5 Dec 2015

दुर्गा सप्तशती रहस्य,भाग-2.

भुवनेश्वरी संहिता में कहा गया है- जिस प्रकार से ''वेद'' अनादि है, उसी प्रकार ''सप्तशती'' भी अनादि है। श्री व्यास जी द्वारा रचित महापुराणों में ''मार्कण्डेय पुराण'' के माध्यम से मानव मात्र के कल्याण के लिए इसकी रचना की गई है। जिस प्रकार योग का सर्वोत्तम ग्रंथ गीता है उसी प्रकार ''दुर्गा सप्तशती'' शक्ति उपासना का श्रेष्ठ ग्रंथ है |

'दुर्गा सप्तशती'के सात सौ श्लोकों को तीन भागों प्रथम चरित्र (महाकाली), मध्यम चरित्र (महालक्ष्मी) तथा उत्तम चरित्र (महा सरस्वती) में विभाजित किया गया है। प्रत्येक चरित्र में सात-सात देवियों का स्तोत्र में उल्लेख मिलता है प्रथम चरित्र में काली, तारा, छिन्नमस्ता, सुमुखी, भुवनेश्वरी, बाला, कुब्जा, द्वितीय चरित्र में लक्ष्मी, ललिता, काली, दुर्गा, गायत्री, अरुन्धती, सरस्वती तथा तृतीय चरित्र में ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही तथा चामुंडा (शिवा) इस प्रकार कुल 21 देवियों के महात्म्य व प्रयोग इन तीन चरित्रों में दिए गये हैं। नन्दा, शाकम्भरी, भीमा ये तीन सप्तशती पाठ की महाशक्तियां तथा दुर्गा, रक्तदन्तिका व भ्रामरी को सप्तशती स्तोत्र का बीज कहा गया है। तंत्र में शक्ति के तीन रूप प्रतिमा, यंत्र तथा बीजाक्षर माने गए हैं। शक्ति की साधना हेतु इन तीनों रूपों का पद्धति अनुसार समन्वय आवश्यक माना जाता है।

'दुर्गा सप्तशती' के सात सौ श्लोकों का प्रयोग विवरण इस प्रकार से है।

प्रयोगाणां तु नवति मारणे मोहनेऽत्र तु।
उच्चाटे सतम्भने वापि प्रयोगाणां शतद्वयम्॥

मध्यमेऽश चरित्रे स्यातृतीयेऽथ चरित्र के।
विद्धेषवश्ययोश्चात्र प्रयोगरिकृते मताः॥

एवं सप्तशत चात्र प्रयोगाः संप्त- कीर्तिताः॥
तत्मात्सप्तशतीत्मेव प्रोकं व्यासेन धीमता॥

अर्थात इस सप्तशती में मारण के नब्बे, मोहन के नब्बे, उच्चाटन के दो सौ, स्तंभन के दो सौ तथा वशीकरण और विद्वेषण के साठ प्रयोग दिए गये हैं। इस प्रकार यह कुल 700 श्लोक 700 प्रयोगों के समान माने गये हैं।







दुर्गा सप्तशती के अलग-अलग अध्यायों का अपना-अपना महत्व है जिनका यदि भक्तिभाव से पाठ किया जाए तो फल बड़ी जल्दी मिलता है, लेकिन लालच से किया पाठ फल नहीं देता।

यदि किसी भी जातक को राहू, शनि, मंगल से बुरे फल मिल रहे हों तो ये अध्याय पूरी क्षमता रखते हैं उनके बुरे दोषों को दूर करने में। हर अध्याय का अपना एक महत्व है-

1. प्रथम अध्याय : हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए। मानसिक विकारों की वजह से आ रही अड़चनों को दूर करता है, मन को सही दिशा की ओर ले जाता है तथा जो चेतना खो गई है उसको एकत्र करता है।

2. द्वितीय अध्याय : मुकदमे, झगड़े आदि में विजय पाने के लिए यह पाठ काम करता है। लेकिन झूठा और आपने गलत किसी पर किया हो तो फल नहीं मिलता बल्कि आप खुद बुरा परिणाम भोगेंगे।

3. तृतीय अध्याय : शत्रु से छुटकारा पाने के लिए। शत्रु यदि बिना कारण बन रहे हैं और नुकसान का पता न चल रहा हो कि कौन कर रहा है तो यह पाठ उपयुक्त हैं।

4. चतुर्थ अध्याय : भक्ति, शक्ति तथा दर्शन के लिए। जो साधना से जुड़े होते व समाज हित में साधना को चेतना देना चाहते हैं तो यह पाठ फल देता है।

5. पंचम अध्याय : भक्ति, शक्ति तथा दर्शन के लिए। हर तरह से परेशान हो चुके लोग जो यह सोचते हैं कि हर मंदिर-दरगाह जाकर भी कुछ नहीं मिला, वे यह पाठ नियमित करें।

6. षष्ठम अध्याय : डर, शक, बाधा हटाने के लिए। राहु का अधिक खराब होना, केतु का पीड़ित होना, तंत्र, जादू, भूत इस तरह के डर पैदा करता है तो आप इस अध्याय का पाठ करें।

7. सप्तम अध्याय : हर कामना पूर्ण करने के लिए। सच्चे दिल से जो कामना आप करते हैं जिसमें किसी का अहित न हो तो यह अध्याय कारगर है।

8. अष्टम अध्याय : मिलाप व वशीकरण के लिए। वशीकरण गलत तरीके नहीं अपितु भलाई के लिए हो और कोई बिछड़ गया है तो यह असरकारी है।

9. नवम अध्याय : गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिए। बहुत से लोग जो घर छोड़ जाते हैं या खो जाते हैं, यह पाठ उसके लौटने का साधन बनता है।

10. दशम अध्याय : गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिए। अच्छे पुत्र की कामना रखने वाले या बच्चे गलत रास्ते पर चल रहे हों तो यह पाठ पूर्ण फलदायी है।

11. एकादश अध्याय : व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिए। कारोबार में हानि हो रही है, पैसा नहीं रुकता या बेकार के कामों में नष्ट हो जाता है तो यह करें।

12. द्वादश अध्याय : मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिए। इज्जत जिंदगी का एक हिस्सा है। यदि इस पर कोई आरोप-प्रत्यारोप करता हो तो यह पाठ करें।

13. त्रयोदश अध्याय : भक्ति प्राप्ति के लिए। साधना के बाद पूर्ण भक्ति के लिए यह पाठ करें





दुर्गासप्तशती के पाठ में ध्यान देने योग्य कुछ बातें

1. दुर्गा सप्तशती के किसी भी चरित्र का आधा पाठ ना करें एवं न कोई वाक्य छोड़े।

2. पाठ को मन ही मन में करना निषेध माना गया है। अतः मंद स्वर में समान रूप से पाठ करें।

3. पाठ केवल पुस्तक से करें यदि कंठस्थ हो तो बिना पुस्तक के भी कर सकते हैं।

4. पुस्तक को चौकी पर रख कर पाठ करें। हाथ में ले कर पाठ करने से आधा फल प्राप्त होता है।

5. पाठ के समाप्त होने पर बालाओं व ब्राह्मण को भोजन करवाएं।





नवार्ण मंत्र के विषेश प्रयोग:-

1. मारण : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै देवदत्त रं रं खे खे मारय मारय रं रं शीघ्र भस्मी कुरू कुरू स्वाहा।

2. मोहन : क्लीं क्लीं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तं क्लीं क्लीं मोहन कुरू कुरू क्लीं क्लीं स्वाहा॥

3. स्तम्भन : ऊँ ठं ठं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तं ह्रीं वाचं मुखं पदं स्तम्भय ह्रीं जिहवां कीलय कीलय ह्रीं बुद्धि विनाशय -विनाशय ह्रीं। ठं ठं स्वाहा॥

4. आकर्षण : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदतं यं यं शीघ्रमार्कषय आकर्षय स्वाहा॥

5. उच्चाटन : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्त फट् उच्चाटन कुरू स्वाहा।

6. वशीकरण : ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे देवदत्तं वषट् में वश्य कुरू स्वाहा।


नोट : मंत्र में जहां देवदत्तं शब्द आया है वहां संबंधित व्यक्ति का नाम लेना चाहिए।








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