5 Oct 2015

भूत प्रत्यक्षिकरण साधना.

जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत
ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में
अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है।जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है ।
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती
है।इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और
उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि
कहा जाता है।हिन्दू धर्म में गति और कर्म
अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन
किया है,आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।
इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे
अलग नामों से जाना जाता है। माना
गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती
मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।
84 लाख योनियां पशुयोनि,पक्षीयोनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं।आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते।यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है।बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं।
पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण
करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों
का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।
पृथ्वी पर अनिष्ट शक्तियों का अस्तित्व
विभिन्न स्थानों पर होता है । जीवित और निर्जीव वस्तुओं में वे अपने लिए केंद्र बना सकती हैं । जहां वे अपनी काली शक्ति संग्रहित कर सकती हैं, उसे केंद्र कहते
है । केंद्र उनके लिए प्रवेश करने का स्थान
होता है तथा वे वहां से काली शक्ति ग्रहण अथवा प्रक्षेपित कर सकती हैं । अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)अपने लिए साधारणतः मनुष्य, वृक्ष, घर, बिजली के उपकरण आदि में केंद्र बनाती हैं। जब वे मनुष्य में अपने लिए केंद्र बनाती हैं, तब उनका उद्देश्य होता है-खाना-पीना, धूम्रपान करना तथा लैंगिक वासनाओं की पूर्ति करना अथवा लेन-देन खाता पूर्ण करना । मूलभूत वायुतत्त्व से बनने के कारण सूक्ष्म-दृष्टि के बिना उन्हें देख पाना संभव नहीं होता है इसलिये आज मै यहा अदृश्य शक्तीयो को देखने का विधान दे रहा हू।
कुत्ते, घोडे, उल्लू तथा कौए जैसे पक्षी तथा कुछ प्राणी अनिष्ट शक्तियों के अस्तित्व के संदर्भ में अधिक संवेदनशील होते हैं । रातमें जब कुत्तों का बिना किसी दृश्य कारण से अचानक भौंकना तथा रोना उनके द्वारा अनिष्ट शक्तियों के अस्तित्व को समझ पाने के कारण होता है ।
भुतोका अस्तित्व है यह बात आज अमेरिका वाले भी मानते है और हमारे देश मे तो यह मान्यता पहीले से ही है ।




साधना विधी:-

सामग्री:-भूतकेशी नामक जडि से निर्मित काजल,काली हकिक माला और भूत रक्षा कवच । विशेषता यह सामग्री आवश्यक है,बिना सामग्री के साधना करने पर सफलता प्राप्त करना मुश्किल है ।

भूतकेशी:-यही जडि दुर्लभ है और हिमाचल प्रदेश के जंगल मे पायी जाती है,इसको घी मे पकाकर अग्नी के माध्यम से काजल निर्मित होता है ।इस जडि के काजल से अदृश्य शाक्तिया आसानी से देख सकते है क्युके इस जडि मे भूत का अस्तित्व सबसे ज्यादा होता है ।यह दिव्य काजल सिर्फ हमारे पास ही मिलता है ।

काली हकिक माला:-यह तो आज कल मार्केट मे आसानी से मिल जाती है ।

भूत रक्षा कवच:-यह जरुरी है अन्यथा भूत-प्रेत साधक पर हमला करते है तो इसे पहेनना आवश्यक है और आप सुरक्षित रहेगे.बिना सुरक्षा कवच के साधना करना नुकसान दायक होता है ।

यह साधना तीन दिवसिय है और इसे अमावस्या के तीन दिन पूर्व शुरूवात करना होता है,आखरी दिन अमावस्या होना चाहिये ।आसन-वस्त्र-काले रंग के हो और दक्षिण दिशा के तरफ मुख होना चाहिये ।
साधना एक बंद कमरे मे करनी है जहा किसी भी प्रकार की कोई भी रोशनी ना हो सिर्फ तीव्र सुगंध युक्त अगरबत्ती जला सकते है ।साधना मे तीसरे दिन भयानक दृश्य आखो के सामने प्रकट होते है जिसे देखकर डर लगता है परंतु रक्षा कवच पहेनने के बाद डरना नही चाहिये ।
तीसरे दिन भूत प्रत्यक्ष हो तो उससे कोई भी तीन प्रकार के वचन माँगे,जिससे भूत आपका प्रत्येक कार्य पूर्ण कर दे ।


मंत्र-

ll ह्रीं क्रीं भुताय वश्यै फट ll

(hreem kreem bhootaay vashyai phat)

यह मंत्र दिखने मे छोटा है पर इसका प्रभाव तीव्र है ।यह मंत्र गुरू गोरखनाथ प्रणीत तंत्र से है जो शीघ्र सिद्धीप्रदायक है ।जब भूत सिद्धी होती है तो साधक भुतो से मनचाहा काम करवा सकता है ।आकर्षण-वशीकरण जैसे काम भुतो के लिये छोटे काम है तो सोचिये भूत क्या-क्या कर सकते होगे?इसलिये जीवन मे भुतसिद्धी महत्वपूर्ण है ।



(नोट:-कमजोर दिल वाले लोग यह साधना करने का साहस ना करे)

आदेश......