17 Feb 2016

दुर्गा सप्तशती यंत्र साधना.

दुर्गा सप्तशती के बारे मे तो बहोत से साधक जानते है,आज आपको "दुर्गा सप्तशती यंत्र" साधना मंत्र के साथ दे रहा हूं। साधना प्रचण्ड है और जिन्हे मातारानी पर पुर्ण विश्वास हो वही लोग यह साधना करे क्युके ये साधना बेकार (time pass करने वाले बेकार) लोगो के लिये नही है। बहोत से लोग आजमाने के लिये मंत्र-तंत्र मे आये,उन्होने कुछ मंत्र साधना करके भी देखा ।इसमे किसीको अच्छे परिणाम (अनुभव) प्राप्त हुए तो किसीको कोइ परिणाम देखने नही मिला होगा,परंतु इस साधना मे परिणाम देखने मिलते है।

इस साधना मे नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा हानी हो सकती है। मै बहोत से लोगो से यह साधना करवाया है और सभी को मातारनी के आशिर्वाद से अनुभव प्राप्त हुए है।




साधना विधि और नियम:-

ब्रह्मचैर्यत्व जरुरी है,झुट नही बोलना,बाल नही कटवाने है,साधना काल मे दिर्घशंका आये तो स्नान करे,घी का दिपक,गुलाब के सुगंध का धूप,वस्त्र-आसान लाल रंग के हो,मा दुर्गाजी का कोइ भी दिव्य चित्र जरुरी है,मुख पुर्व के तरफ करके मंत्र जाप करना है,माला रुद्राक्ष का हो,भोग मे रोज़ सुखा मेवा चढाया जाता है,साधना रात्री मे 9 बजे के बाद किसी भी माह के कृष्ण पक्ष अष्टमी से अमावस्या तक करना है और आखरी दिन हवन मे काले तिल और घी से दशान्श आहूति देना है। हवन के बाद अनार का बलि देना है और श्रुंगार का सामग्री चढाया जाता है,रोज गुलाब का ही फुल अर्पित करें। मंत्र जाप से पुर्व और आखिर मे सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करे,रोज 11 माला मंत्र जाप करे। दुर्गासप्तशति यंत्र का चित्र दे रहा हू और यह यंत्र साधना से पुर्व ही अष्टगंध के स्याही से बनाना है,अनार का कलम इस्तेमाल करें,यंत्र भोजपत्र पर ही बनाना है।




। अथ सप्तश्लोकी दुर्गा ।


शिव उवाच

देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥

देव्युवाच

शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥



हाथ  मे जल लेकर विनियोग मंत्र बोलकर जल को जमीन पर छोडना हैं। 

विनियोग:

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमहामन्त्रस्य नारायण ऋषिः । अनुष्टुभादीनि छन्दांसि । श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः ।
श्रीदूर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ॥



ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ १॥


दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
        स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
        सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता ॥ २॥


सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ३॥


शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ४॥


सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ ५॥


रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥ ६॥


सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ॥ ७॥

        ॥ इति दुर्गासप्तश्लोकी सम्पूर्णा ॥





तांत्रोत्क चामुंडा मंत्र


।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।

om aim hreem kleem chaamundaayei vicche om gloum hoom kleem joom sah jwaalay jwaalay jwal jwal prajwal prajwal aim hreem kleem chaamundaayei vicche jwal ham sam lam ksham phat swaahaa





साधना के लाभ:-

इस साधना को करने से दरीद्रता का नाश होता है। इसको करने के बाद प्रत्येक साधना मे सफलता मिलता है,जिवन मे दुखो का अंत होता है। सर्वकार्य सिद्धी प्राप्त होता है,इच्छापुर्ति सिद्धी प्राप्त होता है,साधक के शरीर मे चेतना का विकास होता है। वाकसिद्धि प्राप्त होता है।
मै ज्यादा नही लिखना चाहूंगा,सिर्फ इतना लिख रहा हू "इस एक साधना समस्त प्रकार के सिद्धियों को प्राप्त करने मे सफलता प्राप्त होता है। यह अद्वितीय साधना को किये बिना इतर योनी जैसे अप्सरा, योगीनि, यक्षिणी....साधना मे सफलता प्राप्त करना कठिन है।






(नोट:कुछ दिनो से सुशील भाई व्यस्त होने के कारण शायद और कुछ दिनो तक फोन पर बात नही कर पायेंगे,परंतु ई-मेल से आपका और हमारा संम्पर्क बना रहेगा।

-प्रकाश) 




आदेश.....