीछंदसे नम:
ह्रदि आदित्यायदेवत्यै नम:
इस मंत्र के देवभाग ऋषि गायत्री छंद तथा दृष्ट्यादृष्ट के फ़ल देने वाले आदित्य देवता हैं।


करांग-न्यास
इसके बाद करांग न्यास करना चाहिये,यथा- 
सत्यायेतोजी ज्वालामणुहं फ़ट स्वाहा अंगुष्ठाभ्याम नम:।
ब्रह्मणे तेजोज्वालामणे हुं तर्ज्जनीभ्यां स्वाहा।
विष्णवेतेजोज्वालामणे हुं मध्यमाभ्यांव्वषट।
रुद्रायतेजो ज्वालामणे हुं अनामिकाभ्यां हुम।
आग्नये तेजोज्वालामणे हुं कनिष्ठाभ्यांव्वौषट।
सर्व्वायतेजोज्वालामणे हुं करतलपृष्ठभ्यांफ़ट।

करन्यास के यही मंत्र है,एलिन उच्चारण का विशेष ध्यान देना चाहिये,हो सके तो साफ़ शुद्ध स्थान पर बैठ कर इन मंत्रों को उच्चारण के लिये पहले से ही प्रयास कर लेने से अशुद्धि का कोई भाव नही रह जाता है।


मूर्ति-न्यास
इसके बाद मूर्ति का न्यास करना चाहिये,मूर्ति के लिये जो यंत्र बनाया हुआ है उसी का न्यास होता है,
ऊँ शिरसि आदित्याय नम:।
मुखे ऐं रवये नम:।
ह्रदये ऊँ भानवे नम:।
गुह्ये इं भास्कराय नम:।
चरणयों: अं सूर्याय नम:।

निबन्ध के अनुसार न्यास की विधि इस प्रकार से है -
शिरसि ऊँ नम:।
आस्ये ऊँ घृ नम:।
कण्ठे  ऊँ णि नम:।
ह्रदि ऊँ सू नम:।
कुक्षौ ऊँ र्य नम:।
नाभौ ऊँ आ नम:।
लिंगे ऊँ दि नम:।
पादयो ऊँ त्य नम:।
का रूप बताया गया है यह श्रद्धा के ऊपर निर्भर है कि पूजा में कौन सा भाव किस व्यक्ति के अन्दर प्रवेश करता है।


ध्यान के मंत्र
ध्यान के मंत्र इस प्रकार से है,-

"रक्ताब्जयुग्माभयदान हस्तंकेयूरहारांगद कुंडलाढ्यम।
माणिक्य मोलिन्दिन नाथमीद्रेबन्धूककान्तिब्बिलसत्रिनेत्रम।

इस प्रकार से ध्यान करने के बाद मानसी पूजा करें,फ़िर कुंभ की स्थापना करेम,फ़िर गुरु की पूजा करने के बाद पीठ की पूजा करें,"ऊँ खं खखोल्काय नम:" मंत्र का मूर्ति में संकल्प करके पुनर्वार ध्यान करें,तथा आवाहनादि पंचपुष्पांजलिदान पर्यन्त विधिपूर्वक आवरण पूजा करें। 

"तारादि खंखखोल्काय मनुना मूर्ति कल्पना।साक्षिणं सर्ब्बलोकानान्तस्या मावाहयं पूजयेत॥

केसर में आग्न्यादि कोण के भीतर 

"सत्याय तेजोज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा ह्रदयाय नमं।
ब्रह्मणे तेजोज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा शिरसे स्वाहा।
विष्णवे तेजोज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा शिखाये वषट।
रुद्राय तेजोज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा कवचाय हुम।
अग्नये तेजो ज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा नेत्र त्राय वौषट।
सर्व्वाय तेजोज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा अस्त्राय फ़ट।

इस तरह से पूजा करने के बाद यंत्र के भीतर जो दल बने हुये है उनकी पूजा की जाती है।
पत्र के भीतर ब्रह्मा और अरुण की पूजा करें,तथा बाहरी भाग में ग्रहों की पूजा करें।

"ऊँ चन्द्राय नम:,ऊँ मंगलाय नम:,ऊँ बुद्धाय नम:,ऊँ बृहस्पतये नम:,ऊँ शुक्राय नम:,ऊँ शनिश्चराय नम:,ऊँ राहुवे नम:,ऊँ केतुवे नम:


सूर्य मंत्र

। ॐ  घृणि: सूर्य आदित्याय: नम:। 



शारदा तंत्र में कहा गया है कि सूर्य के मंत्र का आठ लाख जाप करना चाहिये और उसका दशांश हवन करना चाहिये। मंत्र जाप के साथ में सूर्य कवच स्तोत्र आदि का पठन भी कल्याणकारी होता है।
सूर्य का रूप अग्नि तत्व मे जाना जाता है,अग्नि तत्व के लिये केवल यन्त्र के प्रयोग से ही काम नही चलता है,इसके लिये हवन और अग्नि मन्त्रों का जाप करना भी सही होता है,सूर्य की धातु ताम्बा है,ताम्बा घर मे प्रयोग करने के लिये पानी पीने के लिये दरवाजों के हेन्डिल आदि लगवाने से घर के ऊपर सूर्य की स्थापना ईशान दिशा में यन्त्र के रूप  मे करने से कभी भी घर के अन्दर पूजा स्थान में सूर्य यन्त्र की स्थापना नही करते है अन्यथा घर के ही सदस्य एक दूसरे के प्रति राजनीति कर उठते है और घर के अन्दर एक दूसरे के प्रति विद्वेष भावना पनपने लगती है। साथ ही आंखों की बीमारिया सन्तान और पिता को कष्ट माना जाता है। घर की छत पर ताम्बे का सूर्य यन्त्र ईशान दिशा में दिवाल में या लकडी पर स्थापित कर देते है जो नैऋत्य को देखता हुआ लगाते है।

श्री सदगुरुजी चरनार्पण मस्तु………………………… 

3 Sept 2013

इच्छापूर्ति पंचमी



माँ मातंगी किसी भी इच्छा को पूर्ण करने मे सक्षम है,यह साधना २५ /०९/२०१३ के इच्छापूर्ति पंचमी के शुभ अवसर पर की जाती है,----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------सिर्फ इतनाही इससे आगे कुछ नहीं,जिन्हे साधना सम्पन्न करनी हो वह साधक कर ही लेगे............

साधना विधि-

सवेरे 6 बजे से साधना शुरू करे सिर्फ 11 माला जाप 11 दीनो तक करना है,माला कोई भी चलेगी फिर भी मूंगा माला हो तो अच्छा है,दिशा पश्चिम,आसन एवं वस्त्र लाल रंग के,प्रसामे 11 वे दिन खीर का भोग लगा दे गुरुमंत्र जाप एवं गणेश पूजन आवश्यक है,साधना रात्रिकाल मे भी 9 भी बजे के बाद कर सकते है॰

मंत्र-




॥ ॐ क्लीं हूं मातंग्यै मनोवांछितं सिद्धये फट ॥





साधना समाप्ती पर अपनी कामना शिवमंदिर जाकर सिर्फ एक बार मंत्र को 21 बार बोलकर नंदी जी के कर्ण मे बोलनी है और कुछ दक्षिणा उनके चरनोमे चढा दे.



श्री-सदगुरुजीचरनार्पणमस्तू....................