30 Oct 2015

शाबर रोगमुक्ती साधना.

मनुष्य ब्रम्हांड की एक अद्भुत रचना है,
जिसे जितना भी समजा जाए उतना
ही कम लगता है. आधुनिक विज्ञान तो
मनुष्य के कुछ ही हिस्सों तक पहोचा है और इस क्षेत्र में पूर्ण रूप से अपनी शोध को गतिशील बनाये हुवे है.

“स्वस्थ’ की परिभाषा हैं जो अपने मे स्थित हो .पर कितने हैं जो अपने मे स्थित हैं और आधुनिक युग मे जिसे भागादौड़ी करना पड़ रही हो.... अपने जीवन को बचाए
रहने के लिए ...हर पल सघर्ष रत रहना पड़ रहा हो वह कहाँ से और कैसे अपने मे स्थित हो जाए .
“जीवेत शरद शतम “ अब सिर्फ सुनने
की बात हैं ऋग्वेद मे यह आशीर्वाद कहा हैं पर क्या इसका मतलब किसी भी तरफ से खींच-खांच करके विस्तर मे पड़े पड़े १०० वर्ष का जीवन ..पर नही जो स्वस्थ हो
और बलशाली हो ऐसा जीवन ..जो
उमंग् युक्त हो ...और जो भले ही ७० का हो गया हो पर उस मे अभी भी जीवन उर्जा
हैं वह हैं नौजवान और जो २० वर्ष का हो पर जीवन से हार रहा हो वही हैं वृद्ध .
पर यह बात तो उमंग की हुयी पर जब शरीर ही रोग ग्रस्त हैं तब ...आपकी इच्छा शक्ति भी कमजोर हो जाती हैं क्योंकि
कहीं न कहीं इच्छशक्ति का भी लेना देना इसी भौतिक शरीर से तो हैं .
हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने भी इसी दिशा में शोध कार्य किया था और शरीर से सबंधित कई प्रकार के गोपनीय तथ्यों के बारे में अपनी तपस्या से पता लगाया था. मनुष्य शरीर एक अत्यधिक जटिल रचना है, यह ठीक एक यंत्र की तरह है जिसमे कई प्रकार के पुर्जे होते है और कोई भी एक पुर्जा खराब होने पर पूरा यंत्र खराब हो जाता है. हमारा शरीर स्वस्थ हो तब हमारा जीवन स्वस्थ है और हमारा
शरीर अपनी गितिशिलता के अनुरूप
कार्यशील रहेगा. लेकिन जब यह कार्य में
रुकावट आती है तो कई प्रकार की
समस्याओ का सामना करना पड़ता है. ये रुकावट को या फिर यह गतिशीलता में शरीर को जो बाधा प्राप्त हो रही है उसे ही रोग कहते है. रोग मनुष्य को मात्र बाह्य या
शारीरिक रूप से नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी तोड़ देता है तथा जीवन के क्रियाकलाप में विक्षेप का प्रसार करने लगता है. आज के युग की चिकित्सा
पध्धति मात्र बाह्य लक्षणों की तरफ ध्यान
देती है लेकिन मानसिक रूप से जो क्षति
पहोचाती है तथा जो सूक्ष्म भाग और
शरीर के अंदर के अन्य शरीर तथा तत्वों पर जो क्षति होती है उस की क्षति पूर्ती करना अत्यधिक कठिन कार्य होता है और इसी लिए कई बार कई प्रकार के रोग उत्तम चिकित्सा लेने पर भी पूरी तरह मिटते नहीं और कई बार होते है. तंत्र क्षेत्र के कई अद्भूत विधान है जिसके माध्यम से रोगों से मुक्ति पा कर एक सम्पूर्ण जीवन को जिया जा सकता है. ऐसे दुर्लभ विधानों
के माध्यम से जहा एक और रोग और रोगजन्य कष्ट और पीड़ा से मुक्ति मिलती है,वहीँ दूसरी और जो क्षति हुई है
उसकी भी पूर्ति होती है जिससे भविष्य में वह रोग के लक्षण नहीं होते है और समस्त रोगो से मुक्ती प्राप्त होती है.

शाबर मंत्रो से शीघ्र लाभ प्राप्त होता है,आज जो मंत्र दे रहा हू इससे समस्त प्रकार की रोग-पीडा हमेशा के लिये दुर हो जाती है.यहा तक की इस मंत्र से कैन्सर,टि.बी.,जोडो का दर्द,वात-पित्त,शुगर जैसे गंभीर रोग भी ठिक हो जाते है तो फिर छोटि-छोटि बिमारिया तो जल्दी ठिक होती है.




मंत्र:-

ll ओम नमो केतकी ज्वालामुखी काली,दो वर-रोग पीडा दूर कर,सात समुद्र पार कर,आदेश कामरू देश कामाख्या माई,हाडी दासी चंडी की दुहाई ll




विधि-विधान:-

यह शाबर मंत्र है इसलिये सफलता तो मिलती है,सर्वप्रथम किसी लकडे के बाजोट पर लाल वस्त्र स्थापित करे और उस पर महाकाली जी का चित्र रखीये.माँ का सामान्य पुजन करे और गुरू जी गणेश जी का भी पुजन भी कर लिजिये.मंत्र का 10,000 बार जाप करना आवश्यक है.यह साधना मंगलवार से या किसी भी नवरात्री से प्रारंभ करे.यह साधना 11 दिन की है जिसमे 10 दिन 10 माला जाप रुद्राक्ष माला से करना है और 11 वे दिन घी की 108 आहुती हवन मे देना जरुरी है.आसन-वस्त्र लाल रंग के हो और उत्तर दिशा साधना हेतु उत्तम है.इस तरहा से विधि-विधान संपन्न होने के बाद मंत्र सिद्धी होती है.जब भी आपको मंत्र से लाभ उठाना हो तब आप किसी भी रोगी को ठिक करने हेतु "एक ग्लास शुद्ध जल"लेकर उसपर सात बार मंत्र बोलकर जल पे तीन फुंक लगाये,फिर वह जल रोगी को पिलाये तो 30-40 मिनिट रोगी आराम मिलना प्रारंभ हो जाता है और यह क्रिया कुछ दिन नित्य करने से 7-8 दिन के अंदर पूर्णता: स्वस्थ हो जाता है,यह मेरा स्वयम का आजतक का अनुभव रहा है.जब हम मंत्र सिद्धी करते है तब हमारे स्वयम के रोग भी समाप्त होते है.इस मंत्र को आप बभुत पर पढकर भी रोगी को दे सकते है या मोर पंख से मंत्र बोलकर झाडा कर सकते है.परंतु इस विद्या से आप सामाजिक कल्याण करे और धनप्राप्ति हेतु करेगे तो आपकी सिद्धी समाप्त हो जायेगी ये मेरी गारंटि है.






आदेश......