30 Mar 2016

सफल वशीकरण मंत्र प्रयोग.

ये सबसे प्राचीन वशीकरण प्रयोग है। जिसे मैने कई लोगो को बताया और इसका उनको सफल परिणाम प्राप्त हुआ । मै यही पर पुरा विधि-विधान देना चाहता था परंतु सोशल नेटवर्किंग पर कुछ नाजायज तांत्रिक है "जो यहा से पोस्ट को चुराते है और फेसबुक & व्हाटस्-अप पर डाल देते है",वैसे इन चोरो को आता तो कुछ नही है फिर भी स्वयं को तंत्र के क्षेत्र मे नाम बनाने हेतु चोरीया करने मे इनका डॉक्टरेट है। आनेवाले समय मे ये सभी चोर तंत्र का नाम डुबोने वाले है,कुछ साधना ये लोग भी करे तो इनको चोरी करने का काम नही पडेगा ।

यह लौंग (Loung) के माध्यम से किया जानेवाला वशीकरण क्रिया है। सही तरिके से किया जाये तो निच्छित सफलता प्राप्त होता है। लौंग मे वशीकरण करने के गुण होते है,सिर्फ लौंग का इस्तेमाल करते आना जरुरी है। यह प्रयोग उन व्यक्तिओ के लिये उत्तम है जो पत्निपिडीत है,जिनका जिवन नर्क बन गया हो उन्हे इससे अच्छा प्रयोग नही मिलेगा। परंतु जो पति अपने पत्नी को छोड़कर बाहरी स्त्रियों से सम्बन्ध बनाने हेतु प्रयोग करना चाहता हो तो "उन्हे इस प्रयोग से नुकसान ही होगा,फायदे की तो सोचना भी मत"।

मै ये प्रयोग इस लिये दे रहा क्युके आज के जमाने मे कई स्त्रियों को मैने अन्य पुरुषो के साथ भटकते हुए देखा है,हो सकता है वो दोनो अच्छे मित्र हो परंतु कुछ ओर भी सम्बन्ध हो सकते है,तो येसे समय मे पत्नी को तलाक देने से अच्छा उसे वश मे रखा जाये तो परिवार मे खुशियाँ बनी रहेगी। मित्रो आजकल इस दुनिया मे क्या चल रहा है ये तो सभी जानते है,यहा आज बात पुरुषों के हित की हो रही है परंतु स्त्रियों के हित के लिये भी आनेवाले समय मे साधना प्रयोग दिया जायेगा।




साधना विधि:-


किसी भी अमावस्या के दिन सुबह 9 बजे से पहिले स्नान करके एक कांच के शीशी (glass bottle) मे अपना विर्य (हस्तमैथुन क्रिया करके ) डाले और उसमे 7 साबुत लौंग डालकर शीशी का मुह झक्कन लगाकर बंद करदे । इस शीशी को येसे जगह घर मे कई छुपाया जाये "जहा सुर्य की रोशनी ना पडे और शीशी को कोई देख ना सके",इस शीशी को अगले अमावस्या तक छुपाके रखना जरूरी है। एक महीने बाद लौंग सुख जायेगी तो लौंग को शीशी मे से निकालकर अपने पास सुरक्षित रखें। अब रात मे 9 बजे के बाद एक मिट्टी के दिये मे कुछ कपुर का टिकिया जलाकर अग्नि प्रज्वलित करें। प्रत्येक लौंग पर 11 बार मंत्र बोलकर एक फुंक लगाये फिर लौंग को अग्नि मे डाल दे,लौंग अग्नि मे डालते समय मन मे यह भावना होना जरुरी है "मेरी पत्नी मुझसे बहोत प्रेम करती रहे और उसे मै जो भी कार्य करने को बोलु तो वह वही कार्य करे"। इस प्रकार से सातो लौंग पर मंत्र जाप करके अग्नि मे डालना है,अग्नि बुझने के बाद लौंग का राख (बभुत) तय्यार होगा । अब ये राख अपने पत्नी को किसी भी खाने-पिने के वस्तु मे डालकर खिला दिया जाये तो 3-7 दिनो मे आपको सफल वशीकरण का प्रभाव देखने मिलेगा ( जब पत्नी को मासिक धर्म चल रहा हो तब गलती से भी राख ना खिलाये) ।


सफल वशीकरण क्रिया को पुर्ण विधी के साथ दिया है परंतु मंत्र अधूरा दे रहा हूं। पुर्ण मंत्र आपको ई-मेल के माध्यम से प्राप्त होगा। मंत्र उसे ही दिया जायेगा जो इस बात का प्रमाण दे सके "वह शादि-शुदा है और अपने पत्नी के लिये प्रयोग करना चाहता हो"।अन्य लोग प्रयोग प्राप्त करने के लिये अपना समय बरबाद ना करें।


इस मंत्र को सिद्ध करना बहोत आसान है। यह मंत्र किसी भी शुक्रवार से मंगलवार तक 108 बार जाप करने से सिद्ध हो जाता है।

इस मंत्र को किसी किताब मे तलाश ना करे,यह अप्रकाशित मंत्र है जो गुरुमुख से सामाजिक कल्याण हेतु प्राप्त होता है।



मंत्र:-

।। काला चले काली रात,मद के प्याले पिये,स्मशान के बादशाह मेरा एक काम करे,मेरे पत्नी को वश मे कर दे ******************************* उसके दिलो-दिमाग मे मोहब्बत जगादे,मेरा इतना काम ना करे तो************************** ।।





यह मंत्र अचुक कार्य करता है इसलिये इस प्रयोग को सफल वशीकरण प्रयोग कहा जाता है।

आदेश.....

20 Mar 2016

अघोरी गंगाराम बाबा सिद्धि साधना.

भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है। तंत्र और अघोरवाद के जन्मदाता भगवान शिव ही हैं। नासिक मे स्थित श्मशान भी तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध है। वही के अघोरी बाबा से प्राप्त गंगाराम अघोरी के विषय मे आज यहा लिखा जा रहा है।

आधी रात के बाद का समय। घोर अंधकार का समय। जिस समय हम सभी गहरी नींद के आगोश में खोए रहते हैं, उस समय घोरी-अघोरी-तांत्रिक श्मशान में जाकर तंत्र-क्रियाएँ करते हैं। घोर साधनाएँ करते हैं। अघोरियों का नाम सुनते ही अमूमन लोगों के मन में डर बैठ जाता है। अघोरी की कल्पना की जाए तो शमशान में तंत्र क्रिया करने वाले किसी ऐसे साधू की तस्वीर जहन में उभरती है जिसकी वेशभूषा डरावनी होती है।

अघोर विद्या वास्तव में डरावनी नहीं है। उसका स्वरूप डरावना होता है। अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। और सरल बनना बड़ा ही कठिन है। सरल बनने के लिए ही अघोरी को कठिन साधना करनी पड़ती है। आप तभी सरल बन सकते हैं जब आप अपने से घृणा को निकाल दें। इसलिए अघोर बनने की पहली शर्त यह है कि इसे अपने मन से घृणा को निकला देना होगा।

अघोर क्रिया व्यक्त को सहज बनाती है। मूलत: अघोरी उसे कहते हैं जिसके भीतर से अच्छे-बुरे, सुगंध-दुर्गंध, प्रेम-नफरत, ईष्र्या-मोह जैसे सारे भाव मिट जाए। जो किसी में फ़र्क़ न करे। जो शमशान जैसी डरावनी और घृणित जगह पर भी उसी सहजता से रह ले जैसे लोग घरों में रहते हैं। अघोरी लाशों से सहवास करता है और मानव के मांस का सेवन भी करता है। ऐसा करने के पीछे यही तर्क है कि व्यक्ति के मन से घृणा निकल जाए। जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है। लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफ़न से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपनाता है।

अघोर विद्या भी व्यक्ति को ऐसी शक्ति देती है जो उसे हर चीज़ के प्रति समान भाव रखने की शक्ति देती है। अघोरी तंत्र को बुरा समझने वाले शायद यह नहीं जानते हैं कि इस विद्या में लोक कल्याण की भावना है। अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग करता है। अघोर विद्या या अघोरी डरने के पात्र नहीं होते हैं, उन्हें समझने की दृष्टि चाहिए। अघोर विद्या के जानकारों का मानना है कि जो असली अघोरी होते हैं वे कभी आम दुनिया में सक्रिय भूमिका नहीं रखते, वे केवल अपनी साधना में ही व्यस्त रहते हैं। हां, कई बार ऐसा होता है कि अघोरियों के वेश में कोई ढोंगी, आपको ठग सकता है। अघोरियों की पहचान ही यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है।

साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ। उनका अपना विधान है, अपनी अलग विधि है, अपना अलग अंदाज है जीवन को जीने का। अघोरपंथी साधक अघोरी कहलाते हैं। खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं, रोटी मिले रोटी खा लें, खीर मिले खीर खा लें, बकरा मिले तो बकरा, और मानव शव यहां तक कि सड़ते पशु का शव भी बिना किसी वितृष्णा के खा लें।

अघोरी लोग गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों का भक्षण करते हैं। मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक। अघोरपंथ में शायद श्मशान साधना का विशेष महत्व है, इसीलिए अघोरी शमशान वास करना ही पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है। श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं, इसीलिए साधना में विध्न पड़ने का कोई प्रश्न नहीं। अघोरियों के बारे में मान्यता है कि बड़े ही जिद्दी होते हैं, अगर किसी से कुछ मागेंगे, तो लेकर ही जायेगे। क्रोधित हो जायेंगे तो अपना तांडव दिखाये बिना जायेंगे नहीं। एक अघोरी बाबा की आंखे लाल सुर्ख होती हैं मानों आंखों में प्रचंड क्रोध समाया हुआ हो। आंखों में जितना क्रोध दिखाई देता हैं बातों में उतनी शीतलता होती हैं जैसे आग और पानी का दुर्लभ मेल हो। गंजे सिर और कफ़न के काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी बाबा के गले में धातु की बनी नरमुंड की माला लटकी होती हैं।

अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं - श्मशान साधना, शिव साधना, शव साधना। शव साधना के चरम पर मुर्दा बोल उठता है और आपकी इच्छाएँ पूरी करता है। इस साधना में आम लोगों का प्रवेश वर्जित रहता है। ऐसी साधनाएँ अक्सर तारापीठ के श्मशान, कामाख्या पीठ के श्मशान, त्र्यम्बकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्मशान में होती है।

शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पाँव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है।

शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहाँ प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।

अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत ही हठी होते हैं, अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते। गुस्सा हो जाएं तो किसी भी हद तक जा सकते हैं। अधिकतर अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जैसे वो बहुत गुस्सा हो, लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।

अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं। जहां एक छोटी सी धूनी जलती रहती है। जानवरों में वो सिर्फ कुत्ते पालना पसंद करते हैं। उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं, जो उनकी सेवा करते हैं। अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं, वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे पूरा करते हैं।

अघोरी दिन में सोने और रात को श्मशान में साधना करने वाले होते हैं। वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते। ना ही ज्यादा बातें करते हैं। वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं।

आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं। ये साधनाएं श्मशान में होती हैं और दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) काश्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान।






"महान अघोरी गंगाराम बाबा जी"

सामान्य साधक जब इतरयोनी या पराशक्ति साधना करते है तो उन्हे सफलता प्राप्त करना बहोत मुश्किल हो जाता है परंतु अघोरीयो के लिये ज्यादा मुश्किल कार्य नही है। आज से कुछ वर्ष पुर्व गंगाराम, औघड़नाथ,बुचरनाथ,मनसाराम,किनाराम जी......जैसे महान अघोरी थे,जो अब समाधिस्थ है। अघोर साम्प्रदाय मे अघोरी गंगाराम बाबा का नाम गर्व से लिया जाता है क्युके आज भी वह साधक को दर्शन देते है,उनकी मनोकामनाए पुर्ण करते है,उन्हे मनचाही सिद्धिया प्रदान करते है जब की बाबा को समाधिस्थ होकर 100 वर्ष से ज्यादा का समय हो गया है। आज भी उनकी उपस्थिति को सभी आघोर साम्प्रदाय के साधक शत् शत् नमन करते है। उन्होंने समाधिस्थ होने से पुर्व अपने शिष्यों को अघोर कंगन,अघोर रुद्राक्ष माला और अघोरी के आवाहन हेतु एक गोपनीय वस्तु दिया था,जिसका पुरा नाम नही लिया जाता है। जब उनके शिष्यों ने उनसे पुछा गुरुदेव "आपने हमे दिव्य साधना सामग्री और मंत्र दिया परंतु आज से कुछ वर्ष बाद अन्य  साधक आपके दर्शन करना चाहे,आपका मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहे एवं आपसे सिद्धियां प्राप्त करना चाहे तो उसको यह सब कैसे और कहा से उपलब्ध होगा?"
शिष्यो की भावना को समजते हुये महान अघोरी गंगाराम बाबा ने उन्हे साधना सामग्री हेतु ग्यान प्रदान किया,आज वह गोपनीय ग्यान अघोर सम्प्रदाय मे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। उनसे प्राप्त विधि-विधान,सामग्री और मंत्रो को अघोर सम्प्रदाय मे सर्वश्रेष्ठ स्थान मे माना जाता है।

यह साधना सामान्य गृहस्थ पुरुष/महिलाएं अपने घर पर भी कर सकते है। जिससे सिर्फ लाभ प्राप्त होता है  और किसी भी प्रकार की कोई हानी नही होता है। यहा लोग एक भूत, प्रेत, पिशाच, कलवा, यक्षिणी, योगिनी, अप्सरा सिद्धी को प्राप्त करने मेहनत करते है तो कुछ इनको प्राप्त करने के लिए भटकते रहेते है परंतु मै तो यह कहता हू "एक बार अघोरी गंगाराम बाबा का साधना करलो और उन्हे प्रसन्न करो तो एक भूत, प्रेत, पिशाच, कलवा, यक्षिणी, योगिनी ,अप्सरा को सिद्ध करने से अच्छा बाबा ये सब सिद्धियों को तो एक साथ ही प्रदान कर सकते है"।कुछ लोग एक भुत सिद्धि के लिये पागल हो जाते है परंतु बाबा के आशिर्वाद से साधक जितने चाहेगा उतने भुत सिद्ध कर सकता है क्युके उनमे अत्याधिक क्षमता है जिससे वो साधक पर प्रसन्न होते ही कुछ भी देने के लिये तय्यार हो जाते है।

महान अघोरी गंगाराम बाबा जी ने स्वयं अपने शिष्यों को कहा था "मेरे भक्तो पर इस दुनिया मे कोइ भी तांत्रिक गलत प्रयोग या काला जादू नही कर सकता है,वो चाहे तो किसीको भी अपने वश मे करके रख सकता है,वो कुछ भी खाद्य खा सकता है,जो चाहे वह पी सकता है,वो जो भी इच्छा करेगा उसके इच्छानुसार मै उसको शिघ्र फल प्रदान करुँगा"। बाबा बडे दयालु है वह क्रोध आनेपर भी साधक को माफ कर देते है । त्रिजटा अघोरी भी यही मानते है "महान अघोरी गंगाराम बाबा जी जैसे व्यक्तित्व इस संसार मे बहोत कम जन्म लेते है और उनके जन्म लेने से अघोर सम्प्रदाय मे ग्यान की वृद्धी होती है"।

जो साधक महान अघोरी गंगाराम बाबा जी को सिद्ध करने हेतु मंत्र और साधना सामग्री प्राप्त करना चाहते है वह अवश्य हमसे सम्पर्क करें - amannikhil011@gmail.com पर ।
इस साधना मे आपको पुर्ण मार्गदर्शन प्राप्त होगा,आज भी कोइ साधक उनके नाम से मंत्र जाप करके उन्हे मदिरा का भोग अर्पित करता है तो वह मदिरा पात्र मे से गायब हो जाती है,यह अनुभव बहोत से साधको ने देखा है । इस साधना मे जरुरी नही है के आपको मदिरा का भोग लगाना पडेगा परंतु साधक का इच्छा हो तो वह किसी पात्र मे मदिरा डालकर महान अघोरी गंगाराम बाबा जी को मदिरा का भोग लगा सकता है।

अब तक 5,00,000 लोगो ने हमारे इस ब्लोग को प्रेम दिया,अपने जिवन का मुल्यवान समय निकालकर सभी आर्टिकल पढे,साथ मे कुछ मित्र ब्लोग के प्रति समर्पित है उन सभी को मै दिल से धन्यवाद कहेता हू और मातारानी से प्रार्थना करता हू "आप सभी के जिवन मे खुशहाली हो"। हमारे ब्लोग के टिम ने जो अच्छा कार्य किया उनको भी धन्यवाद और आनेवाले समय मे सभी महान अघोरीयो के मंत्र विधान को साधक बंधु भगिनीयो को दिया जायेगा। इस साधना सामग्री का न्योच्छावर राशि 4800/- रुपये है और सामग्री के साथ आपको मंत्र विधान भी प्राप्त हो जायेगा। मंत्र विधान यही पोस्ट करने की हमारी इच्छा थी परंतु हमारे टिम ने सोचा "गोपनीय मंत्र विधान को गोपनीयता से देना ही उचित होगा,क्युके फेसबुक और व्हाट्स अप पर चोरो की कोइ कमी नही है,यहा हम जो भी पोस्ट करते है वो सब चोर यहा से कापि-पेस्ट करके अपने नाम से छापना शुरू कर देता है "। इसलिए अब हमे भी लगता है "गोपनीयता रखना आवश्यक कार्य है" अन्यथा चोरो की चोरिया नही रुकेगी ।




आदेश.......

16 Mar 2016

स्वर्णाकर्षण भैरव साधना.

स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप हैं, जिनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है। यह हमेशा पाताल में रहते हैं, जैसे सोना धरती के गर्भ में होता है। इनका प्रसाद दूध और मेवा है। यहां मदिरा-मांस सख्त वर्जित है। भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं। इस कारण इनकी साधना का समय मध्य रात्रि यानी रात के 12 से 3 बजे के बीच का है। इनकी उपस्थिति का अनुभव गंध के माध्यम से होता है। शायद यही वजह है कि कुत्ता इनकी सवारी है। कुत्ते की गंध लेने की क्षमता जगजाहिर है।

इनके साधना से अष्ट-दारिद्य्र समाप्त हो सकता है। जो साधक इनका साधना करता है,उसके जिवन मे कभी आर्थिक हानी नही होती एवं सिर्फ आर्थिक लाभ देखने मिलता है। इनके यंत्र का फोटो दे रहा हू,थोड़ा ठिक से देखिये "इसमे चित्र और यंत्र साथ मे है,यंत्र के उपर स्वर्ण पालिश है "। बाकी लोग यंत्र बेचने के नाम पर कुछ भी दे देते है परंतु यंत्र शुद्ध,चैतन्य,प्राण-प्रतिष्ठित होना जरूरी है। इस साधना मे जितना महत्व मंत्र का है उतना ही महत्व यंत्र का है। स्वर्णाकर्षण भैरव यंत्र स्थापन करने से बहोत सारे लाभ है,जिनको यहा पर लिखना भी सम्भव नही है।

साधना विधि:-सर्वप्रथम रात्री मे 11 बजे स्नान करके उत्तर दिशा मे मुख करके साधना मे बैठे।पिले वस्त्र-आसन होना जरुरी है। स्फटिक माला और यंत्र को पिले वस्त्र पर रखे और उनका सामान्य पुजन करे। साधना सिर्फ मंगलवार के दिन रात्री मे 11 से 3 बजे के समय मे करना है। इसमे 11 माला मंत्र जाप करना आवश्यक है। भोग मे मिठे गुड का रोटी चढाने का विधान है और दुसरे दिन सुबह वह रोटी किसी काले रंग के कुत्ते को खिलाये,काला कुत्ता ना मिले तो किसी भी कुत्ते को खिला दिजीये । सुशिल नरोले के तरफ से आपको पुर्ण विधि-विधान समजाया जा रहा है,ताकी साधना मे आपसे कोइ गलती ना हो ।

दहिने हाथ मे जल लेकर विनियोग मंत्र बोलकर जमिन पर छोड़ दिजीये ।

विनियोग -

।। ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरव महामंत्रस्य श्री महाभैरव ब्रह्मा ऋषिः , त्रिष्टुप्छन्दः , त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षणभैरवो देवता, ह्रीं बीजं , सः शक्तिः, वं कीलकं मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः।



अब बाए हाथ मे जल लेकर दहिने हाथ के उंगलियों को जल से स्पर्श करके मंत्र मे दिये हुए शरिर के स्थानो पर स्पर्श करे।

ऋष्यादिन्यासः

श्री महाभैरव ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि।
त्रिष्टुप छ्न्दसे नमः मुखे।
श्री त्रिमूर्तिरूपी भगवान
स्वर्णाकर्षण भैरव देवतायै नमः ह्रदिः।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये।
सः शक्तये नमः पादयोः।
वं कीलकाय नमः नाभौ।
मम्‍ दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं
स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः
सर्वांगे।



मंत्र बोलते हुए दोनो हाथ के उंगलियों को आग्या चक्र पर स्पर्श करे। अंगुष्ठ का मंत्र बोलते समय दोनो अंगुष्ठ से आग्या चक्र पर स्पर्श करना है।

करन्यासः

ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ऐं तर्जनीभ्यां नमः।
क्लां ह्रां मध्याभ्यां नमः।
क्लीं ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः।
क्लूं ह्रूं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
सं वं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।



अब मंत्र बोलते हुए दाहिने हाथ से मंत्र मे कहे गये शरिर के भाग पर स्पर्श करना है।

हृदयादि न्यासः

आपदुद्धारणाय हृदयाय नमः।
अजामल वधाय शिरसे स्वाहा।
लोकेश्वराय शिखायै वषट्।
स्वर्णाकर्षण भैरवाय कवचाय हुम्।
मम् दारिद्र्य विद्वेषणाय नेत्रत्रयाय वौषट्।
श्रीमहाभैरवाय नमः अस्त्राय फट्।
रं रं रं ज्वलत्प्रकाशाय नमः इति दिग्बन्धः।



अब दोनो हाथ जोड़कर ध्यान करे।

(ध्यान मंत्र का  उच्चारण करें। जिसका हिन्दी में सरलार्थ नीचे दिया गया है। वैसा ही आप भाव करें।)

ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम्।
अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित-पूरितपात्रकम्॥
अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम्।
सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम्॥
मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने, संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः।
भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं, स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति : सर्वदा॥

हिन्दी भावार्थ: श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार(सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं। उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं। उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं। उनके तीन नेत्र हैं। चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण — माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है। वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं उनकी शरण ग्रहण करता हूं। आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा वृष्टि करें।



मानसोपचार पुजन के मंत्रो को मन मे बोलना है।

मानसोपचार पूजन:

लं पृथिव्यात्मने गंधतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं गंधं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

हं आकाशात्मने शब्दतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं पुष्पं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

यं वायव्यात्मने स्पर्शतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं धूपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

रं वह्न्यात्मने रूपतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं दीपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

वं अमृतात्मने रसतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं अमृतमहानैवेद्यं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

सं सर्वात्मने ताम्बूलादि सर्वोपचारान् पूजां श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।




मंत्र :-

ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं स: वं आपदुद्धारणाय अजामलवधाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय ॐ ह्रीं महाभैरवाय नम:।

om aim klaam kleem klum hraam hreem hoom sah vam aapaduddhaaranaay ajaamalawadhaay lokeshwaraay swarnaakarshan bhairawaay mam daaridrya vidhweshanaay om hreem mahaabhairawaay namah




मंत्र जाप के बाद स्तोत्र का एक पाठ अवश्य करे।


श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र

।। श्री मार्कण्डेय उवाच ।।

भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !
पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं ।
तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् ।।
तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !।।

।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।

इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !
स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये ।।
सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् ।
दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् ।।
अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् ।
महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् ।।
महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।
न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा ।।
शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने ।
महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च ।।
निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् ।
स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः ।।
श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् ।।


विनियोगः- ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।


ध्यानः-

मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते ।
दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः ।।
भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् ।
स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः ।।



।। स्तोत्र-पाठ ।।

ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने,
नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने ।।
रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने ।
नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः ।
नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः ।।
नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः ।
नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे ।।
अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने ।
अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवाय ते नमः ।।
नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने ।
श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः ।।
दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः ।
नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः ।।
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे ।
अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः ।।
नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः ।
नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः ।।
नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः ।
नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः ।।
नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने ।
गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे ।।
नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः ।
नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः ।।
दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः ।
सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने ।।
रुद्र-लोकेश-पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च ।
नमोऽजामल-बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते ।।
नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने ।
उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः ।।
नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते ।
नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने ।।
नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः ।
धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः ।।
नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः ।
नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे ।।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः ।
नमः सुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्याय ते नमः ।।
नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे ।
नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः ।।
नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने ।
नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने ।।
नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः ।
नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः ।।
द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने ।
नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः ।।
पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने ।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने ।।
नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः ।
नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे ।।
स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः ।
नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने ।।
नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने ।
नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे ।।
चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने ।
कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने ।।
भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने ।
नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः ।।
स्तवेनानेन सन्तुष्टो, भव लोकेश-भैरव !
पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल !
श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम् ।
प्रसीद सकलान् कामान्, प्रयच्छ मम सर्वदा ।।


।। फल-श्रुति ।।

श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् ।
मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् ।।
यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते ।
लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् ।।
चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् ।
स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः ।।
संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः ।
स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः ।
स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ।
सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् ।
न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।
म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ।
अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।।
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।
य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा ।
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं ।।


अब क्षमा प्रार्थना करते हुए भैरवजी से आशिर्वाद मांगें।
इतना विधान करने के बाद आपके समस्त प्रकार के आर्थिक समस्या से आपको राहत मिलेगा। यंत्र को पुजा स्थान मे ही स्थापित रहेने दे और नित्य यंत्र का दर्शन करे। यंत्र-माला का न्योच्छावर राशि 2150/- रुपये है।






आदेश......

13 Mar 2016

ज्योतिष मे लाल किताब.

लाल किताब में ग्रह दोष निवारण के लिए सच्चरित्रता एवं सद्व्यवहारिकता को बहुत प्रमुखता दी गयी है। इस पद्धति में सकारात्मक और मनचाहे फल की प्राप्ति के लिए भाव परिवर्तन की विधि का भी प्रावधान है जिससे शुभ फल की प्राप्ति की जा सकती है। इस किताब के विधिवत सूत्र अर्थात ज्योतिषीय दृष्टिकोण, चमत्कारी उपाय व टोटके जनमानस की व्यवहारिकता की कसौटी पर दिन प्रतिदिन खरे उतरते चले गए तथा इस की लोकप्रियता बढ़ती रही।


ज्योतिषीय स्वरूपः- इस किताब के ज्योतिषीय स्वरूप में कुण्डली के भावों को ख़ााना अर्थात घर की संज्ञा दी गई है तथा जातकों के जन्म कुण्डली में लग्न को स्थाई रूप से मेष राद्गिा के रूप में बरकरार रखते हुए लग्न एक से लेकर बारह भावों की राशियों क्रमशः मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर, कुंभ व मीन के स्थानों को यथावत रखा गया है।

जिसमें सूर्य को पहले व पांचवें, चन्द्र को चौथे, मंगल को तीसरे व आठवें, बुध को छठे व सातवें, गुरू को दूसरे, नौवें व बारहवें, शुक्र को सातवें तथा शनि को आठवें, दसवें व ग्यारहवें भाव का कारक ग्रह माना गया है। रातु-केतु को कोई भाव नही दिया गया परन्तु छठे भाव में इनकी उपस्थिति को शुभ फल दायक कहा गया है। इस ग्रंथ के व्यवहारिक सिद्धांतों में राहु-सूर्य, राहु-चन्द्र, केतु-सूर्य, केतु-चन्द्र,शनि-राहू, शनि-केतु, शनि-चन्द्र तथा शनि-सूर्य की युतियों को शुभ फलदायक नही माना गया है। ग्रह-दोष निवारण में सच्चरित्र व सद्व्यवहारिकता को अधिक प्रमुखता दी गई है।

ग्रहों से संबधित वस्तुओं के दान के अतिरिक्त ग्रहों को मनचाहे ख़ााने में पहुंचाने व निर्बल तथा पाप ग्रहों के अनेकों प्रावधानों का उल्लेख है। ग्रहों का भाव (ख़ााना) परिवर्तन लाल किताब के ज्योतिषीय विधान में कुण्डली के अकारक व निर्बल भाव में स्थित किसी ग्रह के सकारात्मक व मन चाहे फल की प्राप्ति हेतु भाव परिर्वतन की विधि का भी प्रावधान है जिस के द्वारा किसी भी ग्रह को किसी भी भाव में स्थापित करके शुभफल की प्राप्ति की जा सकती है।



किसी ग्रह को पहले भाव अर्थात लग्न स्थान में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को गले में धारण करना।
दूसरे भाव में किसी ग्रह को पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को किसी धार्मिक स्थान पर रखना।
किसी ग्रह को तीसरे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित रत्न व धातु को हाथ या उंगुली में धारण करना।

किसी ग्रह को चौथे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दरिया की बहती जल धारा में प्रवाहित करना।

किसी ग्रह को पांचवे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को पाठशाला में दान करना। किसी
ग्रह को छठे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को कुऐं में डालना।

यदि किसी ग्रह को सातवें भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को जमीन की सतह के अन्दर दबाना।

आठवें भाव में यदि किसी ग्रह को पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को शमशान की सतह में जाकर दबाना।

किसी ग्रह को नौवे भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को धारण करना।

किसी ग्रह को दसवें भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित कोई खाने की वस्तु अपने पिता को खिलाना या किसी समीप के सरकारी कार्यालय की जमीन की सतह पर गाड़ देना।

ग्यारहवें भाव में कोई भी ग्रह उच्च या नीच का नही होता इस कारण इस स्थिति में किसी भी प्रकार के उपाय की आवश्यकता नही पड़ती।

किसी ग्रह को बारहवें भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को घर की छत पर रखना।


कुण्डली में यदि कोई ग्रह प्रबल व बलवान हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दान में देना लाल किताब में हानिकारक बताया गया है। ऐसा करने से ग्रहों के सकारात्मक प्रभावों को हानि पहुंचती है।

प्रबल व बलवान ग्रहों के हेतु निर्देशः-कुण्डली में यदि कोई ग्रह प्रबल व बलवान हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दान में देना लाल किताब में हानिकारक बताया गया है। ऐसा करने से ग्रहों के सकारात्मक प्रभावों को हानि पहुंचती है।

उदाहरणार्थ-यदि कुण्डली में सूर्य बलवान हो तो इस ग्रह से संबंधित वस्तु गुड़, गेहूं, लाल वस्त्र, तांबा, सोना, माणिक्य रत्न का दान करना वर्जित कहा गया है। ग्रह-दोषों का उपायः-कुण्डली व गोचर में किसी भी ग्रह की अनिष्टता के कारण उत्पन्न समस्या व उसके निवारण हेतु लाल किताब में अनेकों उपायों का उल्लेख है।
प्रत्येक उपाय को कम से कम 7 दिन व अधिक से अधिक 43 दिनों तक लगातार करने का निर्देश है। यदि प्रक्रिया का क्रम बीच में खंडित हो जाए तो पुनः विधिवत् इन प्रयोगों को फिर से पूर्ण करना चाहिए।


"सभी नौ ग्रहों की शांति के हेतु सूखे नारियल के अंदर घी  व खांड भरकर सुनसान जगह में स्थित चीटियों के बिल के अन्दर गाड़ने के प्रयोग को सर्वोत्तम उपाय की संज्ञा दी गई है। इस के अतिरिक्त सभी नौ ग्रहों के दोषों के अलग-अलग विधिवत् उपायों के भी सूत्र बताए गए हैं।"



सूर्यः-यदि कुण्डली में सूर्य छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो अथवा गोचर में निर्बल व अशुभ अवस्था में हो तो यह राजद्गााही समस्या, दुर्धटना में हड्डी टूटने, रक्त-चाप, दाई नेत्र में कष्ट, उदर व अग्नि-तत्व से संबंधित रोग व पीड़ा का कारक माना गया है।

उपायः-राजा, पिता व सरकारी पदाधिकारी का सम्मान करें। उदित सूर्य के समय में संभोग न करें। सूर्य से संबंधित कोई वस्तु बाजार से मुफ्त में न लें। पीतल के बर्तनों का सर्वदा प्रयोग करें। रविवार के दिन दरिया की बहती जलधारा में गुड़ व तांबा प्रवाहित करें।



चंद्रः-गोचर में चन्द्र निर्बल व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में छठे, आठवें, दसवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो इस कारण मानसिक पीड़ा, जल तत्व से जुड़ा रोग व पशु हानि की समस्यांए उत्पन्न हो जाती है।

उपायः- रात को दूध का सेवन न करें। जल व दूध को ग्रहण करते समय चाँदी के पात्र का प्रयोग करें। सोमवार के दिन दरिया की बहती जलधारा में मिश्री व चावल को सफेद कपड़े में बांधकर प्रवाहित करें। सोमवार के दिन अपने दाहिने हाथ से चावल व चाँदी का दान करें।



मंगलः-गोचर में मंगल निर्बल व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में चौथे व आठवें भाव में अकेला विराजमान हो तो इस अकारक अवस्था के कारण रक्त विकार, क्रोध, तीव्र सिर दर्द, नेत्र रोग व संतान हानि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः- बुआ अथवा बहन को लाल कपड़ा दान में दें। मंगलवार को दरिया की बहती जलधारा में रेवड़ी व बताद्गाा प्रवाहित करें। मूंगा, खांड, मसूर व सौंफ का दान करें। नीम का पेड़ लगाएं। मीठी तंदूरी रोटी कुत्ते को खिलाएं। रोटी पकाने से पहले गर्म तवे पर पानी की छींटे दें।



बुधः-गोचर में बुध नीच, अस्त व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में चौथे भाव में स्थित हो तो आत्म विश्वास की कमी, नशे, सट्टे व जुए की लत, बेटी व बहन को कष्ट, मानसिक तथा गले से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है।

उपायः- बुधवार के दिन भीगी मूंग का दान करें। मिट्टी के घड़े या पात्र में शहद रखकर किसी वीराने स्थान पर दबाएं। कच्चा घड़ा दरिया में प्रवाहित करें। तांबे का सिक्का गले में धारण करें। सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराएं व चूड़ी दान में दें। चौड़े हरे पत्ते वाले पौधे अपने घर की छत के ऊपर लगाएं।



गुरु :-गोचर में गुरु नीच, वक्री व निर्बल हो तथा कुण्डली में छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो तो मान-सम्मान में कमी, अधूरी शिक्षा, गंजापन, झूठे आरोप, पीलिया आदि जैसे रोग व समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः- माथे पर नित्य हल्दी अथवा केसर का तिलक करें। पीपल का वृक्ष लगाएं तथा केसर का तिलक करें। दरिया में गंधक प्रवाहित करें। पुरोहित को पीले रंग की वस्तु दान में दें।



शुक्र :-गोचर में शुक्र अशुुभ हो तथा कुण्डली में पहले, छठे व नौवें भाव में स्थित हो तो चर्मरोग, स्वप्न दोष, धोखा, हाथ की अंगूठी आदि निष्क्रिय होने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः- 43 दिनों तक किसी गंदे नाले में नीले फूल डालें। स्त्री का सम्मान करें। इत्र लगाएं। दही का दान करें। साफ सुथरे रहें तथा अपने बिस्तर की चादर को सिलवट रहित रखें।



शनिः-गोचर में शनि के अशुभ तथा कुण्डली में पहले, चौथे, पांचवें व छठे भाव में स्थित होने की अवस्था को आर्थिक हानि, कानूनी समस्या, गठिया रोग, पलकों के झड़ने, कन्या के विवाह में विलंब, आग लगने, मकान गिरने, नौकर के काम छोड़ने आदि घटनाओं का कारक माना गया है।

उपायः- लोहे का छल्ला अथवा कड़ा धारण करें। मछलियों को आटे की गोलियां खाने को दें। अपने भोजन का अंद्गा कौए को दें। सुनसान जगह के सतह पर सुरमा दबाएं।



राहु :-कुण्डली में राहु अशुभ व शत्रु ग्रह से युक्त हो तथा पहले, पांचवें, आठवें, नौवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो शत्रुता, दुर्धटना, मानसिक पीड़ा, क्षयरोग, कारोबार में हानि, झूठे आरोप आदि की समस्याऐं उत्पन्न होने लगती हैं।

उपायः- मूली दान में दें। जौ को दूध में धोकर दरिया में प्रवाहित करें। कच्चे कोयले को दरिया में प्रवाहित करें। हाथी के पांव के नीचे की मिट्टी कुऐं में डालें।



केतु :-कुण्डली व गोचर में अशुभ केतु फोड़े फुंसी, मूत्राद्गाय से संबंधित रोग, रीढ़ व जोड़ों का दर्द, संतान हानि आदि जैसी समस्या का कारक माना गया है।

उपायः- कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं। मकान के नीव की सतह पर शहद दबाएं। कंबल दान में दें। सफेद रेशम के धागे को कंगन की तरह हाथ में बांधे।


अगर आप अपने कुण्डली का विश्लेषण करेंगे तो आपको सही उपाय अवश्य ही प्राप्त होगा।




आदेश.....

12 Mar 2016

Parad Shivalinga and its benefits

Importance of Parad Shivling

Parad Shivling when worshipped with proper procedure, belief, and enthusiasm helps human beings physically, spiritually, and psychologically. Also protects people from natural calamities, disaster, external evil effects. Some of the reference in the ancient texts of Ayurveda and mythological origins which justifies these belief are as follows.

It is stated and believed in various texts that if a mercury Shivling is placed and worshipped in a house, society, or a temple. It is considered that it leads to prosperity, positive strength, and also considered that goddess Lakshmi resides at that place for generations to generation. Also a person is relieved of physical ,spiritual, psychological disorders.

Mercury Shivling can be obtained only through the blessings of renowned yogi ,guru, good fortune, because of which a person is able to perform noble deeds and therby attains moksha.
Rasmartand Granth explains...
The holiness, auspiciousness acquired by the sight and worship of purified Parad Shivling is crore times more then that of lakh of other Shivling. As just the sight of Parad Shivling neutralises an individual from dreadful sins like thousands of Brahmahatya, Cow's laughter and on touching Parad Shivling person is completely relieved of all these sins as quoted by Lord Shiva himself.
According to Ras Ratna Samuuchayy, it is considered that Shivling made of pure mercury is unique which leads to longetivity of life, prosperity, also washes away the sins from (ones) life.
Holy blessing which is obtain by performing 100 Ashwamegh Yagya, donating Lakhs of cows, donating ample of gold, and taking holy bath in all the four pilgrimage places (Char Dham) is equal to the sight (Darshan) of holy Parad Shivling.

People who worship Parad Shivling with all the good virtues, attain the blessings of Shivling present in all the 3 Loka's (Swarga Lok) and also destroys all bad sins. Possession of Mercury Shivling, its touch, donation, meditation, worship washes away all the bad sins of present life and past life also.

Writings of Sant Gyandev...

Mercury Shivling is considered the best to attain success and progress in today's world one can buy everything with money but purified Mercury Shivling (Yantrasiddha and Pranpratishtha Yukta) is possessed by only few lucky people. All Mahatmas, Sadhus of the world have stated that people who have worshipped pure Parad Shivling or even have got an opportunity to touch it are the luckiest as they get Bhautik (Spiritual) happiness along with Jeevan Mukti (Salvation). That is the reason why wealthy people, Sadhu Sanyasi (Saints), Politicians, Film Personalities, Brahmins try to obtain pure Mercury Shivling.

Writings from Rudra Samhita and Shastra...

It states that Ravan was a Rassiddha Yogi, and hence he used to worship Parad Shivling through which he was able to make Lord Shiva happy, and through which he was able to make his kingdom of gold. Similarly Banasur (Rakshas) also worshipped Parad Shivling and attained his desired wishes.
Yoga Shikoupanishad Granth states...
It states that Parad Shivling is Maha-Linga, also it is home to Lord Shiva's divine powers hence called "Shivalaya". It's attainment leads to prosperity and success.

Sarva Darshan Sangraha states...

It states that Lord Siva had told to goddess Parvati that a person who worships Parad Shivling. Fear and death cannot come closer to that person, also poverty never resides at their place.

Brahmapuran states...

It states that people of all the 4 categories according to Hindu Religion (Namely Brahmin, Kshatriya, Vaishya, Shudras) and even females can worship and attain blessings of Parad Shivling.
Brahma Vaivarta puran states...
It states that till the time there is existence of moon and the sun in the universe, till that time a person who worships Parad Shivling gets all its benefits in the form of wealth, prosperity, success, honour, respect,offsprings, intelligence which leads to the completion of satisfactory lifespan and attain moksha.

Shiv Puran states...

It states that people who slaughter cow, malign others, veerghati, Who influence abortion, who trouble their parents the sins of such people can also be washed away by only the sight of Parad Shivling.
Vayuviya Puran states...
It states that healthy body, longeitivity of life, prosperity and all other wishes of a person can be fulfilled by worshipping Parad Shivling.

Sharangdhar Samhita Adhyay 12 Sutra 1

It states about the importance and usefulness of pure Parad Shivling, in a form where spiritual powers like (Anima, Mahima, Garima, Ladhima, Prapti, Prakanta, Proshatva, Vishitwa), Ashta Siddhis like Simha, Vrushya, Hathi, Kalasha, Pankha, Vaijayanti, Bheri, Deepak) or (Brahmin, Cow, Agni, Gold, Tupa (Ghee), Sun, Water, King), Kubers 9 Wealth (Padma, Mahapadma, Shankha, Makar, Kachap, Mukund, Kunda, Neel, Kharva) all the holiness of the above mentioned Shaktis and Siddhis are present in Parad Shivling itself.

Reference from Rasratna Samucchaya states...

It states that the way an individual feels eternal happiness, satisfaction after worshipping their Lord, an aura of the Lord due to which various disorders are cured similar kind of an experience is felt by just the sight of Parad Shivling. It further states that such an Amrutmayi (Nectar like), Sudhasiddha (Purified) object should be worshipped. It further explains that worshipping Parad Shivling leads to eternal peace and happiness (i.e. A person is relieved from material things like Birth, Death, Oldage, Weakness, Pain of dreadfull bodily diseases. Further it explains that Para (Mercury) is a by product out of conception of Lord Shiva and Goddess Parvati, hence in different forms it relieves human beings of their physical, spiritual, psychological disorders.

Reference from Rasarnav Tantra states...

It states that a person who worshipps Parad Shivling, aquires all the four Purusharthas (4 vital parts of life ), those are Dharma (Noble Deeds), Artha (prosperity), Kama( Sexual Desires), Moksha (Eternal Peace, Salvation).
Further importance of Shivling is explained in a way that happiness, Prosperity (Punya) obtained by just the sight of a purified Parad Shivling is crore times more then worshipping thousands of renowned Shivling.

According to the Shivnirnay Ratnakar states...

It explains that worshipping a Shivling made of gold gives Punya million times more then worshipping Shivling made of stone. Similarly worshipping Shivling made of mani (Gemstones i.e. Manibaddha gives Punya million times more then the Shivling made of gold. Further it explains that worshipping Shivling of Banlinga Narmadeshwar gives million times more Punya then worshipping Manibaddha Shivling. At the end it states that worshipping a purified auspicious Parad Shivling gives million times more Punya then even the Shivling at Banlinga Narmadeshwar. Thus it is clear that out of all the Shivling made of different materials and pilgrimage sites, one made of purified Para (Mercury) is considered above par (excellent).

Mercury (parad) is also known as quicksliver or flowing metal. The glory of parad shivlinga has been stated in the puranas, shastras and tantra text.It is said to be the semen (seed) of Lord Shiva. To contain or bind mercury is very difficult, that too by medicinal herbs only.
In the ancient grantha (book) named Parad Samhita many rare medicinal herbs are mentioned which can help in the process of purifying mercury and removing all the dosha (ill effect) from it to make it stable and solid. Some important herbs like Chitrak, Nakhshinkani, Vyagrapadhi, Shankpushpi, Bhilavaa, Putrajivika,Laajwanti, Neem, Shami, Soamlata, Jatamaasi, Vakratundi, Kanguni, Jalakumbhi, Mahakali, Dantimool, Kumpari, Devdaali, Aawala, Indravan, Bel,Safed palas, Dudhi, Shivlingi, Safed gunj ect. play an important role in the purification procces. After this stage mercury (parad) comes completely in a pure from by undergoing the Ashtasanskar (eight stages of purification) as per the parad Samhita.
Only such stable and solid form of mercury can withstand at very high temperature when heated. It can also be made to powder by crushing as well as can be turned into liquid form by heating again. This siddha parad is then formed to make the unique Murtibaddha or Agnibaddha 'Parad Shivlinga'. If it comes in contact with gold or gold plated ornaments it has the power to change the color of gold into white or silver in color. This itself proves the purity and authenticity of our products.

Stages of making Parad Shivalingas

Stage 1
Ayurvedic medicinal herbs used in the process of purifying mercury (parad).

Stage 2
Ayurvedic medicinal herbs used in the process to make mercury (parad) solid.

Stage 3
Process of crushing semisolid mercury in herbal juices to remove further impurities.

Stage 4
Process of heat treatment done on solid mercury (parad) to make it withstand at high temperatures gradually.

Stage 5
Final process of purification done while heating solid mercury (parad) with the help of herbal oils.

Stage 6
Purified stage of solid mercury (agnibaddha or murtibaddha parad) poured in the form of strips (ladi) which is used to make the shivlinga.

Stage 7
The unique one piece die-casted parad shivlinga made from pure solid mercury.

Significance of Parad Shivlinga in Tantra
All the metals and sub-metals found in the world send out waves. Mercury is also a metal and sends out its waves likewise. As mercury(parad) is considered the most unstable among all the metals, similarly a persons mind is also very unstable and wavering.
Both are closely related. If mercury is stabilized by destroing its unsteadiness, its waves will also be stable and steady. This will cause agood effect on a persons mind. If one meditates beside a Parad Shivlinga, the mind naturally gets concentrated.

Therefore a compact from of mercury (Parad) is of great significance because it is extremely helpful in concentrating the mind. Mercury has a property of liquidity which, in itself involves the diffcult process of solidification.

It is belived that, to have a Shivlinga made by mercury (Parad) one must be blessed through good karmic deeds of the previous birth, but by the grace and compassion of Lord Shiva, we have achieved it and made it for the benifit of people of the world for peace and prosperity.

Mercury (Parad) is a very pious and sacred metal. Therefore it should not be immersed in any kind ofhot or boiling liquid, eg...milk & water etc. By doing such may cause mercury (parad) to become unstable therby damaging the idols.

Suvarnapuri Raslinga

In the world of metals mercury (parad) represents lord shiva and copper represents mata Parvati. According to the ancient grantha Parad samitha only agnibanddha parad (solid mercury that can withstand in high temperature) is able to convert copper into a yellowish golden metal. The shivlinga made from this metal is known as the 'Suvarna Raslinga'.
Some specific medicinal herbs, roots and leaves have the ability to make mercury solid and withstand at high temperature (Agnibandha). The Suvaranarupi Raslinga is a product of this uniqe process of mixing agnibadda parad into purified copper.

Suvarnaroopi Raslinga

According to ancient metallurgy, metals are also meant as representatives of gods. As mercury (Parad) is considered or said to be the semen (seed) of Lord Shiva, likewise gold and coper is
also the representative of Mata Parvati (Mahadevi).


Making of Suvarna Raslinga with Mercury (Parad) and Copper

After undergiong the process of ASHTASANSKAAR (eight stages of purification) as per the 'Parad Samhita', mercury (Parad) is called as 'Siddhaparad or Agnibaddha Parad. Only such parad has the capacity to withstand at high temperature in the heating process,and only this agnibadhha parad has the power of converting copper into a yellowish golden metal.Copper is melted in the furnace at a very high temperature about 1050 degrees and at the same time mercury is also melted separately. When both the metals melt down, mercury is slowly poured into the crucible of molten copper. This process of mixing the two metals result in a small explosion with a big crackling sound and thick smoke.The final result of this mixture is the new yellowish golden metal.

This metal is again melted in the furnace at about 1050 degrees and then die-casted to make the Shivlinga. A Shivlinga made from this new metal is known as the ‘Suvarna Raslinga’ in Parad Samhita. After the final finishing treatments like grinding, buffing and polishing it is coated with a one gram gold plating which gives the shivlinga a golden look.

Stages of making Suvarnarupi Raslinga

Stage 1
Pure soild form of mercury (Parad).

Stage 2
Pure form of solid mercury(parad)and copper balls used in the making suvarnarupi raslinga.

Stage 3
Crucible filled with solid mercury and copper balls are kept in the furnace for melting.

Stage 4
Process of pouring hot molten mercury into molten copper to form a new golden metal.

Stage 5
Pouring molten mercury into molten copper results into a small blast with crackling sound and thick smoke.

Stage 6
A new yellowish golden metal formed by the fusion of solid mercury(parad) and copper poured in the form of strips (ladi).

Stage 7
The new yellowish golden metal is kept in a crucible and placed in the furnace for melting.

Stage 8
The new molten metal is poured into the die to take the shape of a shivlinga.

Stage 9
The unique die-casted one piece shivlinga also known as the suvarnarupi raslinga.
Benefits of Parad Shivlinga

It had been explained in the ancient garanths (book) like Ras Ratnakar, Ras Chandasu, Parad Samhita, Rasendara Chudamani ect. that by the very touch of such Parad Shivlinga a person gets the benifit of Shiv pooja in all the three lokas (cosmic worlds).
A person who aquires Parad Shivlinga in his life and does correct ritualistic pooja and archana, reaps the benifits of worshipping all the Shivlingas present in the three lokas, or doing a hundred Ashwamegh yadnyas, or donating ten million cows or donating ten thousand grams of gold ect. Only one Parad Shivlinga is capable of bestwoing such blessing.

By the worship of Parad Shivlinga even the henious sin of Bramhin-hatya, Gau-hatya, Bal-hatya (dosha due to killing of a priest, cow or child in previous births) can be totally washed off.
It is said in the Bramha-puranas that he who worships the Parad Shivlinga devotedly, wheather one is a male, female, bramhin, kshatriya, vaishya or shurdra, gets full worldly pleasures and at last attains supreme destination (moksha) .
Parad has a special significance in Ayurveda too. Wherever the Parad Shivlinga is establised disease and illness does not stay there. It helps in controlling various disease like, high blood pressure, asthama and heart problems and help to increase your will power. There will never be shortage of food, wealth, money or clothing and will bring prosperity to your house or office.



Thanks To Mr.Siva Subramanyan

Har Har Mahadev......

11 Mar 2016

बटुक भैरव साधना (Bhairav Tantra)


जीवन में सुख और दुःख आते ही रहते हैं। जहां आदमी सुख प्राप्त होने पर प्रसन्न होता है, वहीं दुःख आने पर वह घोर चिन्ता और परेशानियों से घिर जाता है, परन्तु धैर्यवान व्यक्ति ऐसे क्षणों में भी शांत चित्त होकर उस समस्या का निराकरण कर लेते हैं।

कलियुग में पग-पग पर मनुष्य को बाधाओं, परेशानियों और शत्रुओं से सामना करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में उसके लिए मंत्र साधना ही एक ऐसा मार्ग रह जाता है, जिसके द्वारा वह शत्रुओं और समस्याओं पर पूर्ण विजय प्राप्त कर सकता है, इस प्रकार की साधनाओं में ‘आपत्ति उद्धारक बटुक भैरव साधना’ अत्यन्त ही सरल, उपयोगी और अचूक फलप्रद मानी गई है, कहा जाता है कि भैरव साधना का फल हाथों-हाथ प्राप्त होता है।
भैरव को भगवान शंकर का ही अवतार माना गया है, शिव महापुराण में बताया गया है –


भैरवः पूर्णरूपो हि शंकरः परात्मनः।
मूढ़ास्ते वै न जानन्ति मोहिता शिवमायया।


देवताओं ने भैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की भांति रौद्र होने के कारण ही आप ‘कालराज’ हैं, भीषण होने से आप ‘भैरव’ हैं, मृत्यु भी आप से भयभीत रहती है, अतः आप काल भैरव हैं, दुष्टात्माओं का मर्दन करने में आप सक्षम हैं, इसलिए आपको ‘आमर्दक’ कहा गया है, आप समर्थ हैं और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले हैं।

आपदा-उद्धारक बटुक भैरव ‘शक्ति संगम तंत्र’ के ‘काली खण्ड’ में भैरव की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है कि ‘आपद’ नामक राक्षस कठोर तपस्या कर अजेय बन गया था, जिसके कारण सभी देवता त्रस्त हो गये, और वे सभी एकत्र होकर इस आपत्ति से बचने के बारे में उपाय सोचने लगे, अकस्मात् उन सभी के देह से एक-एक तेजोधारा निकली और उसका युग्म रूप पंचवर्षीय बटुक का प्रादुर्भाव हुआ, इस बटुक ने – ‘आपद’ नामक राक्षस को मारकर देवताओं को संकट मुक्त किया, इसी कारण इन्हें ‘आपदुद्धारक बटुक भैरव’ कहा गया है।


‘तंत्रालोक’ में भैरव शब्द की उत्पत्ति भैभीमादिभिः अवतीति भैरेव अर्थात् भीमादि भीषण साधनों से रक्षा करने वाला भैरव है, ‘रुद्रयामल तंत्र’ में दस महाविद्याओं के साथ भैरव के दस रूपों का वर्णन है और कहा गया है कि कोई भी महाविद्या तब तक सिद्ध नहीं होती जब तक उनसे सम्बन्धित भैरव की सिद्धि न कर ली जाय। ‘रुद्रयामल तंत्र’ के अनुसार दस महाविद्याएं और सम्बन्धित भैरव के नाम इस प्रकार हैं –


1. कालिका – महाकाल भैरव
2. त्रिपुर सुन्दरी – ललितेश्वर भैरव
3. तारा – अक्षभ्य भैरव
4. छिन्नमस्ता – विकराल भैरव
5. भुवनेश्वरी – महादेव भैरव
6. धूमावती – काल भैरव
7. कमला – नारायण भैरव
8. भैरवी – बटुक भैरव
9. मातंगी – मतंग भैरव
10. बगलामुखी – मृत्युंजय भैरव


भैरव से सम्बन्धित कई साधनाएं प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित हैं, जैन ग्रंथों में भी भैरव के विशिष्ट प्रयोग दिये हैं। प्राचीनकाल से अब तक लगभग सभी ग्रंथों में एक स्वर से यह स्वीकार किया गया है कि जब तक साधक भैरव साधना सम्पन्न नहीं कर लेता, तब तक उसे अन्य साधनाओं में प्रवेश करने का अधिकार ही नहीं प्राप्त होता।

‘शिव पुराण’ में भैरव को शिव का ही अवतार माना है तो ‘विष्णु पुराण’ में बताया गया है कि विष्णु के अंश ही भैरव के रूप में विश्व विख्यात हैं, दुर्गा सप्तशती के पाठ के प्रारम्भ और अंत में भी भैरव की उपासना आवश्यक और महत्वपूर्ण मानी जाती है।

भैरव साधना के बारे में लोगों के मानस में काफी भ्रम और भय है, परन्तु यह साधना अत्यन्त ही सरल, सौम्य और सुखदायक है, इस प्रकार की साधना को कोई भी साधक कर सकता है। भैरव साधना के बारे में कुछ मूलभूत तथ्य साधक को जान लेने चाहिये –


1. भैरव साधना सकाम्य साधना है, अतः कामना के साथ ही इस प्रकार की साधना की जानी चाहिए।

2. भैरव साधना मुख्यतः रात्रि में ही सम्पन्न की जाती है।

3. कुछ विशिष्ट वाममार्गी तांत्रिक प्रयोग में ही भैरव को सुरा का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।

4. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य साधना के अनुरूप बदलता रहता है। मुख्य रूप से भैरव को रविवार को दूध की खीर, सोमवार को मोदक (लड्डू), मंगलवार को घी-गुड़ से बनी हुई लापसी, बुधवार को दही-चिवड़ा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने तथा शनिवार को उड़द के बने हुए पकौड़े का नैवेद्य लगाते हैं, इसके अतिरिक्त जलेबी, सेव, तले हुए पापड़ आदिका नैवेद्य लगाते हैं।



साधना के लिए आवश्यक

ऊपर लिखे गये नियमों के अलावा कुछ अन्य नियमों की जानकारी साधक के लिए आवश्यक है, जिनका पालन किये बिना भैरव साधना पूरी नहीं हो पाती।

1. भैरव की पूजा में अर्पित नैवेद्य प्रसाद को उसी स्थान पर पूजा के कुछ समय बाद ग्रहण करना चाहिए, इसे पूजा स्थान से बाहर नहीं ले जाया जा सकता, सम्पूर्ण प्रसाद उसी समय पूर्ण कर देना चाहिए।

2. भैरव साधना में केवल तेल के दीपक का ही प्रयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त गुग्गुल, धूप-अगरबत्ती जलाई जाती है।

3. इस महत्वपूर्ण साधना हेतु मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त ‘बटुक भैरव यंत्र’ तथा ‘चित्र’ आवश्यक है, इस ताम्र यंत्र तथा चित्र को स्थापित कर साधना क्रम प्रारम्भ करना चाहिए।

4. भैरव साधना में केवल ‘काली हकीक माला’ का ही प्रयोग किया जाता है।




साधना विधान

इस साधना को बटुक भैरव सिद्धि दिवस (09 जुन 2016) अथवा किसी भी रविवार को सम्पन्न किया जा सकता है। भैरव शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैं। साधकों को नियमानुसार वर्ष में एक-दो बार तो भैरव साधनाएं अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए।

साधना वाले दिन साधक रात्रि में स्नान कर, स्वच्छ गहरे रंग के वस्त्र धारण कर लें। अपना पूजा स्थल साधना के पूर्व ही धौ-पौछ कर साफ कर लें। भैरव साधना दक्षिणाभिमुख होकर सम्पन्न करने से साधना में शीघ्र सफलता प्राप्त होती है।

अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर सर्वप्रथम गुरु चित्र स्थापित करें। गुरु चित्र के निकट ही भैरव का चित्र अथवा विग्रह स्थापित कर दें। सर्वप्रथम गुरु चित्र का पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। उसके पश्चात् भैरव चित्र के सामने एक ताम्र प्लेट में कुंकुम से त्रिभुज बनाकर उस पर ‘बटुक भैरव यंत्र’ स्थापित कर दें।

भैरव साधना में तेल का ही दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए। यंत्र स्थापन के पश्चात् बाजोट पर ही तेल का दीपक प्रज्ज्वलित कर उसका पूजन कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से करें। इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर सर्वप्रथम बटुक भैरव का ध्यान करें-



बटुक भैरव ध्यान:

वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥

दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्॥



अर्थात् भगवान् श्री बटुक भैरव बालक रूप ही हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुंघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव-मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं। वे उज्ज्वल रूपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं। कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल और दण्ड धारण किए हुए हैं। भगवान श्री बटुक भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है।

भगवान भैरव के ध्यान के बाल स्वरूप, आपदा उद्धारक स्वरूप के ध्यान के पश्चात् गंध, पुष्प, धूप, दीप, इत्यादि से निम्न मंत्रों के साथ ‘बटुक भैरव यंत्र’ का पूजन सम्पन्न करें –


ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।

ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।

ॐ यं वायु तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे घ्रापयामि नमः।

ॐ रं अग्नि तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे निवेदयामि नमः।

ॐ सं सर्व तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।

बटुक भैरव यंत्र पूजन के पश्चात् ‘काली हकीक माला’ से निम्न बटुक भैरव मंत्र की 7 माला मंत्र जप करें।




बटुक भैरव मंत्र

॥ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा॥



यह इक्कीस अक्षरों का मंत्र अत्यन्त ही महत्वपूर्ण माना गया है, एक दिवसीय इस साधना की समाप्ति के पश्चात् नित्य बटुक भैरव यंत्र अपने सामने स्थापित कर उसका संक्षिप्त पूजन कर एक माह तक नित्य उपरोक्त बटुक भैरव मंत्र की एक माला जप करने से साधक की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।


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Life is full of joys and sorrows. A person feels happy in pleasures, but gets filled with pain and tensions when confronted with adversity. However tolerant and patient individuals resolve such situations by thinking and acting calmly and coolly.
Man has to face obstacles, troubles and enemies at each step in this Kaliyuga, and Mantra Sadhana remains the only path to obtain complete victory over enemies and problems. One such exceedingly simple, useful and accurate Sadhana is “Aapatti Udhwarak Batuk Bhairav Sadhana”. It is said that one gets instant results by performing Bhairav Sadhanas. Lord Bhairav ​​is considered as an incarnation of Lord Shiva, Shiva Mahapuraana states that-


BhairavaH Poornroopo Hi ShankaraH ParaatmanaH |
Mudhaaste Ve Na Jaananti Mohitaa Shivmayayaa ||


While worshipping Lord Bhairava, the Gods have described that – You are “Kaalraaj” being similarly full of anger and rage; you are “Bhairav” being ever-powerful; even death is always afraid of you; so you are called Kaal Bhairav; you are capable of annihilating evil spirits; so you are known as “Aamardak”; you are fully proficient and you get pleased very quickly.
Aapada Udhwarak Batuk Bhairav
The Kali-Khanda of “Shakti Sangam Tantra” text while describing origin of Lord Bhairav states that a demon called “Aapad” became invincible after performing many austerities; due to which all the Gods were stricken, and they collectively thought about ways to counter this calamity; then a strong power oozed out of their bodies and the combination of these powers yielded five years aged Batuk; this Batuk freed Gods from this crisis by destroying Aapad; and therefore He is called “Aapduddhwarak Batuk Bhairav”.
“Tantralok” text explains origin of Bhairav word as “BhebhimadibhiH Avatiti Bheirev” i.e. Lord Bhairav protects from gigantic horrible evil effects. Rudryamal Tantra describes ten forms of Bhairav along with ten Mahavidhyas and states that no one can perfectly accomplish Mahavidhya Sadhana until he has successfully accomplished the corresponding Bhairav Sadhana. “Rudrayamal Tantra” states following ten Mahavidhyas and their corresponding Bhairavs –


1. Kaalika – Mahakala Bhairav
2. Tripur Sundari – Laliteshwar Bhairav
3 Tara – Akshabhya Bhairav
4. Chinnmasta – Vikraal Bhairav
5. Bhuvaneshwari – Mahadev Bhairava
6. Dhumavati – Kaal Bhairav
7. Kamla – Narayan Bhairav
8. Bhairavi – Batuk Bhairav
9. Matangi – Matang Bhairav
10 Baglamukhi – Mrityunjayi Bhairav


Many Bhairav Sadhana practices have been described in ancient Tantric texts; Jain texts also explain specific prayogs of Bhairav. Since ancient times it has been accepted by almost all the texts that unless one has accomplished Bhairav Sadhana, he doesn’t get the right to practice any other Sadhana.
“Shiva Purana” describes Lord Bhairav has an incarnation of Lord Shiva and “Vishnu Purana” states that Lord Bhairav is famous worldwide as a unit of Lord Vishnu, It is important and significant to perform worship of Lord Bhairav at the start and end of Durga Saptshati recitation.

Many people have fear and confusion regarding Sadhana of Lord Bhairav, but it is quite simple, gentle and soothing, any Sadhak can perform this type of Sadhana.
The Sadhak should understand some basic primary facts about Bhairav Sadhana-


1. Bhairav Sadhana is a willful Sadhana, so such a Sadhana should be performed with a wish.

2. Bhairav ​​Sadhana is primarily performed at night.

3. The Neivedeya of wine or beer is offered only in some specific Vammargi Sadhanas

4. The daily neivedeya offering in Bhairav Sadhana is different for each day. Mainly
Milk-Pudding on Sunday, Modak (laddu) on Monday, Lapasi prepared with ghee-gur on Tuesday, Dahi-Chiwra on Wednesday, Besan-Laddu on Thursday, roasted-chane (grams) on Friday and Pakode of Urad on Saturday. Moreover, offerings of jalebi, sev, fried papad etc are also done.



Important for Sadhana

In addition to the above rules, the Sadhak also needs to understand other important rules, one cannot attain accomplishment in Bhairav Sadhana without following these rules.

1. The offerings made in Bhairav worship should be partaken after some time. These cannot be taken away from the worship space, the entire offering should be consumed at that time itself.

2. Only oil Deepak/lamp is used in Bhairav ​​Sadhana. Guggul and Dhoop-agarbatti is also lighted.

3. The Mantra Siddh Prana Pratisthtita Yukt “Batuk Bhairav Yantra” and “Picture” are important in this Sadhana, the Sadhana should be started only after consecrating and worshipping this copper yantra and picture.

4. Only Black Hakeek Mala is used in Bhairav ​​Sadhana.



Sadhana Procedure

This Sadhana can be performed on Batuk Bhairav Siddhi Diwas (9 June 2016) or on any Sunday. Lord Bhairav is a quick pleasing deity. Sadhaks should practice Bhairav Sadhana at least couple of times every year.
After taking bath in night, wear clean dark colored robes. Clean and purify your worship-space before the Sadhana. One gets quick success by performing Bhairav Sadhana while seated facing South direction.

Spread red cloth on a wooden plank, and first setup Guru-picture . Setup Bhairav picture or statue near the Guru-picture. First perform Panchopchaar worship of Gurudev. Then place “Batuk Bhairav Yantra” on a copper plate after drawing a triangle with Kumkum on it. Place copper plate in front of Bhairav picture.
Only oil lamp should be lighted in Bhairav ​​Sadhana. After establishing Bhairav Yantra, light the oil lamp on wooden plank itself and worship it with Kumkum, rice and flowers.
Thereafter, meditate on Batuk Bhairav with folded hands-



Batuk Bhairav ​​Dhyaan –

Vande Balam Sfatik-Sdrisham, Kuntlolalaasi-Vaktram |
Diwyaakalpernava-Mani-MayeH, Kinkani-nupooradhyeiH ||


Deeptaakaram Vishad-Vandanam, Suprassanam Tri-Netram |
Hastaabjabhyam Batukmanisham, Shul-Dando Dadhanam ||



i.e. Lord Shree Batuk Bhairav is a child form. His body has crystal like luster. His face is illuminated with curly hairs. Various valuable stones like Kinkini, Nupur etc. decorate his waist and feet. He has a bright beauty, gorgeous face, and is full of joy with three eyes. He holds a spear and baton in his lotus like hands. All kinds of untimely deaths are destroyed by this sacred meditation of Lord Shree Batuk Bhairav, disasters get prevented, age gets increased and one obtains long life and freedom.
After meditation on child form and disaster-destroyer form of Lord Bhairav, worship “Batuk Bhairav Yantra” with fragrance, flowers, incense, lamp etc. with following mantras–


Om Lam Prithvi–Tattvatmakam Gandham Shreemad Aapdudhwaran-Batuk-Bhairav-Prityarthe Samarpayaami Namah |

Om Ham Aakash-Tattvatmakam Pushpam Shreemad Aapdudhwaran-Batuk-Bhairav-Prityarthe Samarpayaami Namah |

Om Yam Vayu-Tattvatmakam Dhoopam Shreemad Aapdudhwaran-Batuk-Bhairav-Prityarthe Samarpayaami Namah |

Om Ram Agni-Tattvatmakam Deepam Shreemad Aapdudhwaran-Batuk-Bhairav-Prityarthe Samarpayaami Namah |

Om Sam Sarv-Tattvatmakam Taambulam Shreemad Aapdudhwaran-Batuk-Bhairav-Prityarthe Samarpayaami Namah |


After Batuk Bhairav Yantra worship, chant 7 malas (rosary-rounds) of following Batuk Bhairav Mantra with Black Hakeek Mala-



Batuk Bhairav Mantra –

|| Om Hreem Batukaaye Aapdudhwaranaye Kuru Kuru Batukaaye Hreem Om Swaha ||



This twenty-one letters mantra is considered very important. After completion of this single day Sadhana, daily worship of Batuk Bhairav Yantra after setting it up in front of you, followed by one mala chanting of Batuk Bhairav Mantra will surely help the Sadhak in fulfilling his or her wishes.








आदेश........

6 Mar 2016

प्रचण्ड-चण्डीका साधना.

दस महा विद्याओं में छिन्नमस्तिका माता छठी महाविद्या कहलाती हैं। छिन्नमस्तिका देवी को मां चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है। मार्कण्डेय पुराण व शिव पुराण आदि में देवी के इस रूप का विस्तार से वर्णन किया गया है , इनके अनुसार जब देवी ने चण्डी का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया। दैत्यों को परास्त करके देवों को विजय दिलवाई तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा। परंतु देवी की सहायक योगिनियाँ अजया और विजया की रुधिर पिपासा शांत नहीँ हो पाई थी, इस पर उनकी रक्त पिपासा को शांत करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई। इस कारण माता को छिन्नमस्तिका नाम से पुकारा जाने लगा। छिन्नमस्तिका देवि को तंत्र शास्त्र मे प्रचण्ड चण्डीका और चिंतपुर्णी माता जी भी कहा जाता है।





साधना विधी-विधान:-


शाम के समय किसी भी प्रदोषकाल में पूजा घर में दक्षिण/पश्चिम मुखी होकर नीले रंग के आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने लकड़ी के पट्टे पर नीला वस्त्र बिछाकर उस पर छिन्नमस्ता यंत्र (जो ताम्रपत्र पर अंकित हो) स्थापित कर बाएं हाथ में काले नमक की डली लेकर दाएं हाथ से काले हकीक अथवा रुद्राक्ष माला से 21 माला मंत्र जाप करना है और जाप पुर्ण होने तक आसन से उठना नही है। इस साधना मे सिर्फ निले रंग के आसन और वस्त्र का उपयोग करे अन्य रंग निषेध है। आप चाहे तो यह साधना किसी भी नवरात्रि मे 9 दिनो तक भी कर सकते है।

दाएँ हाथ मे जल लेकर विनियोग मंत्र बोलकर जल को जमीन पर छोड़ दे,यहा विनियोग मंत्र मे अगर किसी दुसरे व्यक्ति हेतु यह साधना करना हो तो उसका नाम "मम्" के जगह पर ले सकते है। विनियोग मे "अभिष्ट कार्य सिध्यर्थे" के जगह पर अपनी मनोकामना बोलना है।




विनियोग :-

अस्य श्री छिन्नमस्तिका मंत्रस्य भैरव ऋषि :
सम्राट छंद: , श्री छिन्नमस्ता देवता , ह्रींकार बीजं ,
स्वाहा शक्ति: , मम (अभिष्ट कार्य सिध्यर्थे ) जपे विनियोग : ।।

जिन्हे न्यास समज मे आते हो,वही लोग न्यास करे अन्य साधक बिना न्यास के भी साधना कर सकते है। सुशिल जी का कहेना है "अगर किसीको न्यास करने का ग्यान ना हो तो मुल मंत्र का जितना दिया हो उससे 1/10 मंत्र जाप ज्यादा करना चाहिये।



ऋष्यादिन्यास :-

ॐ भैरव ऋषिये नमः शिरसी ||१||
सम्राट छंन्दसे नमः मुखे ||२||
श्री छीन्नमस्ता देवतायै नमः हृदये ||३||
ह्रीं ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये ||४||
स्वाहा शक्तिये नमः पादयो: ||५||
विनियोगाय नमः सर्वांगे ||६||




करन्यास :-

ॐ आं खड्गाय स्वाहा अंगुष्ठाभ्याम् नमः ||१||
ॐ इं सुखदगाय स्वाहा तर्जनीभ्याम नमः||२||
ॐ ॐवज्राय स्वाहा माध्यमाभ्याम नमः ३||
ॐ ऐ पाशाय स्वाहा अनामिकाभ्याम नमः ||४||
ॐ औ अंकुशाय स्वाहा कनिष्ठकाभ्याम नमः ||५||
ॐ अ: सुरक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्याम नमः||६||




हृदयादिन्यास :-

ॐ आं खड्गाय हृदयाय नमः स्वाहा ||१||
ॐ इं सुखदगाय शिरसे स्वाहा ||२||
ॐ ऊँ वज्राय शिखाये वष्ट स्वाहा ||३||
ॐ ऐ पाशाय कवचाय हूँ स्वाहा ||४||
ॐ औ अंकुशाय नेत्र त्रयाय वौषट स्वाहा ||५||
ॐ अ: सुरक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं अस्त्राय फट स्वाहा ||६||




व्यापक न्यास :-

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐ वज्रवेरोचनियै ह्रींह्रीं फट स्वाहा मस्तकादी पाद पर्यंतम ||१||
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐ वज्रवेरोचनियै ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा पादादी मस्त्कानतंम ||२||



इसके बाद ध्यान और माला पूजन करके मंत्र जाप प्रारंभ करेे।

ध्यान:-

प्रचण्ड चण्डिकां वक्ष्ये सर्वकाम फलप्रदाम्।
यस्या: स्मरण मात्रेण सदाशिवो भवेन्नर:।।




मंत्र :-

।। ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनियै ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा ।।


om shreem hreem hreem kleem aim vajra vairochaniyai hreem hreem phat swaahaa




जाप पूरा होने के बाद काले नमक की डली को बरगद के नीचे गाड़ दें। बची हुई सामग्री को जल प्रवाह कर दें। इस साधना से शत्रु का तुरंत नाश होता है, रोजगार में सफलता मिलती है मतलब मनचाही नौकरी मिलती है। नौकरी में प्रमोशन मिलता है तथा कोर्ट कचहरी वादविवाद व मुकदमो मे निश्चित सफलता मिलती है। महाविद्या छिन्नमस्ता की साधना से जीवन की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

इस साधना से प्रत्येक प्रकार के वशीकरण क्रिया को काटा जा सकता है और तंत्र दोष नाश हेतु यह साधना कलयुग मे अत्यंत तिष्ण है। घर मे किसी भी बुरी शक्तियों का प्रभाव हो तो इस साधना से वह तुरंत नष्ट हो जाता है। इस साधना से किसी भी व्यक्ति का मोटापा कम हो सकता है,मोटापा कम करने के लिये इससे बढिया कोइ मंत्र-तंत्र साधना नही है।समस्त प्रकार के रोगो का नाश इस साधना से सम्भव है और सभी समस्याओं से राहत भी मिलती है।

ताम्रपत्र पर अंकित छिन्नमस्ता यंत्र और माला प्राण-प्रतिष्ठित होना चाहिए,इससे साधना मे शिघ्र सफलता सम्भव है।




आदेश.....

4 Mar 2016

मातंगी मंत्र साधना.

वर्तमान युग में, मानव जीवन के प्रारंभिक पड़ाव से अंतिम पड़ाव तक भौतिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है । व्यक्ति जब तक भौतिक जीवन का पूर्णता से निर्वाह नहीं कर लेता है, तब तक उसके मन में आसक्ति का भाव रहता ही है और जब इन इच्छाओ की पूर्ति होगी,तभी वह आध्यात्मिकता के क्षेत्र में उन्नति कर सकता है । मातंगी महाविद्या साधना एक ऐसी साधना है जिससे आप भौतिक जीवन को भोगते हुए आध्यात्म की उँचाइयो को छु सकते है । मातंगी महाविद्या साधना से साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख ,शत्रुओ का नाश, भोग विलास,आपार सम्पदा,वाक सिद्धि, कुंडली जागरण ,आपार सिद्धियां, काल ज्ञान ,इष्ट दर्शन आदि प्राप्त होते ही है ।

इसीलिए ऋषियों ने कहा है -

" मातंगी मेवत्वं पूर्ण मातंगी पुर्णतः उच्यते "

इससे यह स्पष्ट होता है की मातंगी साधना पूर्णता की साधना है । जिसने माँ मातंगी को सिद्ध कर लिया फिर उसके जीवन में कुछ अन्य सिद्ध करना शेष नहीं रह जाता । माँ मातंगी आदि सरस्वती है,जिसपे माँ मातंगी की कृपा होती है उसे स्वतः ही सम्पूर्ण वेदों, पुरानो, उपनिषदों आदि का ज्ञान हो जाता है ,उसकी वाणी में दिव्यता आ जाती है ,फिर साधक को मंत्र एवं साधना याद करने की जरुरत नहीं रहती ,उसके मुख से स्वतः ही धाराप्रवाह मंत्र उच्चारण होने लगता है ।

जब वो बोलता है तो हजारो लाखो की भीड़ मंत्र मुग्ध सी उसके मुख से उच्चारित वाणी को सुनती रहती है । साधक की ख्याति संपूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल जाती है ।कोई भी उससे शास्त्रार्थ में विजयी नहीं हो सकता,वह जहाँ भी जाता है विजय प्राप्त करता ही है । मातंगी साधना से वाक सिद्धि की प्राप्ति होते है, प्रकृति साधक से सामने हाँथ जोड़े खडी रहती है, साधक जो बोलता है वो सत्य होता ही है । माँ मातंगी साधक को वो विवेक प्रदान करती है की फिर साधक पर कुबुद्धि हावी नहीं होती,उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है और ब्रह्माण्ड के समस्त रहस्य साधक के सामने प्रत्यक्ष होते ही है ।

माँ मातंगी को उच्छिष्ट चाण्डालिनी भी कहते है,इस रूप में माँ साधक के समस्त शत्रुओ एवं विघ्नों का नाश करती है,फिर साधक के जीवन में ग्रह या अन्य बाधा का कोई असर नहीं होता । जिसे संसार में सब ठुकरा देते है,जिसे संसार में कही पर भी आसरा नहीं मिलता उसे माँ उच्छिष्ट चाण्डालिनी अपनाती है,और साधक को वो शक्ति प्रदान करती है जिससे ब्रह्माण्ड की समस्त सम्पदा साधक के सामने तुच्छ सी नजर आती है ।
महर्षि विश्वमित्र ने यहाँ तक कहा है की " मातंगी साधना में बाकि नव महाविद्याओ का समावेश स्वतः ही हो गया है " । अतः आप भी माँ मातंगी की साधना को करें जिससे आप जीवन में पूर्ण बन सके ।

माँ मातंगी जी का साधना जो साधक कर लेता है वह तो गर्व से कह सकता है,मेरा यह अध्यात्मिक जिवन व्यर्थ नही गया । अगर मैंने स्वयं कभी मातंगी साधना नही की होती तो मुझे सबसे ज्यादा दुख आनेवाले कई वर्षो तक तकलीफ देता परंतु अध्यात्मिक जिवन के प्रथम पडाव मे ही मैने मातंगी साधना को इसी विधि-विधान से सम्पन्न कर लिया जो आज आप सभी के लिये दे रहा हूं।

साधना विधि:-साधना सोमवार के दिन,पच्छिम दिशा मे मुख करके करना है। पोस्ट मे मातंगी यंत्र का फोटो दे रहा हू,वैसा ही यंत्र भोजपत्र पर कुम्कुम के स्याही से बनाये। वस्त्र आसन लाल रंग का हो,साधना रात्रि मे 9 बजे के बाद करे। नित्य 51 माला जाप 21 दिनो तक करना चाहिए। देवि मातंगी वशीकरण की महाविद्या मानी जाती है,इसी मंत्र साधना से वशीकरण क्रिया भी सम्भव है। 21 वे दिन कम से कम घी की 108 आहूति हवन मे अर्पित करे। इस तरहा से साधना पुर्ण होती है।22 वे दिन भोजपत्र पर बनाये हुए यंत्र को चांदि के तावीज मे डालकर पहेन ले,यह एक दिव्य कवच माना जाता है।अक्षय तृतीया के दिन ''मातंगी जयंती'' होती है और वैशाख पूर्णिमा ''मातंगी सिद्धि दिवस'' होता है. ,इन १२ दिनों मे आप चाहे जितना मंत्र जाप कर सकते है ।



विनियोग:

अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि विराट् छन्दः मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्तिः क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।


ऋष्यादिन्यास :

ॐ दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसी ।१।
विराट् छन्दसे नमः मुखे ।२।
मातंगी देवतायै नमः हृदि ।३।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये ।४।
हूं शक्तये नमः पादयोः ।५ ।
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ ।६।
विनियोगाय नमः सर्वांगे ।७।


करन्यासः

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।१।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।२।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।३।
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।४।
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।५।
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।६।


हृदयादिन्यास:

ॐ ह्रां हृदयाय नमः ।१।
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ।२।
ॐ ह्रूं शिखायै वषट् ।३।
ॐ ह्रैं कवचाय हूं ।४।
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।५।
ॐ ह्रः अस्त्राय फट् ।६।


ध्यानः

श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैर्विभ्रतीं, पाशं खेटमथांकुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम् ।
रत्नालंकरणप्रभोज्जवलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां
मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वाथसिद्धिप्रदाम् ।।



मंत्रः

।। ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।।

(om hreem kleem hoom matangyei phat swaahaa)


ये मंत्र साधना अत्यंत तीव्र मंत्र है । मातंगी महाविद्या साधना प्रयोग सर्वश्रेष्ठ साधना है जो साधक के जिवन को भाग्यवान बना देती है। मंत्र जाप के बाद अवश्य ही कवच का एक पाठ करे।




मातंगी कवच

।। श्रीदेव्युवाच ।।

साधु-साधु महादेव ! कथयस्व सुरेश्वर !
मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ।।

श्री-देवी ने कहा – हे महादेव ! हे सुरेश्वर ! मनुष्यों को सर्व-सिद्धि-प्रद दिव्य मातंगी-कवच अति उत्तम है, उस कवच को मुझसे कहिए ।


।। श्री ईश्वर उवाच ।।

श्रृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं ।
गोपनीयं महा-देवि ! मौनी जापं समाचरेत् ।।

ईश्वर ने कहा – हे देवि ! उत्तम मातंगी-कवच कहता हूँ, सुनो । हे महा-देवि ! इस कवच को गुप्त रखना, मौनी होकर जप करना ।


विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।


ऋष्यादि-न्यासः-

श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि ।
विराट् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि ।
चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।



।। मूल कवच-स्तोत्र ।।

ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।
तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ।।

पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।
त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ।।

ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।
महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ।।

अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी ।
ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ।।

रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च ।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ।।

महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।
लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ।।

चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः ।
स-विसर्ग महा-देवि ! हृदयं पातु सर्वदा ।।

नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।
उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ।।

उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका ।
भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ।।

जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।
विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ।।

नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा ।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ।।

रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।
ऊर्घ्वं पातु महा-देवि ! देवानां हित-कारिणी ।।

पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी ।
प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ।।

मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।
सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ।।


हिंदी अर्थ:

मातंगिनी देवी मेरे मस्तक की रक्षा करे, भुवनेश्वरी दो नेत्रों की, तोतला देवी दो कर्णों की, त्रिपुरा देवी मेरे बदन-मण्डल की, महा-माया मेरे कण्ठ की, माहेश्वरी मेरे हृदय की, त्रिपुरा दोनों पार्श्वों की और कामेश्वरी मेरे गुह्य-देश की रक्षा करे ।

चण्डी दोनों ऊरु की, रति-प्रिया जंघा की, महा-माया दोनों चरणों की और कुलेश्वरी मेरे सर्वांग की रक्षा करे । वैष्णवी सतत मेरे अंग-प्रत्यंग की रक्षा करे, मातंगी ब्रह्म-रन्घ्र में अवस्थान करके मेरी रक्षा करे । महा-पिशाचिनी बराबर मेरे ललाट की रक्षा करे, सुमुखी चक्षु की रक्षा करे, देवी नासिका की रक्षा करे ।

महा-पिशाचिनी वदन के पश्चाद्-भाग की रक्षा करे, लज्जा मेरे दन्त की और सम्मार्जनी-हस्ता मेरे दो ओष्ठों की रक्षा करे ।

हे महा-देवि ! तीन ‘ठं’ मेरे चिबुक और कण्ठ की और तीन ‘ठं’ सदा मेरे हृदय-देश की रक्षा करे । लीला माँ मेरे नाभि-देश की रक्षा करे, कालिका चक्षु की रक्षा करे, चामुण्डा जठर की रक्षा करे और कात्यायनी लिंग की रक्षा करे । उग्र-तारा मेरे गुह्य की, अम्बिका मेरे पद-द्वय की, शर्वाणी मेरे दोनों बाहुओं की और चण्ड-भूषण मेरे हृदय-देश की रक्षा करे । मातृका रसना की रक्षा करे, पुष्टिका पूर्व-दिशा की तरफ, विजया दक्षिण-दिशा कीतरफ और मेधा पश्चिम दिशा की तरफ मेरी रक्षा करे ।
श्रद्धा नैऋत्य-कोण की तरफ, लक्ष्मणा वायु-कोण की तरफ, शुभ-कारिणी मातंगी देवी ईशान-कोण की तरफ, सुवेशा अग्नि-कोण की तरफ, बाला उत्तर दिक् की तरफ और देव-वृन्द की हित-कारिणी महा-देवी ऊर्ध्व-दिक् की तरफ रक्षा करे । विश्व-रुपिणि वशिनी सर्वदा पाताल में मेरी रक्षा करे । ‘ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंगिन्यै फट् स्वाहा” – यह सार्द्धेकादश-वर्ण-मन्त्रमयी मातंगी सतत सकल स्थानों में मेरी रक्षा करे ।


।। फल-श्रुति ।।

इति ते कथितं देवि ! गुह्यात् गुह्य-तरं परमं ।
त्रैलोक्य-मंगलं नाम, कवचं देव-दुर्लभम् ।।

यः इदं प्रपठेत् नित्यं, जायते सम्पदालयं ।
परमैश्वर्यमतुलं, प्राप्नुयान्नात्र संशयः ।।

गुरुमभ्यर्च्य विधि-वत्, कवचं प्रपठेद् यदि ।
ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च, वाक्-सिद्धिं लभते ध्रुवम् ।।

नित्यं तस्य तु मातंगी, महिला मंगलं चरेत् ।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च, ये देवा सुर-सत्तमाः ।।

ब्रह्म-राक्षस-वेतालाः, ग्रहाद्या भूत-जातयः ।
तं दृष्ट्वा साधकं देवि ! लज्जा-युक्ता भवन्ति ते ।।

कवचं धारयेद् यस्तु, सर्वां सिद्धि लभेद् ध्रुवं ।
राजानोऽपि च दासत्वं, षट्-कर्माणि च साधयेत् ।।

सिद्धो भवति सर्वत्र, किमन्यैर्बहु-भाषितैः ।
इदं कवचमज्ञात्वा, मातंगीं यो भजेन्नरः ।।

झल्पायुर्निधनो मूर्खो, भवत्येव न संशयः ।
गुरौ भक्तिः सदा कार्या, कवचे च दृढा मतिः ।।

तस्मै मातंगिनी देवी, सर्व-सिद्धिं प्रयच्छति ।।


हिंदी अर्थ:

हे देवि ! तुमसे मैंने यह “त्रैलोक्य-मोहन” नाम का अति गुह्य देव दुर्लभ कवच कहा है । जो नित्य इसका पाठ करता है, वह सम्पत्ति का आधार होता है और अतुल परमैश्वर्य प्राप्त करता है, इसमें संशय नहीं है । यथा-विधि गुरु-पूजा करके उक्त कवच का पाठ करने से ऐश्वर्य, सु-कवित्व और वाक्-सिद्धि निश्चय ही प्राप्त की जा सकती है । मातंगी उसे नित्य नारी-संग दिलाती है । हे देवि ! ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, दूसरे प्रधान देव-वृन्द, ब्रह्म-राक्षस, वैताल, ग्रह आदि भूत-गण उस साधक को देखकर लज्जित होते हैं ।

जो व्यक्ति इस कवच को धारण करता है, वह सर्व-सिद्धियाँ लाभ करता है । नृपति-गण उसका दासत्व करते हैं । वह षट्-कर्म साधन कर सकता है । अधिक क्या, वह सर्वत्र सिद्ध होता है । इस कवच को न जानकर, जो मातंगी की पूजा करता है, वह अल्पायु, धन-हीन और मूर्ख होता है । गुरु-भक्ति सर्वदा परमावश्यक है । इस कवच पर भी दृढ़ मति अर्थात् पूर्ण विश्वास रखना परम कर्तव्य है । फिर मातंगी देवी सर्व-सिद्धियाँ प्रदान करती है




आदेश.....

3 Mar 2016

बगलामुखी वशीकरण प्रयोग.

भगवती बगलामुखी की उपासना कलियुग में सभी कष्टों एवं दुखों से मुक्ति प्रदान करने वाली है। संसार में कोई कष्ट अथवा दुख ऐसा नही है जो भगवती पीताम्बरा की सेवा एवं उपासना से दूर ना हो सकता हो, बस साधकों को चाहिए कि धैर्य पूर्वक प्रतिक्षण भगवती की सेवा करते रहें।

भगवती पीताम्बरा इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को चलाने वाली शक्ति हैं। नवग्रहों को भगवती के द्वारा ही विभिन्न कार्य सौपे गये हैं जिनका वो पालन करते हैं। नवग्रह स्वयं भगवती की सेवा में सदैव उपस्थित रहते हैं। जब साधक भगवती की उपसना करता है तो उसे नवग्रहों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि साधक को उसके कर्मानुसार कहीं पर दण्ड भी मिलना होता है तो वह दण्ड भी भगवती की कृपा से न्यून हो जाता है एवं जगदम्बा अपने प्रिय भक्त को इतना साहस प्रदान करती हैं कि वह दण्ड साधक को प्रभवित नही कर पाता। इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई भी इतना शक्तिवान नही है जो जगदम्बा कें भक्तो का एक बाल भी बांका कर सके। कहने का तात्पर्य यह है कि कारण चाहें कुछ भी हो भगवती बगलामुखी की उपासना आपको किसी भी प्रकार की समस्या से मुक्त करा सकती है।



दस महाविद्याओं में भी बगलामुखी के बारे में विशेष लिखा गया है और कहा गया है कि यह शिव की त्रि-शक्ति है –

"सत्य काली च श्री विद्या कमला भुवनेश्वरी।
सिद्ध विद्या महेशनि त्रिशक्तिबर्गला शिवे॥"

दुर्लभ ग्रंथ ‘मंत्र महार्णव’ में भी लिखा है कि –

"ब्रह्मास्त्रं च प्रवक्ष्यामि सदयः प्रत्यय कारणम।
यस्य स्मरण मात्रेण पवनोऽपि स्थिरायते॥"

बगलामुखी मंत्र को सिद्ध करने के बाद मात्र स्मरण से ही प्रचण्ड पवन भी स्थिर हो जाता है। भगवती बगलामुखी को ‘पीताम्बरा’ भी कहा गया है। इसलिए इनकी साधना में पीले वस्त्रों, पीले फूलों व पीले रंग का विशेष महत्व है किन्तु साधक के मन में यह प्रश्न उठता है, कि इस सर्वाधिक प्रचण्ड महाविद्या भगवती बगलामुखी का विशेषण पीताम्बरा क्यों? वह इसलिए कि यह पीताम्बर पटधारी भगवान् श्रीमन्नारायण की अमोघ शक्ति, उनकी शक्तिमयी सहचरी हैं।
सांख्यायन तन्त्र के अनुसार बगलामुखी को सिद्घ विद्या कहा गया है।

तंत्र शास्त्र में इसे ब्रह्मास्त्र, स्तंभिनी विद्या, मंत्र संजीवनी विद्या तथा प्राणी प्रज्ञापहारका एवं षट्कर्माधार विद्या के नाम से भी अभिहित किया गया है। सांख्यायन तंत्र के अनुसार कलौ जागर्ति पीताम्बरा अर्थात् कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीताम्बरा की साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि व्याधि से त्रस्त मानव मां पीताम्बरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण कर सकता है।
बगलामुखी के ध्यान में बताया गया है कि –

"ये सुधा समुद्र के मध्य स्थित मणिमय मंडप में रत्नमय सिंहासन पर विराजमान हैं। ये पीत वर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले पुष्पों की माला धारण करती हैंं इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्गर है।"

इन्हीं की शक्ति पर तीनों लोक टिके हुए हैं। विष्णु पत्नी सारे जगत की अधिष्ठात्री ब्रह्म स्वरूप हैं। तंत्र में शक्ति के इसी रूप को श्री बगलामुखी महाविद्या कहा गया है।
इनका आविर्भाव प्रथम युग में बताया गया है।



बगलामुखी महाविद्या दस महाविद्याओं में से एक हैं। इन्हें ब्रह्मास्त्र विद्या, षड्कर्माधार विद्या, स्तम्भिनी विद्या, त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। माता बगलामुखी साधक के मनोरथों को पूरा करती हैं। जो व्यक्ति मां बगलामुखी की पूजा-उपासना करता है, उसका अहित या अनीष्ट चाहने वालों का शमन स्वतः ही हो जाता है। मां भगवती बगलामुखी की साधना से व्यक्ति स्तंभन, आकर्षण, वशीकरण, विद्वेषण, मारण, उच्चाटन आदि के साथ अपनी मनचाही कामनाओं की पूर्ति करने में समर्थ होता है।

आज मै यहा बगलामुखी माता का एक अचुक वशीकरण प्रयोग दे रहा हूं। यह साधना प्रयोग अत्यंत तिष्ण है,इसका वार कभी खाली नही जाता है,यह बहोत साधको का अनुभव है। इसमें बगलामुखी वशीकरण यंत्र और माला साधक के पास होना आवश्यक है। इस साधना को किसी भी पक्ष के मंगलवार से कर सकते है परंतु होली/ग्रहण/दीपावाली/दशेहरा/बगलामुखी जयंती पर यह विधान करने से शिघ्र सफलता मिलता है। इस साधना को पुरुष/महिलाएं कर सकते है। साधना रात्रिकालीन है,इसमे रोज 11 माला जाप कार्यपुर्ती होने तक करें।





साधना विधि:-


साधक को माता बगलामुखी की पूजा में पीले वस्त्र धारण करना चाहिए।रात्रि मे स्नान करके उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र और वशीकरण यंत्र स्थापित करें। इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पुजन,घी का दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल(हल्दि से रंगे हुए), हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर इस प्रकार संकल्प करें-


।।ॐ  विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य……(अपने गोत्र का नाम) गोत्रोत्पन्नोहं ……(नाम) नाम: मम प्रिय अमुक(जिसका वशीकरण करना है,उसका नाम) व्यक्ति विशेष वशीकरण हेतु बगलामुखी वशीकरण मंत्र जाप एवं पूजनमहं करिष्ये।तदगंत्वेन अभीष्टनिर्वघ्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ: गणेशादयानां पूजनं करिष्ये ।।


इसके बाद भगवान श्रीगणेश का पूजन करें।नीचे लिखे मंत्रों से मंत्र बोलते हुए मानसिक रुप से गौरी आदि षोडशमातृकाओं का पूजन करें-


गौरी पद्मा शचीमेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातर:।।
धृति: पुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता।
गणेशेनाधिकाह्योता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।।

इसके बाद यंत्र और चित्र पर गंध, चावल व फूल अर्पित करें ।



अब देवी का हाथ जोड़कर ध्यान करें इस प्रकार…..

सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणैव्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत ।।



तत्पश्चात इस मंत्र का जप करते हुए देवी बगलामुखी का आवाहन करें-

नमस्ते बगलादेवी जिह्वा स्तम्भनकारिणीम्।
भजेहं शत्रुनाशार्थं मदिरा सक्त मानसम्।।




आवाहन के बाद उन्हें एक फूल अर्पित कर आसन प्रदान करें और जल के छींटे देकर स्नान करवाएं व अब इस प्रकार से बगलामुखी वशीकरण यंत्र पूजन करें-

गंध- ॐ बगलादेव्यै नम: गंधाक्षत समर्पयामि।
मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीला चंदन/हल्दि लगाएं ।

पुष्प- ॐ बगलादेव्यै नम: पुष्पाणि समर्पयामि।
मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले फूल चढ़ाएं।

धूप- ॐ बगलादेव्यै नम: धूपंआघ्रापयामि।
मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को धूप दिखाएं।

दीप- ॐ बगलादेव्यै नम: दीपं दर्शयामि।
मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को दीपक दिखाएं।

नैवेद्य- ॐ बगलादेव्यै नम: नैवेद्य निवेदयामि।
मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।



अब इस प्रकार प्रार्थना करें-

जिह्वाग्रमादाय करणे देवीं, वामेन शत्रून परिपीडयन्ताम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।



बगलामुखी वशीकरण मंत्र:-

।। ॐ बगलामुखी सर्व स्त्री ह्रदयं मम् वश्यं कुरू ऐं ह्रीं  स्वाहा ।।

om bagalaamukhi sarv stree hridayam mam vashyam kuru aim hreem swaahaa



इस मंत्र मे "सर्व" के जगह पर उस व्यक्ति का नाम लेना है,जिसका आप वशीकरण करना चाहते है। कोई स्त्री किसी पुरुष को वशीकरण करना चाहती हो तो मंत्र मे "स्त्री" के जगह पर "पुरुष" शब्द का उच्चारण करें।


इस तरहा से पुजन और मंत्र जाप करने से मनचाहे व्यक्ति का वशीकरण होता है। साधना के कुछ नियम है जिसे याद रखना जरुरी है। साधना काल मे ब्रम्हचैर्यत्व का पालन करे,झुट बोलने से बचे,जमिन पर ही गद्दी डालकर सोना है,हो सके तो साधना काल मे एक समय भोजन करे,किसी भी स्त्री/पुरुष के प्रती अच्छे नजर से देखे मतलब मन मे कामुकता ना आये। इन नियम को पालन करने से सफलता प्राप्त होता है। बगलामुखी वशीकरण यंत्र और माला के शक्ति से आपका कार्य शिघ्र होना सम्भव है।




अब देवि से क्षमा प्रार्थना करें-

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।






आदेश......