4 Feb 2016

कर्ण-पिशाचिनि सिद्धि साधना.

कर्ण-पिशाचिनी साधना एक रहस्यमय साधना है,जिसके बारे मे बहोत कम व्यक्तियों ने सत्य लिखा और इतने सारे फेकु भी देखे मैंने "जिन्होंने इस साधना को अत्यंत बुरा कहा है"। हमे उन मुर्खो से कोइ लेना देना नही है जो कर्ण पिशचिनी साधना को घटिया मानते है,मेरा तो यही सोच है नजरिया ठिक हो तो सब कुछ ठिक होता है। अभी नासिक मे कुम्भ मेला लगा था,वहा मै 2-3 दिन रुका था । वहा सन्यासियों के लिये स्नान का अलग व्यवस्था बनाया हुआ था,इस बार  कुम्भ मे वह सन्यासी देखने नही मिले जिनक स्पर्श ही किसी भी पिडित व्यक्ति को पिडा से राहत दिला सकता है । फिर भी 70-75% सन्यासी बढिया थे,जिनके सान्निध्य को प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण योग ही है। इस वर्ष कुम्भ मे मुझे कर्ण-पिशाचिनी साधना के बारे मे कुछ गोपनीय विषयो पर ग्यान प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुया ।मेरा  लक्ष्य कर्ण-पिशचिनी सिद्धि तो नही है परंतु मै अपने लक्ष्य तक इस साधना से वहा तक पहोच सकता हू,इस बात का मुझे आभास हुआ।

कुछ लोगो का मानना है,कर्ण-पिशाचिनी देवि को सिद्ध करने के बाद वह म्रत्यु के उपरांत साधक के परिवार को तकलीफ देती है । मित्रो यह बात 100% झुट है और तंत्र मे येसा सब सम्भव भी नही है क्युके कर्ण-पिशाचिनी को बंधक बनाया जाये तो उनका हम विसर्जन भी कर सकते है। बंधक का अर्थ है बांधना और यहा देवि को बांधने की बात नही हो रही है। मै बात कर रहा हू "कर्ण-पिशाचिनी सिद्धि" को बांधने की,आप सोच रहे होगे "ये कैसे सम्भव है"? । ये तंत्र का  क्षेत्र है और यहा क्रिया के माध्यम से सब कुछ सम्भव है। आज यहा वह क्रिया बताउगा जिसके माध्यम से "कर्ण-पिशाचिनी सिद्धि' को आप विशेष रत्न मे बांध सकते है। वह रत्न हमेशा आपके साथ रहेगा,जिसे आप मुद्रिका मे जडवा सकते है,इसका अर्थ यही है "कर्ण-पिशाचिनी" आपके पास तो है परंतु शरीर मे वह स्थापित नही होंगी।

जब कर्ण-पिशाचिनी का सम्बन्ध आपके शरीर से स्थापित हो तो समझ जाये आपका अंत बहोत बुरा होगा क्युके आप चाहे कितने भी दान-पुण्य-मंत्र जाप करलो,फिर भी वह आपको म्रत्यु के उपरांत पिशाच योनी मे ही लेकर जायेगी । आपने तो ये बात बहोत बार सुना ही होगा "अंत भला तो सब भला",इसलिए आवश्यकतो तो यही है "कर्ण-पिशाचिनी" को सिद्ध किया जाये परंतु उसका सम्बन्ध स्वयं के शरीर से स्थापित ना हो अन्यथा यह सिद्धि किसी काम का नही है। महर्षि वेदव्यास जी ने भी अपने जिवन काल मे यह
सिद्धि प्राप्त की थी और उनका अनुभव इसी सिद्धि मे महान रहा है। वे तो महर्षि है,भला उनको क्या आवश्यकता पडी होगी इस सिद्धि की,कारण यही है मित्रों "जो भी तंत्र के क्षेत्र मे आता हैं,वह जिवन मे एक बार कर्ण-पिशाचिनी साधना सिद्ध करता ही है"। नाथ पंथ मे सर्वप्रथम यह सिद्धि श्री कानिफनाथ जी ने कि थी,उन्होंने ने विशेष रत्न मे कर्ण-पिशाचिनी को बांधा ,जब बंधन पुर्ण हुआ तो रत्न को मुद्रिका मे जडवाया,रत्न जड़ीत अंगुठी मे उन्होने "कर्ण-पिशाचिनी को जाग्रत किया। उनके हजारो शिष्य थे,वह एक साथ सभी शिष्यों को साथ लेकर चलते थे,उसमे कुछ शिष्य ग्यानी थे,तो कुछ शिष्य अग्यानी भी थे,जब चलते चलते रास्ते मे कोइ अग्यानी शिष्य मार्ग भटकता तो कर्ण-पिशाचिनी उनको कर्ण मे बता देती थी। इस प्रकार से महान योगी श्री कानिफनाथ जी ने अपने जिवन मे कर्ण-पिशाचिनी सिद्धि को आजमाया है।

जो जिवन मे चुनौती को स्वीकार करते है,उनको अवश्य ही यह साधना करनी चाहिये और जो डरपोक हो,जो अग्यात आवाज को सुनकर डर जाते हो "उनको तो इस साधना से दुर ही रहेना चाहिए। सीधी सी बात है,जब कर्ण-पिशाचिनी साधना करोगे तो कर्ण मे आवाज आयेगी,अब इस बात से डरोगे तो यह मुर्खता है। मुख्यतः कर्ण-पिशाचिनी साधक के कर्ण मे भुतकाल की समस्त बाते अचुक बताती है और भुतकाल के साथ वर्तमान भी बता सकती है परंतु यही कभी भविष्‍यकाल नही बताती है। तंत्र शास्त्र मे एक जगह येसा विवरण पढने मिलता है "अगर कर्ण-पिशाचिनी के साथ यक्षिणी साधना की जाये तो कर्ण-पिशाचिनी भविष्यकाल भी बता सकती है ",आज यह गोपनीय रहस्य सुशिल नरोले ने अपने पाठक मित्रो हेतु बता दिया,क्युके येसा विषय कितने दिनो तक गोपनीय रखा जा सकता है। अब अपने इस ब्लोग को नित्य 2000+ पाठक मित्र पढते है और तंत्र के विषय पर मुझसे चर्चा भी करते है,जब आप तंत्र के विषय मे अध्ययन कर रहे हो तो मेरा भी कर्त्तव्य है "आप सभी को गोपनीय से गोपनीय ग्यान प्राप्त हो,जो थोड़ा बहोत मैने प्राप्त किया हो"।

इस साधना मे मेहनत करना कभी व्यर्थ कार्य नही है,मंत्र भी आसान है और साधना विधि भी ज्यादा कठिन नही है। इस साधना मे मेरा आपको पुर्ण सहायता प्राप्त होगा,रत्न मे मै आपको स्वयं ही "कर्ण-पिशाचिनी"को शाबर मंत्रो से बांधकर दे रहा हूं। आपको सिर्फ रत्न को अंगुठी मे जडवाकर उसका विधि-विधान के साथ पुजन करके,अंगुठी को देखते हुये मंत्र जाप करने की आवश्यकता है। कुछ ही दिनो मे सर्वप्रथम आपके कर्ण मे दर्द होना प्रारंभ होगा जो साधना सिद्धि का सुचक अनुभव है,इसके बाद धिरे से आपके कर्ण मे कोइ फुंक मारेगा तो समज जाये "आप सिद्धि के करीब पहोच रहे है"। यहा से आगे क्या अनुभव होगे वह तो आपको मुझे बताने है,मै तो जानता हू इसके आगे क्या होगा परन्‍तु जब आप स्वयं अनुभव करके मुझे बतायेगे तो अत्यंत आनंद होगा। इस साधना मे जो विशेष रत्न मै दे रहा हू "उसका मार्केट मे कम से कम किमत सव्वा चार रत्ती का 5-6 हजार रुपये से प्रारंभ होगा" और वजन के हिसाब से वह रत्न खरीदने पर वह और भी ज्यादा महेंगा है परंतु मै आपको यह रत्न 3800/- रुपये मे ही देने वाला हू । यह रत्न शनि भगवान का प्रिय रत्न है,जो एक प्रसिद्ध रत्न है "निलम"। यहा आप सोच रहे होगे "मै कम दाम मे रत्न क्यु दे रहा हू?",तो मित्रो बात येसा है "पहिला बात मेरा रत्न बेचने का कोइ दुकान तो नही है जिसका मुझे किराया देना पडे या किसी को दुकान मे काम करने के लिये महिने का स्यालेरी  देना पड़ता हो,दुसरा बात जब दुकान ही नही है तो लाईट बिल भी नही आता है,तिसरा बाता मुझे रत्न बेचने पर इनकम टैक्स और सेल्स टैस्क भी देना नही पडता है। परंतु मार्केट मे जो व्यापारी रत्न बेचते है उनको यह सब खर्च चुकाना पड़ता है और जो खर्च उन्होने चुकाया है वह तो ग्राहक के जेब मे से ही ज्यायेगा । इसलिए मै सव्वा पाच रत्ती/कॅरेट का निलम रत्न सिर्फ कर्ण-पिशाचिनी साधना हेतु 3800/-रुपये मे दे रहा हूं। भगवान शनि जी से कर्ण-पिशाचिनी बहोत डरती है,इसलिए वह इस रत्न मे आसानी से स्थापित हो जाती है (बंधन क्रिया),अब जिन्हें निलम रत्न पहेनना अयोग्य हो या जिनके लिये कुण्डली के हिसाब से पहेनना अशुभ फलप्रद हो तो येसा साधक निलम रत्न जडित मुद्रिका को कुछ समय के लिये पहेनकर कर्ण-पिशाचिनी से सवालो के जवाब प्राप्त करने हेतु धारण कर सकता है।



मंत्र:-

।। ॐ ह्रीं सनामशक्ति भगवती कर्णपिशाचिनि चंडरोपिणि वद वद स्वाहा ।।



इस छोटेसे मंत्र का जाप तो आप कर ही सकते है,ज्यादा कठिन साधना नही है परंतु मेहनत करने से ही इस  साधना मे सफलता प्राप्त करना आसान है और आलसी साधक/साधिकाये यह साधना करने हेतु ना सोचे तो बेहतर होगा। साधना मे मार्गदर्शन हेतु सम्पर्क करे amannikhil011@gmail.com पर,हर सम्भव मार्गदर्शन आपको किया जायेगा। कर्ण पिशाचिनि का फोटो मिलता जुलता है , देखकर ङरीये मत उनका स्वरूप थोङा ङरावना सा है परंतु वह साधक के सामने इस साधना मे कभी प्रत्यक्ष नही आती है । 



आदेश.....