3 Dec 2015

महाकालीके नमोस्तुते.

जयन्ति मंगलकाली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।

संपूर्ण विश्व को चलाने वाली कण-कण में व्याप्त महामाया की शक्ति अनादि व अनंत है। माँ जगदम्बा स्वयं ही संपूर्ण चराचर की अधिष्ठात्री भी हैं। माँ देवी के समस्त अवतारों की पूजा, अर्चना व उपासना करने से उपासना का तेज बढ़ता है एवं दुष्टों को दंड मिलता है। नवदुर्गाओं का आवाहन अर्थात् नवरात्रि में माँ भगवती श्री जगदम्बा की आराधना अत्यधिक फलप्रदायिनी होती है। हठयोगानुसार मानव शरीर के नौ छिद्रों को महामाया की नौ शक्तियाँ माना जाता है।
महादेवी की अष्टभुजाएं क्रमश: पंचमहाभूत व तीन महागुण है। महादेवी की महाशक्ति का प्रत्येक अवतार तन्त्रशास्त्र से संबंधित है, यह भी अपने आप में देवी की एक अद्भुत महिमा है।

शिवपुराणानुसार महादेव के दशम अवतारों में महाशक्ति माँ जगदम्बा प्रत्येक अवतार में उनके साथ अवतरित थीं। उन समस्त अवतारों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं-

(1) महादेव के महाकाल अवतार में देवी महाकाली के रूप में उनके साथ थीं।

(2) महादेव के तारकेश्वर अवतार में भगवती तारा के रूप में उनके साथ थीं।

(3) महादेव के भुवनेश अवतार में माँ भगवती भुवनेश्वरी के रूप में उनके साथ थीं।

(4) महादेव के षोडश अवतार में देवी षोडशी के रूप में साथ थीं।

(5) महादेव के भैरव अवतार में देवी जगदम्बा भैरवी के रूप में साथ थीं।

(6) महादेव के छिन्नमस्तक अवतार के समय माँ भगवती छिन्नमस्ता रूप में उनके साथ थीं।

(7) महादेव के ध्रूमवान अवतार के समय धूमावती के रूप में देवी उनके साथ थीं।

(8) महादेव के बगलामुखी अवतार के समय देवी जगदम्बा बगलामुखी रूप में उनके साथ थीं।

(9) महादेव के मातंग अवतार के समय देवी मातंगी के रूप में उनके साथ थीं।

(10) महादेव के कमल अवतार के समय कमला के रूप में देवी उनके साथ थीं।

दस महाविद्या के नाम से प्रचलित महामाया माँ जगत् जननी जगदम्बा के ये दस रूप तांत्रिकों आदि उपासकों की आराधना का अभिन्न अंग हैं, इन महाविद्याओं द्वारा उपासक कई प्रकार की सिद्धियां व मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है।

श्रीमहाकाली साधना के प्रयोग से लाभ:-

महाकाली साधना करने वाले जातक को निम्न लाभ स्वत: प्राप्त होते हैं-

(1) जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने के पश्चात् पतंगा भस्म हो जाता है, उसी प्रकार काली देवी के संपर्क में आने के उपरांत साधक के समस्त राग, द्वेष, विघ्न आदि भस्म हो जाते हैं।

(2) श्री महाकाली स्तोत्र एवं मंत्र को धारण करने वाले धारक की वाणी में विशिष्ट ओजस्व व्याप्त हो जाने के कारणवश गद्य-पद्यादि पर उसका पूर्व आधिपत्य हो जाता है।

(3) महाकाली साधक के व्यक्तित्व में विशिष्ट तेजस्विता व्याप्त होने के कारण उसके प्रतिद्वंद्वी उसे देखते ही पराजित हो जाते हैं।

(4) काली साधना से सहज ही सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती है।

(5) काली का स्नेह अपने साधकों पर सदैव ही अपार रहता है। तथा काली देवी कल्याणमयी भी है।

(6) जो जातक इस साधना को संपूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव पूर्वक करता है वह निश्चित ही चारों वर्गों में स्वामित्व की प्राप्ति करता है व माँ का सामीप्य भी प्राप्त करता है।

(7) साधक को माँ काली असीम आशीष के अतिरिक्त, श्री सुख-सम्पन्नता, वैभव व श्रेष्ठता का भी वरदान प्रदान करती है। साधक का घर कुबेरसंज्ञत अक्षय भंडार बन जाता है।

(8) काली का उपासक समस्त रोगादि विकारों से अल्पायु आदि से मुक्त हो कर स्वस्थ दीर्घायु जीवन व्यतीत करता है।

(9) काली अपने उपासक को चारों दुर्लभ पुरुषार्थ, महापाप को नष्ट करने की शक्ति, सनातन धर्मी व समस्त भोग प्रदान करती है।

श्रीमहाकाली पाठ-पूजन विधि:-

सबसे पहले गणपति का ध्यान करते हुए समस्त देवी-देवताओं को नमस्कार करें।

1. श्री मन्महागणाधिपतये नम:।।
अर्थात्-बुद्धि के देवता श्री गणेश को हमारा नमस्कार है।

2. लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:।।
अर्थात्-सृष्टि के अस्तित्व व अनुभवकर्ता श्री लक्ष्मी व नारायण को हमारा शत-शत नमस्कार है।

3. उमामहेश्वरा्भ्यां नम:।।
अर्थात्-श्री महादेव व माँ पार्वती को हमारा नमस्कार है।

4. वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:।।
अर्थात्-वाणी और उत्पत्ति के कारक माँ सरस्वती व परम ब्रह्म तुम्हें सादर नमस्कार है।

5. शचीपुरन्दराभ्यां नम:।।
अर्थात्-देवराज इन्द्र व उनकी भार्या शची देवी को हमारा नमस्कार है।

6. मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नम:।।
अर्थात्-माता और पिता को हमारा सादर नमस्कार है।

7. इष्टदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात्-मेरे इष्ट देवता को मेरा सादर नमस्कार है।

8. कुलदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात्-हमारे कुल (खानदान) के देवता तुम्हें नमस्कार है।

9. ग्रामदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात्-जिस गहर (ग्राम) से मेरा संबंध है उस स्थान के देवता तुम्हें नमस्कार है।

10. वास्तुदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात हे वास्तु पुरुष देवता तुम्हें नस्कार है।

11. स्थानदेवताभ्यो नम:।
अर्थात्-इस स्थान के देवता को सादर नमस्कार है।

12. सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।।
अर्थात्-समस्त देवताओं को नेरा नमस्कार है।

13. सर्वेभ्यो ब्राह्यणेभ्यो नमः।।
अर्थात् उन सभी को जिन्हें ब्रह्म का ज्ञान है, मेरा सादर नमस्कार है।

कुछ पुष्प चढाते हुए बोलीये
14.ॐ श्री गुरुवे नम:।।
अर्थात् इन सुगंधित पुष्पों द्वारा गुरु को नमस्कार है।

अब कुशासन पर बैठकर मंत्र बोले

15.ॐ कुशासने स्थितो ब्रह्मा कुशे चैव जनार्दन:।
कुशे ह्याकाशवद् विष्णु: कुशासन नमोऽस्तुते।।
अर्थात्-इस कुश (घास) में परम ब्रह्म का प्रकाश स्थित है तथा इसी में निवास करते हैं श्री जनार्दन भी। इसी कुश के प्रकाश में स्वयं परम विष्णु का प्रकाश भी विद्यमान है, अत: मैं इस कुश के आसन को नमस्कार करता हूं।

अब कालि जी का हाथ जोडकर मंत्र बोलते हुए ध्यान करे।

महाकालि वागादि ध्यान:-

चतुर्भुजां कृष्णवर्णां मुण्डमाला विभूषिताम् ।
खड्र्भुजां कृष्णवर्णां मुण्डमाला विभूषिताम् ।
मुण्डञ्च खर्परञ्चैव क्रमाद् वामेन विभ्रतीम् ।
द्यो लिखन्ती जटामेकां विभ्रती शिरसा स्वयं ॥
मुण्डमाला धरा शीर्षे ग्रीवायामपि सर्वदा ।
वक्षसा नागाहारं तु विभ्रतीं रक्तलोचनाम् ॥
कृष्ण वस्त्र धरां कट्यां व्याघ्राजिन समन्विताम् ।
वामपादं शवहृदि संस्थाप्य दक्षिणं पदम् ॥
विन्यस्य सिंह पृष्ठे च लेलिहानां शवं स्वयं ।
साट्टहासां महाघोररावयुक्ता सुभीषणाम् ॥

पुर्ण सफलता हेतु महाकाली यंत्र को लाल कपडे पर स्थापित करे और सामान्य पुजन करे,अब  रूद्राक्ष माला से रोज मंत्र का 11 माला जाप करे,दिशा-उत्तर,समय-रात्रि का जो आपको उचित हो,आसन-वस्त्र-लाल हो,साधना मंगलवार से प्रारंभ करे।

मंत्र:-

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके नम:।

(Om hreem shreem kreem paramedhwari kalike namah)




  आप सभी पर माताराणी का आशिर्वाद रहे।




महाकाली यंत्र और रुद्राक्ष माला:-750/-रूपये .


आदेश......