14 Nov 2015

रुद्र भैरव साधना.

पुराणों में भैरव का उल्लेख.

तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है -असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव। कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी १ . महाभैरव, २ . संहार भैरव, ३ . असितांग भैरव, ४ . रुद्र भैरव, ५ . कालभैरव, ६ . क्रोध भैरव, ७ . ताम्रचूड़ भैरव तथा ८ . चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है.

"भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया ।।"


भैरव को शिवजी का अंश अवतार माना गया है। रूद्राष्टाध्याय तथा भैरव तंत्र से इस तथ्य की पुष्टि होती है। भैरव जी का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें वे त्रिशूल, खड़ग, खप्पर तथा नरमुंड धारण किए हुए हैं। उनका वाहन श्वान यानी कुत्ता है। भैरव श्मशानवासी हैं। ये भूत-प्रेत, योगिनियों के स्वामी हैं। भक्तों पर कृपावान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते हैं। भगवान भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति भैरव जयंती को अथवा किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव का व्रत रखता है, पूजन या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है। श्री भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं।





विधी-विधान:-

साधना हेतु किसि भी प्रकार का शिवलिंग और रुद्राक्ष माला जरुरी है। साधना शनीवार से शुरुवात करे और आसन वस्त्र काले रंग के हो,दिशा दक्षिण उपयुक्त है। नित्य मंत्र का 11 माला जाप 11 दिनो तक करने से सफलता मिलता है।



विनियोग :-

l अस्य श्रीरूद्र-भैरव मंत्रस्य महामाया सहितं श्रीमन्नारायण ऋषि:,सदाशिव महेश्वर-मृत्युंजय-रुद्रो-देवता,विराट छन्द:,श्रीं ह्रीं क्ली महा महेश्वर बीजं,ह्रीं गौरी शक्ति:,रं ॐकारस्य दुर्गा कीलकं,मम रूद्र-भैरव कृपा प्रसाद प्राप्तत्यर्थे मंत्र जपे विनियोग:।





ऋषि आदि न्यास :-

न्यास मे जहा शरिर के भागो का नाम दिया है वहा मंत्रों  को बोलते हुये शरिर को स्पर्श करे.

ॐ महामाया सहितं श्रीमन्नारायण ऋषये नम:-शिरसिl

सदाशिव -महेश्वर -मृत्युंजयरुद्रो देवताये नम:-हृदये l

विराट छन्दसे नम:-मुखे l

श्रीं ह्रीं कलीम महा महेश्वर बीजाय नम:-नाभयो l

रं ॐकारस्य कीलकाय नम:-गुह्ये l

मम रूद्र-भैरव कृपा प्रसाद प्राप्तत्यर्थे मंत्र जपे विनियोगाय नम:-सर्वांगे ll



करन्यास:-

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने ॐ ह्रीं रां सर्व शक्ति धाम्ने ईशानात्मने अंगुष्ठाभ्यां नम: l

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने नं रीं नित्य -
तृप्ति धाम्ने तत्पुरुषात्मने तर्जिनीभ्यां स्वाहा l

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने मं रुं अनादि शक्ति धाम्ने अघोरात्मने मध्यमाभ्यां वषट l

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने शिं रैं स्वतंत्र
-शक्ति धाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्यां हुम् l

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने वां रौं अलुप्त शक्ति धाम्ने सद्योजात्मने कनिष्ठिकाभ्यां वोषट l

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने ॐ यं र:
अनादि शक्ति धाम्ने सर्वात्मने करतल कर पृष्ठाभ्यां फट ll

न्यास के पश्चात् ”श्री रूद्र-भैरव” का ध्यान करे-




ध्यान :-
वज्र दंष्ट्रम त्रिनयनं काल कंठमरिन्दम l
सहस्रकरमप्युग्रम वन्दे शम्भु उमा पतिम ll





मंत्र :-

ll ॐ नमो भगवते रुद्राय आगच्छ आगच्छ प्रवेश्य प्रवेश्य सर्व-शत्रुंनाशय-नाशय धनु: धनु: पर मंत्रान आकर्षय-आकर्षय स्वाहा ll




किसी भी साधना से पूर्व इस मंत्र विधि-पूर्वक जप करने से साधक की अन्य साधना का फल सुरक्षित रहता है l यहाँ तक की अन्य की विद्या का आकर्षण भी कर लेता है l







आदेश .....