24 Oct 2015

कामाख्या मंत्र और तंत्र.

कामाख्या-मन्त्र का महत्त्व ‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार ‘सिद्धि की हानि’ एवं
‘विघ्न-निवारण’ हेतु ‘कामाख्या-मन्त्र’ का जप आवश्यक है। सभी साधकों को सभी देवताओं के उपासकों को ‘कामाख्या-मन्त्र की साधना’ अवश्य करनी चाहिए। शक्ति के उपासकों के लिए ‘कामाख्या-मन्त्र’ की साधना अत्यन्त आवश्यक है। यह ‘कामाख्या-मन्त्र’ कल्प-वृक्ष के समान है। सभी साधकों को एक, दो या चार बार इसका साधना एक वर्ष मे अवश्य करना चाहिए। इस मन्त्र की साधना में चक्रादि-शोधन या कलादि-शोधन की आवश्यकता नहीं है। इसकी साधना से सभी विघ्न दूर होते हैं और शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त
होती है।
‘कामाख्या-मन्त्र’ का विनियोग, ऋष्यादि-न्यास उक्त ‘कामाख्या-मन्त्र’ के विनियोग, ऋष्यादि-न्यासादि इस प्रकार हैं-


।। विनियोग ।।

ॐ अस्य कामाख्या-मन्त्रस्य श्रीअक्षोभ्य
ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द: , श्रीकामाख्या देवता, सर्व- सिद्धि-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोग:।
।। ऋष्यादि-न्यास ।।
श्रीअक्षोभ्य-ऋषये नम: शिरसि,
अनुष्टुप्-छन्दसे नम: मुखे,
श्रीकामाख्या-देवतायै नम: हृदि,
सर्व- सिद्धि-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वाङ्गे।



।। कर-न्यास ।।


त्रां अंगुष्ठाभ्यां नम:,
त्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा,
त्रूं मध्यमाभ्यां वषट्,
त्रैं अनामिकाभ्यां हुम्,
त्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्,
त्र: करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।



।। अङ्ग-न्यास ।।

त्रां हृदयाय नम:,
त्रीं शिरसे स्वाहा,
त्रूं शिखायै वषट्,
त्रैं कवचाय हुम्,
त्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्,
त्र: अस्त्राय फट्।



कामाख्या देवी का ध्यान:-
उक्त प्रकार न्यासादि करने के बाद भगवती कामाख्या का निम्न प्रकार से ध्यान करना चाहिए-
भगवती कामाख्या लाल वस्त्र-धारिणी, द्वि-भूजा, सिन्दूर-तिलक लगाए हैं।भगवती कामाख्या निर्मल चन्द्र के समान उज्ज्वल एवं कमल के समान सुन्दर मुखवाली हैं।भगवती कामाख्या स्वर्णादि के बने मणि-माणिक्य से जटित आभूषणों से शोभित हैं। भगवती कामाख्या विविध रत्नों से शोभित सिंहासन पर बैठी हुई हैं। भगवती कामाख्या मन्द-मन्द मुस्करा रही हैं। भगवती कामाख्या उन्नत पयोधरोंवाली हैं। कृष्ण-वर्णा भगवती कामाख्या के बड़े-बड़े नेत्र हैं। भगवती कामाख्या विद्याओं द्वारा घिरी हुई हैं। डाकिनी-योगिनी द्वारा शोभायमान हैं। सुन्दर स्त्रियों से विभूषित हैं। विविध सुगन्धों से सु-वासित हैं। हाथों में ताम्बूल लिए नायिकाओं द्वारा सु-शोभिता हैं।भगवती कामाख्या समस्त सिंह-समूहों द्वारा वन्दिता हैं। भगवती कामाख्या त्रि-नेत्रा हैं। भगवती के अमृत-मय वचनों को सुनने के लिए उत्सुका सरस्वती और लक्ष्मी से युक्ता देवी कामाख्या समस्त गुणों से सम्पन्ना,
असीम दया-मयी एवं मङ्गल- रूपिणी हैं।





उक्त प्रकार से ध्यान कर कामाख्या देवी
की पूजा कर कामाख्या मन्त्र का ‘जप’ करना चाहिए।'जप’ के बाद निम्न प्रकार से ‘प्रार्थना’ करनी चाहिए।

कामाख्ये काम-सम्पन्ने, कामेश्वरि! हर-प्रिये!
कामनां देहि मे नित्यं, कामेश्वरि! नमोऽस्तु ते।।

कामदे काम-रूपस्थे, सुभगे सुर-सेविते!
करोमि दर्शनं देव्या:, सर्व-कामार्थ-सिद्धये।।




अर्थात् हे कामाख्या देवि! कामना पूर्ण करनेवाली,कामना की अधिष्ठात्री, शिव
की प्रिये! मुझे सदा शुभ कामनाएँ दो और
मेरी कामनाओं को सिद्ध करो। हे कामना
देनेवाली, कामना के रूप में ही स्थित
रहनेवाली, सुन्दरी और देव-गणों से सेविता
देवि! सभी कामनाओं की सिद्धि के लिए मैं
आपके दर्शन करता हूँ।



कामाख्या देवी का २२ अक्षर का मन्त्र ‘कामाख्या तन्त्र’ के चतुर्थ पटल में कामाख्या देवी का २२ अक्षर का मन्त्र उल्लिखित है-




मंत्र:-

ll त्रीं त्रीं त्रीं हूँ हूँ  स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये प्रसीद  स्त्रीं स्त्रीं हूँ हूँ त्रीं त्रीं त्रीं स्वाहा ll



उक्त मन्त्र महा-पापों को नष्ट करनेवाला, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष देनेवाला है। इसके ‘जप’ से साधक साक्षात् देवी-स्वरूप बन जाता है। इस मन्त्र का स्मरण करते ही
सभी विघ्न नष्ट हो जाते हैं।इस मन्त्र के ऋष्यादि ‘त्र्यक्षर मन्त्र’ (त्रीं त्रीं त्रीं) के समान हैं।'ध्यान’ इस प्रकार किया जाता हैमैं योनि-रूपा भवानी का ध्यान करता हूँ, जो कलि-काल के पापों का नाश करती हैं और समस्त भोग-विलास के उल्लास से पूर्ण करती हैं।मैं अत्यन्त सुन्दर केशवाली, हँस-मुखी, त्रि-नेत्रा, सुन्दर कान्तिवाली,
रेशमी वस्त्रों से प्रकाशमाना, अभय और वर-मुद्राओंसे युक्त, रत्न-जटित आभूषणों से भव्य, देव-वृक्ष केनीचे पीठ पर रत्न-जटित सिंहासन पर विराजमाना, ब्रह्मा-विष्णु-महेश द्वारा वन्दिता, बुद्धि-वृद्धि-स्वरूपा, काम-देव के मनो-मोहक बाण के समान अत्यन्तकमनीया, सभी कामनाओं को पूर्णकरनेवाली भवानी का भजन करता हूँ।
  





'शक्ति’ का महत्त्व:-
‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार साधना और जपादि का मूल ‘शक्ति’ है। ‘शक्ति’ ही जीवन का मूल है और वही ‘इह-लोक’ एवं ‘परलोक’ का मूल है। धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष का मूल भी ‘शक्ति’ ही है। ‘शक्ति’ को जो कुछ दिया जाता है, वह देवी को अर्पीत होता है। जिन उद्देश्यों से दिया जाता
है, वे सभी सफल होते हैं। ‘शक्ति’ के बिना कलि-युग में जो अर्चन करता या करवाता है, वह नरक में जाता है।


गुरु-तत्त्व:-
‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार सदा-शिव ही गुरुदेव हैं। महा-काली से युक्त वे देव सच्चिदानन्द-स्वरूप हैं। मनुष्य-गुरु ‘गुरुदेव’ नहीं हैं, उनकी भावना मात्र हैं। मन्त्र देनेवाला अपने शिरस्थ कमल में गुरु का जो ध्यान करता है, उसी ध्यान को वह शिष्य के शिर में उपदिष्ट करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मनुष्य में ‘गुरुदेव’ की भावना रखना मूर्खता है। मनुष्य-‘गुरु’
मात्र मार्ग दिखानेवाला है, स्वयं ‘गुरु-देव’ नहीं हैं।


ज्ञान की श्रेष्ठता:-
‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार ‘ज्ञान’ से श्रेष्ठ कुछ नहीं है। ‘ज्ञान’ के लिए ही देवता
की उपासना की जाती है।

मुक्ति-तत्त्व:-
‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार ‘मुक्ति’ चार प्रकार की है-
१. सालोक्य,
२. सारूप्य,
३. सायुज्य
और
४. निर्वाण।



‘सालोक्य मुक्ति’ में इष्ट-देवता के लोक में निवास करने का सौभाग्य मिलता है, ‘सारूप्य’ में साधक इष्ट-देवता-जैसा ही बन जाता है, सायुज्य में वह इष्ट-देव की ‘कला’ से युक्त हो जाता है और ‘निर्वाण मुक्ति’ में मन का इष्ट में लय हो जाता है।
मुख्यत: ‘आसुरी व्यक्तित्व’ का लोप होना
ही ‘मुक्ति’ है। ‘मुक्ति देवी’— सनातनी हैं, विश्व-वन्द्या हैं, सच्चिदानन्द-रूपिणी पराऽम्बा हैं और सभी की अभीष्ट कामनाओं की पूर्ति करती हैं।



मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण साधना है,इस साधना मे साधक "कामरुप यंत्र" और "काली हकिक" माला जो रात्री सुक्त के जाप से प्राण-प्रतिष्ठीत हो इनका उपयोग साधना मे करे तो शीघ्र लाभ प्राप्त होता है अन्यथा आप बिना सामग्री के भी साधना कर सकते है.इस साधना की विशेष सामग्री अगर आपको चाहिये तो 1150/-रुपये मे आप प्राप्त कर सकते है.



आदेश.....