3 Dec 2015

गुरु पुजन.

गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर: ।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम: ।।

अपनी महत्ता के कारण गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा पद दिया गया है। शास्त्र वाक्य में ही गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। गुरु को ब्रह्मा कहा गया क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है।
वैसे तो गुरु तत्व की प्रशंसा सभी शास्त्रों में की गई है। ऐसा माना जाता है कि, ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है, किन्तु गुरु के लिए कोई भी प्रकार का मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हो सका है। सभी धर्मों में गुरु को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आदर सम्मान के दृष्टीकोण से हर गुरु ने दूसरे गुरुओं को आदर सम्मान एवं पूजा सहित सम्पुर्ण मान दिया है। भारत के बहुसम्प्रदाय धर्म तो केवल गुरुवाणी के आधार पर ही कायम हैं। गुरु ने जो नियम बताए हैं उन नियमों का श्रद्धा से पालन करना और उन्ही नियमों पर चलना संप्रदाय के शिष्य का परम कर्तव्य और धर्म है। गुरु का कार्य सिर्फ उनके शिष्यों को उचित शिक्षा प्रदान करवाना ही नही बल्कि नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं को हल करना भी है।


गुरु की भूमिका भारत में केवल सिर्फ आध्यात्म या धार्मिकता तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि देश पर राजनीतिक विपदा आने पर गुरु ने देश को समय पर उचित सलाह देकर, इस देश को विपदा से उबारा भी है। अर्थात अनादिकाल से ही गुरु का शिष्य का हर क्षेत्र में मार्गदर्शित योगदान रहा है। अतः सद्गुरु की इसी महिमा के कारण उनका व्यक्तित्व हमेशा माता-पिता से ऊपर रहा है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक के अनुसार 'यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरु' अर्थात जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी होनी चाहिए। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।



नित्य देव पूजा के आरम्भ में या अन्त मे श्री गुरुपादुका-स्मरण का अनिवार्य विधान है। प्रायः इस स्मरण के साथ श्री गुरुपादुका का भी स्मरण किया जाता है। विशेष पर्वों में या व्यास पूर्णिमा, शंकर जयन्ती आदि अवसरो पर विस्तार से गुरू-पूजन होना चाहिए। ऐसे अवसरों के लिए यहाँ संक्षिप्त गुरू-पूजन विधि दे रहा हूँ। इनमें से यथा-शक्ति कुछ उपचारों को साधक दैविक क्रम में भी अपना सकते हैं।

ध्यान:-

द्विदल कमलमध्ये बद्धंसमवति् सुमुद्रं.
घृतशिवमयगायं साधकानुग्रहार्थम।
श्रुतिशिरसिविभान्तं बोधमार्तण्ड मूर्ति,
शमिततिमिरशोकं श्री गुरूं भावयामि।
हृदंबुजे-कर्णिकमध्यसंस्थं सिंहासने संस्थितदिव्यमूर्तिम्
ध्यायेदगुरुं चन्द्रशिला प्रकाशं चित्पुस्तिकाभीष्ट वरं दधानम्।।

आवाहन:-

ऊं सवरूपानिरुपण हेतवे श्री गुरुवे नमः ।
ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श-हेतवे श्रीपरम गुरवे नमः।
आवाहयामि पूजयामि।

आसन:-

ॐ इदं विष्णु विचक्रमे त्रेधा निदयं पदम्।
समूढ़ मस्य पा सुरे स्वाहा।
सर्वात्म भाव संस्थाय गुरवे सर्वसाक्षिणे
सहस्त्रारसरोजातसनं कल्पयाम्यहम् ।।
श्री गुरू पादुकाभ्यों नमः।
आसनार्थ पुष्म समर्पायामि।।
(चरणों में पुष्प चढ़ाये) पाद्यं (स्नान)

ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पपूयेमाक्षभिर्जतत्राः स्थिर रंगे स्तुष्टवा सस्तनूभिरव्यूशेमहि देवाहिंत यदायुः।
स्वस्ति न उन्द्रों वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषाविश्ववेदाः स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु। शान्तिः शान्तिः।
श्री गुरूपादुकाभ्यों नम, पाद्यं अद्यर्य, आचमनं, स्नानं न समर्पयामि। पुनः आचमनीयं जलं समर्पयामि।

चरणों को उपर्युक्त उपचार अर्पित करके भली प्रकार पोंछ लें एवं वस्त्र अर्पित करें-

वस्त्र:-

माया-चित्रपटाच्छन्ननिज गुह्ययोरुतेजसे।
ममश्रद्धाभक्तिवासं युग्मं देशिकागृह्ययाताम्।।
श्री गरू पादुकाभ्यों नमः वस्त्रोपवस्त्र समर्पयामि।
आचमनीयं समर्पायामि।।

चन्दन-अक्षत:-

ॐ त्र्यम्ब्कं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्दनम्
उर्वाकुरूकमिव बन्धनात सत्योरमक्षीरा मामृतात्।।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहें सुगन्धिं पतिवेदनम्
महावाक्यों त्थाविज्ञान गन्धाढयं तापमोचनम्।

श्री गुरू पादुकाभ्यों नमः चन्दन अक्षताम् च समर्पयामि।

पुष्प:-

ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय चः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।
तुरीयभवनसंभूत दिव्यभाव मनोहरम।
तारादिमनु पुष्पांदजलि गृहाण गुरुनायक।।,
श्री गुर पादुकाभ्यों नमः पुष्पं बिल्वपत्र च समर्पयामि।

इसके बाद गुरुमंत्र का जाप करे और जाप के बाद क्षमा प्रार्थना करें।

आदेश......