23 Dec 2015

शिव शाबर मंत्र सिद्धि,भाग-1.

भोलेशंकर राम नाम के रसिक हैं। शमशान घाट एवं वहां जलने वाले मुर्दे की भस्म को शरीर में धारण करने वाले भोलेशंकर पूर्ण निर्विकारी हैं। उन्हें विकारी मनुष्य पसंद नहीं हैं। जब मनुष्य की मौत हो जाती है और मुर्दे को जलाया जाता है तब जलने के बाद मुर्दे की भस्म में किसी भी प्रकार का विकार नहीं रहता। मनुष्य के सारे अहंकार तन के साथ जलकर भस्म हो जाते हैं। तब भोलेनाथ उस निर्विकारी भस्म को अपने तन में लगाते हैं।

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त जल और बेलपत्र से शिव जी का अभिषेक करते हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण है जिसका उल्लेख पुराणों में किया गया है। शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि सागर मंथन के समय जब हालाहल नाम का विष निकलने लग तब विष के प्रभाव से सभी देवता एवं जीव-जंतु व्याकुल होने लगे। ऐसे समय में भगवान शिव ने विष को अपनी अंजुली में लेकर पी लिया। विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए शिव जी ने इसे अपनी कंठ में रख लिया इससे शिव जी का कंठ नीला पड़ गया और शिव जी नीलकंठ कहलाने लगे। लेकिन विष के प्रभाव से शिव जी का मस्तिष्क गर्म हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिव जी के मस्तिष्क पर जल उड़लेना शुरू किया जिससे मस्तिष्क की गर्मी कम हुई। बेल के पत्तों की तासीर भी ठंढ़ी होती है इसलिए शिव जी को बेलपत्र भी चढ़ाया गया। इसी समय से शिव जी की पूजा जल और बेलपत्र से शुरू हो गयी। बेलपत्र और जल से शिव जी का मस्तिष्क शीतल रहता और उन्हें शांति मिलती है। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिव जी प्रसन्न होते हैं।

शिव शक्ति रहस्य राज शिवम शिव शक्ति जब कृपा करते हैं, जीव सभी पाशों से मुक्त होकर सभी धर्मों, सभी रहस्यों को देख व समझ लेता है। कहीं विरोध नहीं, किसी का अपमान नहीं, कोई धर्म छोटा नहीं, सभी देव-देवी पूजनीय हैं। शिव इस सृष्टि का परम सत्य हैं, और शिव सुंदर हैं। उनकी आराध्य त्रिपुर सुंदरी ही माता भुवनेश्वरी हैं। शिव ‘मृत्युंजय’ हैं, तो शक्ति काली, बगला, तारा, भुवनेश्वरी हैं। निराकार ब्रह्म जब साकार रूप धारण करता है, जब वह महाशून्य से प्रकट होकर सगुण रूप धारण करता है, तो शिव कहलाता है और उसकी शक्ति मां भगवती ही मूल आदि शक्ति के नाम से विख्यात है। जीव कई पाशों में बंधा है, वह आत्मदर्शन की चाह रखता है, आत्मा-परमात्मा के दर्शन की चाह रखता है, शिव और शक्ति साकार रूप धारण कर जीव का कल्याण करते हैं, उसकी अभिलाषा पूरी करते हैं।

शिव और शक्ति का संबंध

शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पुरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।

शिव कारण हैं; शक्ति कारक।
शिव संकल्प करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी।
शक्ति जागृत अवस्था हैं; शिव सुशुप्तावस्था।
शक्ति मस्तिष्क हैं; शिव हृदय।
शिव ब्रह्मा हैं; शक्ति सरस्वती।
शिव विष्णु हैं; शक्त्ति लक्ष्मी।
शिव महादेव हैं; शक्ति पार्वती।
शिव रुद्र हैं; शक्ति महाकाली।

शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहरे के सामान हैं। लहर है जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध।



शिव ही सर्वस्य :

शिव आदि देव है। वे महादेव हैं, सभी देवों में सर्वोच्च और महानतमें शिव को ऋग्वेद में रुद्र कहा गया है। पुराणों में उन्हें महादेव के रूप में स्वीकार किया गया है। श्वेता श्वतरोपनिषद् के अनुसार ‘सृष्टि के आदिकाल में जब सर्वत्र अंधकार ही अंधकार था। न दिन न रात्रि, न सत् न असत् तब केवल निर्विकार शिव (रुद्र) ही थे।’ शिव पुराण में इसी तथ्य को इन शब्दों में व्यक्त किया गया है -

‘एक एवं तदा रुद्रो न द्वितीयोऽस्नि कश्चन’ सृष्टि के आरम्भ में एक ही रुद्र देव विद्यमान रहते हैं, दूसरा कोई नहीं होता। वे ही इस जगत की सृष्टि करते हैं, इसकी रक्षा करते हैं और अंत में इसका संहार करते हैं। ‘रु’ का अर्थ है-दुःख तथा ‘द्र’ का अर्थ है-द्रवित करना या हटाना अर्थात् दुःख को हरने (हटाने) वाला। शिव की सत्ता सर्वव्यापी है। प्रत्येक व्यक्ति में आत्म-रूप में शिव का निवास है-

‘अहं शिवः शिवश्चार्य, त्वं चापि शिव एव हि।
सर्व शिवमयं ब्रह्म, शिवात्परं न किञचन।।

में शिव, तू शिव सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है- ‘शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्।

शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मेंगल, परम कल्याण।
सामान्यतः ब्रहमा को सृष्टि का रचयिता, विष्णु को पालक और शिव को संहारक माना जाता है। परन्तु मूलतः शक्ति तो एक ही है, जो तीन अलग-अलग रूपों में अलग-अलग कार्य करती है। वह मूल शक्ति शिव ही हैं। स्कंद पुराण में कहा गया है-ब्रह्मा, विष्णु, शंकर (त्रिमूर्ति) की उत्पत्ति माहेश्वर अंश से ही होती है। मूल रूप में शिव ही कर्त्ता, भर्ता तथा हर्ता हैं। सृष्टि का आदि कारण शिव है। शिव ही ब्रह्म हैं। ब्रहम की परिभाषा है - ये भूत जिससे पैदा होते हैं, जन्म पाकर जिसके कारण जीवित रहते हैं और नाश होते हुए जिसमें प्रविष्ट हो जाते हैं, वही ब्रह्म है। यह परिभाषा शिव की परिभाषा है। ध्यान रहे जिसे हम शंकर कहते हैं - वह एक देवयोनि है जैसे ब्रहमा एवं विष्णु हैं। उसी प्रकार। शंकर शिव के ही अंश हैं। पार्वती, गणेश, कार्तिकेय आदि के परिवार वाले देवता का नाम शंकर है। शिव आदि तत्त्व है, वह ब्रह्म है, वह अखण्ड, अभेद्य, अच्छेद्य, निराकार, निर्गुण तत्त्व है। वह अपरिभाषेय है, वह नेति-नेति है।
शिव की स्वतंत्र निजी शक्ति के दो शाश्वत रूप उसकी प्रापंचिक अभिव्यक्ति में प्रतीत होते हैं, जिन्हें विद्या तथा अविद्या कह सकते हैं। इस प्रापंचिक ब्रहमाण्ड व्यवस्था में परमात्मा के पारमार्थिक आनंदमय स्वरूप को प्रकट करने वाली शक्ति विद्या कहलाती है तथा परमात्मा की प्रापंचिक विभिन्ननाओं के आवरण से अवगुंठित शक्ति अविद्या कहलाती है। परमात्मा की अभिन्न शक्ति के ही दोनों रूप हैं। नाना आकारों में उसकी ही अभिव्यक्ति है। यह अभिव्यक्ति उसकी शक्ति का विलास है, लीला है। यह ब्रह्माण्ड परमात्मा की निजी शक्ति का व्यावहारिक पक्ष है। पारमार्थिक पक्ष में परमात्मा पूर्णतया एक है-एकं द्वितीयो नास्ति।’ उसके चरम सत् और चित् में कोई भेद नहीं, उसके स्वभाव में कोई द्वैत एवं सापेक्षिता नहीं। यहां वह चरम अनुभव की अवस्था में है जिसमें स्वनिर्मित ज्ञाता-ज्ञेय का कोई भेद नहीं है। परमात्मा का यह स्वरूप प्रकाश स्वरूप है।

परमात्मा की शक्ति का विमर्श पक्ष उसे व्यावहारिक स्तर पर आत्म-चेतन बना देता है। अतः विमर्श-शक्ति शिव की आत्म चेतनता पर आत्मोद्घाटन की शक्ति मानी जाती है। यहां परमात्मा ज्ञाता ज्ञेय के रूप में अपने आपको विभाजित कर लेता है। परमात्मा की यह वस्तुगत आत्म-चेतना है जो विभिन्न स्तरों के भोक्ता या भोग्य पदार्थों के रूप में दृष्टिगोचर होती है। काल, दिक्, कारणत्व एवं सापेक्षिकता चारों परमात्मा के वस्तुगत रूप हैं। परमात्मा की विमर्श शक्ति को माया शक्ति भी कहा जाता है।

इसी तथ्य को गोरख ने ‘सिद्ध सिद्धान्त-पद्धति’ में इस प्रकार वर्णित किया है- ‘शिवस्याभ्यन्तरे शक्तिः शक्तेरभ्यन्तरेशिवः।’ शक्ति शिव में निहित है शिव शक्ति में निहित हैं। चन्द्र और चन्द्रिका के समान दोनों अभिन्न हैं। शिव को शक्ति की आत्मा कहा जा सकता है और शक्ति को शिव का शरीर। शिव को शक्ति का पारमार्थिक रूप कहा जा सकता है और शक्ति को शिव का प्रापंचिक रूप। शिव से भिन्न और स्वतंत्र शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है और शक्ति की अवहेलना की जाए तो शिव का आत्म प्रकाशन संभव नहीं है। शक्ति के कारण ही शिव स्वयं सर्व शक्ति मान, सर्वज्ञानी, सर्वानंद, सगुण परमेंश्वर, जगत का सर्जक, पालक और भोक्ता बन जाता है। निज शक्ति से रहित शिव कोई भी कार्य नहीं कर सकते, किन्तु निज शक्ति सहित वे समस्त स्तरों के अस्तित्वों के सर्जक एवं प्रकाशक बन जाते हैं। शिव एक साथ स्रष्टा एवं सृष्टि आधार और आधेय आत्मा और शरीर हैं। शक्ति एक को अनेक करती है और पुनः अनेक को एक में मिला देती है। शिव का विस्तार सृष्टि है, शिव का संकुचन प्रलय है। अतः शिव के निर्गुण एवं सगुण दोनों ही स्वरूप स्वीकार्य हैं।

जो सृष्टि में है वही पिण्ड में है। ‘यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे।’ समस्त शरीरों का अन्तिम आधार एक परम आध्यात्मिक शक्ति है जो अपने मूल रूप में अद्वैत परमात्मा शिव से अभिन्न एवं तद्रूप है। समस्त शरीर एक स्वतः विकासमान दिव्य शक्ति की आत्माभिव्यक्ति है। वह शक्ति अद्वैत शिव से अभिन्न है। वही आत्म चैतन्य आत्मानंद, अद्वैत परमात्मा अपने आत्म रूप में स्थित होती है तब शिव कहलाती है और जब सक्रिय होकर अपने को ब्रहमाण्ड रूप में परिणत कर लेती है, तथा दिक्, काल सीमित असंख्य पिण्डों की रचना, विकास तथा संहार में प्रवृत्त होती है, तथा अपने को अनेक रूपों में व्यक्त करती है, तब शक्ति कहलाती है। यह शक्ति पिण्ड में कुण्डलिनी के रूप में स्थित है। यही शक्ति महाकुण्डलिनी के रूप में ब्रह्माण्ड में स्थित है। इस प्रकार परमात्मा, जो परमेंश्वर हैं और स्वयं को व्यष्टि-शरीरों में विश्व रूप से प्रगट करते हैं, प्रत्येक सीमित व्यष्टि शरीर में या घट-घट में चित् स्वरूप में विराजते हैं। आकार की सीमाओं के कारण ही आत्मा, जीवआत्मा का रूप धारण कर दुःख-सुख व संताप भोगती है।

शिव-पूजा के रूप में हम शिव-लिंग की पूजा करते हैं। इसका क्या रहस्य है? शिव पुराण, लिंग पुराण एवं स्कंद पुराण में लिंगोत्पत्ति का विस्तार से वर्णन है- स्कंद पुराण में कथा है-वर्तमान श्वेत वाराहकल्प से जब देवताओं की सृष्टि समाप्त हो गई। युग के अंत में स्थावर जंगम सब सूख गए। पशु-पक्षी, मनुष्य, राक्षस, गंधर्व सब सूर्य के ताप से जल गए। सारी सृष्टि जल मग्न हो गई। सब दिशाओं में अंधेरा छा गया। ऐसे समय में ब्रह्माजी ने भगवान विराट को नारायण रूप से क्षीर सागर में शयन करते देखा। ब्रह्माजी ने नारायण को जगाया। भगवान नारायण ने ब्रह्माजी को बेटा कह कर पुकारा। ब्रह्माजी ने क्रोधित होकर पूछा-तुम हौन हो? मुझे बेटा कहने वाले ? में तो पितामह हूँ। भगवान विष्णु ने समझाया कि हमीं सृष्टि के कर्ताधर्ता हैं तुम्हें तो मेंने ही सृष्ट किया है। इस पर दोनों में वर्षों-वर्षों तक विवाद होता रहा, युद्ध होता रहा। इसी समय उनके सामने प्रचण्ड अग्नि का एक महा स्तंभ प्रकट हुआ जो ऊपर-नीचे अनादि और आनन्त था। दोनों ने इसे ही झगड़े का निर्णायक समझा। दोनों ने निर्णय किया-ब्रह्मा स्तंभ के ऊपरी हिस्से का पता लगाएं तथा विष्णु नीचे के भाग का। ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया तथा विष्णु ने बाराह का रूप धारण किया। दोनों ने हजार वर्ष तक उस ज्योति-स्तंभ का अंत पा लेने की चेष्टा की, पर पार नहीं पा सके। अन्त में हार कर उस ज्योतिर्लिंग की दोनों ने प्रार्थना की, पूजा की। भगवान शिव प्रकट हुए तथा उन्होंने स्पष्ट किया कि ब्रह्मा, विष्णु एवं रुद्र तीनों की उत्पत्ति महेश्वर के अंश से ही होती है। तीनों अभेद हैं, तीनों समान हैं। इस कथा-रूपक के कुछ तथ्य उभरे हैं:-

1. सृष्टि का अनादि तत्व शिव है। यही कारण है-सृष्टि, स्थिति एवं प्रलय का।

2. उस शिव का स्वरूप ज्योतिर्लिंग के रूप में है। इस ज्योतिर्लिंग में ही सब कुछ समाहित है।

3. लिंग की जलहरी ब्रह्माण्ड का स्वरूप है।

4. यह ब्रह्माण्ड शिव का ही साकार स्वरूप है। उसकी निज शक्ति अर्थात् माया का ही पसारा है। शिव एवं शिवा अर्थात् ब्रह्म एवम् उसकी निज शक्ति (प्रकृति) दोनों तदाकार हैं। इसीलिए शिव का एक नाम अर्द्धनारीश्वर भी है।

5. शिव का स्वरूप निराकार एवं साकार दोनों हैं।


6. लिंग का जैसा स्वरूप ब्रह्माण्ड में है वैसा ही स्वरूप पिड में भी है। हमारा यह पूरा शरीर असंख्य लिंगों एवं योनियों के समायोग से निर्मित है।

सारांश यही है - शिव ही र्स्वस्व हैं। ऐसे शिव को छोड़कर हम किसकी पूजा करें ?
कामना है - हम सब इसी शिव में ही रमण करें। इसका ही ध्यान करें और अंत में इसी में ही लय हो जाएं।


आगे के आर्टीकल मे आपको "शिव शाबर मंत्र" प्रदान कर रहा हूँ।जो अत्यंत गोपनीय है और आपको प्रदान करना यह मै शिवप्रसाद समझता हू जो आपके जिवन को बदल देगा।





आदेश.....