9 Apr 2016

शव साधना.

तंत्र के नाथ शाखा मे कापालिक सम्प्रदाय के तांत्रिक शव-साधना मे पारंगत होते है,येसे ही एक तांत्रिक महाकाल भैरवानन्द सरस्वती जी है,उनकी उम्र ९० साल की है परंतु वो आज भी 30-40 वर्ष उम्र के दिखाई पडते है ,और उनका लंबाई 6 फुट,हमेशा काले रंग के वस्त्र धारण करते है,गले मे माँ कामाख्या देवी जी का छोटासा पारद विग्रह रखते है,१९६५ मे अघोर संन्यास लेकर उन्होने तंत्र साधनाये आरंभ की थी,वे ‘सरस्वती नामा’ और हमारे प्यारे सदगुरुजी से दीक्षीत है,उन्होने शव साधना कई बार की है और पूर्ण सफलता भी प्राप्त की है,एक बार मुझे उनके प्यारे शिष्य श्री रूद्रेश्वर भैरवानन्द सरस्वती जी के साथ शव-साधना के बारे मे चर्चा करनेका सौभाग्य मिला और उसी चर्चा मे उन्होने शव साधना का विधि भी बताया,अब गुरुजी के कृपा से सुशिल जी को 7 वर्ष पूर्व उनके आश्रम मे यह अद्वितीय साधना करने का अनुमति मिला था।

प्रक्टिकल साधना विधि जो श्री रूद्रेश्वर भैरवानन्द सरस्वती जी के मुख से सुशिल जी (श्री गोविंदनाथ) ने की है और उसको प्राप्त करके पाठको के लिये यहा दीया जा रहा है। यह साधना प्राप्त करके आज 7 वर्ष पुर्ण हुए है।



यह साधना रात्री काल कृष्ण पक्ष की अमावस्या मे,या कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष की चतुर्दशी और दिन मंगलवार हो तो शव साधना काफी महत्वपूर्ण हो जाती है,शव साधना के पूर्व ही ये जान लेना आवश्यक है के शव किस कोटी का है,क्योकों शव साधना के लिये किसी चांडाल या अकारण गए युवा व्यक्ति (२०-३५) अथवा दुर्घटना से मरे व्यक्ति का शव ज्यादा उपयुक्त मानते है,वृद्ध रोगी येसे लोगो के शव कोई काम मे नहीं आते है।


सर्वप्रथम पूर्व दिशा की ओर अभिमुख होकर ‘फट मंत्र’ पढ़ना है, इसके बाद चारो दिशाए कीलने के लिये पूर्व दिशा मे अपने गुरु, पश्चिम मे बटुक भैरव , उत्तर मे योगिनी और दक्षिण मे विघ्नविनाशक गणेश को विराजमान करने के लिये आराधना करनी है । शमशान की भूमि पर यह मंत्र अंकित करना है-


।। "हूं हूं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरदंस्ट्रे प्रचंडे चंडनायिकेदानवान द्वाराय हन हन शव शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हूं फट "।।


इसके बाद तीन बार वीरार्दन मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि अर्पित करे (यहा पर वीरार्दान मंत्र नही दे रहा हू,उसे गोपनीय रख है )। इसके उपरांत बड़े विधि-विधान से पूर्वा दिशा मे श्मशानाधिपति, दक्षिण मे भैरव,पश्चिम मे काल भैरव तथा उत्तर दिशा मे महाकाल भैरव की पुजा सम्पन्न कर और काले मुर्गे का बलि प्रदान करे। इसके तुरंत बाद ‘ॐ सहस्त्रवरे हूं फट’ मंत्र से शिखाबंधन करना पड़ेगा । साधक यदि अपनी सुरक्षा करना नहीं जानता तो ‘शव-साधना’ पूरी नहीं हो सकती। इसीलिए आत्मरक्षा के लिये अमोघ मंत्र पढ़ना है-


"हूं ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर घोर घोतर तनुरुप चट चट पचट कह शकह वन वन बंध बंध घतपय घातय हूं फट अघोर मं"


फिर शव के सर के पास खड़े होकर सफ़ेद तिल का तर्पण करना है । परिक्रमा भी करनी है और ‘ॐ फट’ मंत्र से शव को अभिमंत्रित किया। फिर यह मंत्र पढ़ना है‘ॐ हूं मृतकाय नमः फट’और उसे स्पर्श करे , पुष्पांजलि देकर मंत्र पढे-


"ॐ वीरेश प्रमानंद शिवनंद कुलेश्वर, आनंद भैरवाकर देवी पर्यकशंकर। वीरोहं त्वं पप्रधामि उच्चष्ठ चंडिकारतने"


और शव को प्रणाम किरे । ‘ॐ हूं मृतकाय नमः’ मंत्र से प्रक्षालन कर उसे सुगंधित जल से स्नान कराये , शव को वस्त्र से पोंछे,फिर उस पर रक्तचन्दन का लेप किरे’।

मै यहा बता दूँ की सभी क्रियाए शव की सहमति से ही संभव है। रक्तचन्दन के बाद कोई साधक डर भी सकता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। इस अवस्था मे शव रक्तवर्णी हो जाता है। यदि ऐसा हो रहा हो तो साधक को तत्काल अपनी सुरक्षा मुकम्मल कर लेनी चाहिए अन्यथा शव उसका भक्षण कर सकता है।


अतएव अपने झोले मे से सेव निकाल कर ‘रक्त क्रो यदि देवेशी भक्षयेत कुलसाधकम’ मंत्र पढ़ते हुए शव के मुख मे डाले । फिर ताम्बूल खिलाये । कलोक्त पीठ मंत्र व ‘ॐ ह्रीं फट’ का उच्चारण किरे , इसके बाद शव को कंबल से अच्छी तरह ढँक दे और शव को कमर से उठाये । इतने मे ही आसमान मे बिजली कड़क उठटी है या फिर उठ सकती है । अब यह मंत्र पढे -


‘गत्वा शतश्रु साविघ्यं धारयेत कटिदेशत। यद युपद्रावयेत दा, दयात्रीष्ट्ठीवनं शवे’


यह मंत्र से ही शव शांत हो जाता है । इसके बाद दशों
दिशाओ और दिक्पालों की पुजा करे । फिर अनार का बलि दे । इसके बाद मंत्र पढे ‘ह्रीं फट शवासनाय नमः’। कहकर शव की अर्चना करे । शव को कब्जे मे लेने के लिये उसकी घोड़े की तरह सवारी भी करनी पड़ती है। इसलिए उसकी सवारी भी की जानि चाहिये । सवारी के बाद शव के केशो की चुटिया बांन्धे । फिर अपने गुरु एवं गणपति का ध्यान करे , फिर शव को प्रणाम करे । फिर शव के सम्मुख खड़े होकर यह मंत्र पढे-


"अद्ययैत्यादी अमुक गोत्र श्री अमुक शर्मा देवताया: संदर्शनमक्राम: अमुक मन्त्रास्यामुक्त संख्यक जपमहं करिष्ये " और संकल्प साधे ।


इसके बाद ‘ह्रीं आधार शक्ति कमलासनाय नमः’। मंत्र से आसन की पुजा करे । महाशंख की माला (मनुष्य शरीर की अस्थियों से बनी माला) से जप करना है । फिर मुख मे सुगंधित द्रव्य डालकर देवी का तर्पण करे । तत्पश्चात शव के सामने खड़े होकर-


"ॐ वशे मेभव देवेश वीर सिद्धिम देही देही महाभग कृताश्रय"


परायण मंत्र का पाठ किरे । सूत के द्वारा शव को बांन्धे और मंत्र बोले-


"हुं हुं बंधय बंधय सिद्धिम कुरु कुरु फट"


फिर मूलमंत्र से शव को जकड़ ले-


ॐ मद्रशोभव देवेश तीर सिद्धि कृतास्पद। ॐ भीमभव भचाव भावमोरान भावुक। जहाही मां देव देवेश। शव्नामाधिपदीपः


तीन बार परिक्रमा कर सिर मे गुरुदेव, हृदय मे इष्ट देवी का चिंतन करते हुए महाशंख की माला पर मंत्र का जप करे । सिद्धि के बाद शव की चुटिया खोल दे । शव के पैर खोल दे एवं शरीर को बंधन मुक्त कर दे । शव को नदी मे प्रवाहित कर पुजा सामग्री को भी नदी मे प्रवाहित कर दे । याद रखे कापालिक हमेशा शव साधना मनुष्य की भलाई के लिये ही करता है।


कापालिक’ वही, जो इस दुनिया के दु:खो को अपने कपाल (सिर) पर लिये घूमता है।


यह विधि यहा पे दे रहा हु परंतु इसमे कुछ गोपनीय मंत्र एवं मुद्राये मैंने गुप्त रखी है ,फिर भी अगर कोई यह साधना करना चाहे तो मुजसे संपर्क करके प्राप्त कर सकता है,इस साधना से कई लाभ उटाये जा सकते है।

आजकल फेसबुक,सोशल नेटवर्किंग,व्हाटस् अप,ब्लोगर.....पर बहोत सारे कापालिक तंत्र दीक्षा देने वाले गुरु बन गये है। उनको शव साधना पुछो तो वह पुछनेवाले के मन मे डर पैदा कर देते है तो येसे मुर्खो से बचे। कोइ तारापिठ के नाम पर तो कोइ स्वयंभू कापालिक सम्प्रदाय का गुरु आपको मिल जायेगा जो सिर्फ छोटे-छोटे मंत्र देकर साधकों को मार्ग से भटकायेगा और अंततः वह साधक साधना करना ही छोड़ देगा। यही आजकल के मुर्ख गुरुओ का प्लान है,इससे ज्यादा कुछ लिखने से कोइ सुधारने वाला नही है। शव साधना से पुर्व "शव सिद्धि दीक्षा" प्राप्त करने से साधक बिना शव के भी साधना सम्पन्न कर सकता है क्युके दीक्षा के बाद साधना गिली मिट्टी का शव बनाकर भी कर सकते है। गिली मिट्टी से बने हुए शव के माध्यम से शव सिद्धि करनी हो तो इतना विधि-विधान करने का कोइ आवश्यकता नही है परंतु यह आसान विधान तो तब करना सम्भव है जब "शव सिद्धि दीक्षा" को प्राप्त किया जाये अन्यथा शव साधना शमशान मे शव पर बैठकर ही किया जा सकता हैं।






आदेश......