6 Jan 2017

षोडश काली नित्या साधना.

सभी वेबसाइट पर पंद्रह काली नित्या साधनाये दिया हुआ है इसलिए मै यहा षोडश काली नित्या साधना विधी-विधान के साथ दे रहा हूं। यह साधना किसी भी अमावस्या से प्रारंभ करें या फिर अब आनेवाले ग्रहण काल मे करें। यह साधना गुरुगम्य है इसलिए इसका महत्व अधिक है। यह साधना कइ योगी महायोगी तपस्वी और अघोर साधकों ने किया हुआ है। इस साधना से साधक को स्वयं भगवती काली अपनी विशेष  क्रुपा साधक पर बरसाती है,इसी साधना से कइ साधको ने जिवन मे अन्य साधनाओं मे सिद्धीया प्राप्त की है। जब कोइ साधक साधनाओं मे असफल हो जाये तब उसको काली नित्या साधना अवश्य करना चाहिए।


साधना विधी-

अमवस्या के रात्री मे साधक को स्नान करके लाल वस्त्र पहनकर अपने साधना स्थल पर बैठना है। माथे पर बभुत का त्रिपुण्ड लगाना है और बिच मे लाल कुम्कुम का अंगुठे से तिलक करना है। सामने कोई लकड़ी का बाजोट रखे और उस पर लाल वस्त्र बिछाकर भगवती काली का चित्र स्थापित करें। चित्र के सामने सोलह पान के पत्ते रखे,पान के वो पत्ते होने जिसमें हम कथ्था चुना मिलाकर खाते है। पत्तो को अच्छेसे धोकर रखें,पत्ते फटे नही होने चाहिए। अब उन पत्तो पर सोलह सुपारीया स्थापित करदे और भगवती चित्र के साथ उन पत्तो पर रखे हुए सुपारीयो का सामान्य पुजन करें। सामान्य पुजन का मतलब है,कुम्कुम पुष्प चढाना,धूप दिप ("यहा पर कडवे (सरसों) तेल का जरुरी है") जलाना, प्रसाद स्वरुप मे कुछ मिठा भोग रखें। अब सामान्य पुजन के बाद काली हकिक माला से दिये हुए प्रत्येक मंत्र का कम से कम एक माला जाप करना आवश्यक है। जब तक पुर्ण मंत्र जाप नही होता है तब तक आसन से उठना नही है और साथ मे रोज एक पाठ काली कीलकम का करना है। इस तरहा से हमे यह साधना ग्यारह दिनो तक करना है ।


मंत्र-

१. काली :-

प्रथम नित्य का नाम भी काली ही है और मंत्र है :-

II ॐ ह्रीं काली काली महाकाली कौमारी मह्यं देहि स्वाहा II


२. कपालिनी :-

माता काली कि द्वितीय नित्य का नाम कपालिनी है और मन्त्र है :-

II ॐ ह्रीं क्रीं कपालिनी - महा - कपाला - प्रिये - मानसे कपाला सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा II


३. कुल्ला :-

माता काली कि तृतीय नित्या का नाल कुल्ला है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं कुल्लायै नमः II


४. कुरुकुल्ला :-

माता कि चतुर्थ नित्या का नाम कुरुकुल्ला है और मंत्र है :-

II क्रीं ॐ कुरुकुल्ले क्रीं ह्रीं मम सर्वजन वश्यमानय क्रीं कुरुकुल्ले ह्रीं स्वाहा II


५. विरोधिनी :-

माता कि पंचम नित्या का नाम विरोधिनी है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं ह्रीं क्लीं हुं विरोधिनी शत्रुन उच्चाटय विरोधय विरोधय शत्रु क्षयकरी हुं फट II


६. विप्रचित्ता :-

माता कि छटवीं नित्या का नाम विप्रचित्ता है और मंत्र है :-

II ॐ श्रीं क्लीं चामुण्डे विप्रचित्ते दुष्ट-घातिनी शत्रुन नाशय एतद-दिन-वधि प्रिये सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा II


७. उग्रा :-

माता कि सप्तम नित्या का नाम उग्रा है और मंत्र है :-

II ॐ स्त्रीं हुं ह्रीं फट II


८. उग्रप्रभा :-

माँ कि अष्टम नित्या का नाम उग्रप्रभा है और मंत्र है :-

II ॐ हुं उग्रप्रभे देवि काली महादेवी स्वरूपं दर्शय हुं फट स्वाहा II


९. दीप्ता :-

माता कि नवमी नित्या का नाम दीप्ता है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं हुं दीप्तायै सर्व मंत्र फ़लदायै हुं फट स्वाहा II


१०. नीला :-

माता कि दसवीं नित्या का नाम नीला है और मंत्र है :-

II हुं हुं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हसबलमारी नीलपताके हम फट II


११. घना :-

माता कि ग्यारहवीं नित्या के रूप में माता घना को जाना जाता है और मंत्र है :-

II ॐ क्लीं ॐ घनालायै घनालायै ह्रीं हुं फट ।।


१२. बलाका :-

माता कि बारहवीं नित्या का नाम बलाका है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं हुं ह्रीं बलाका काली अति अद्भुते पराक्रमे अभीष्ठ सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा II


१३. मात्रा :-

माता कि त्रयोदश नित्या का नाम मात्रा है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं ह्लीं हुं ऐं दस महामात्रे सिद्धिम में देहि सत्वरम हुं फट स्वाहा II


१४. मुद्रा :-

माता कि चतुर्दश नित्या का नाम मुद्रा है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं ह्लीं हुं प्रीं फ्रें मुद्राम्बा मुद्रा सिद्धिम में देहि भो जगन्मुद्रास्वरूपिणी हुं फट स्वाहा II


१५. मिता :-

माता की पंचादशम नित्या का नाम मिता है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं हुं ह्रीं ऐं मिते परामिते ॐ क्रीं हुं ह्लीं ऐं सोहं हुं फट स्वाहा II


१६. रौद्री:-

माता की षोडश नित्या का नाम रौद्री है और मंत्र है:-

।। ॐ ह्रीं भगवत्यै विद्महे महामायायै धीमहि । तन्न रौद्री प्रचोदयात ।।


यह सोलह मंत्र आपको समस्त साधानाओ मे सफलता प्रदान करने मे तप्तर है। ग्यारह दिनो का साधना सम्पन्न होने के बाद सोलह पान के पत्तो के साथ सुपारीयो को बहते हुए जल मे प्रवाहित करदे । साधना मे इस्तेमाल किये हुए काली हकिक माला को सम्भाल कर रखिये क्योके यह माला जिवन मे फिर से इसी साधना के लिये काम मे आयेगा। रोज मंत्र जाप के बाद काली कीलकम का एक पाठ किया करे और ग्रहण काल मे 108 पाठ किये जाय तो यह काली कीलकम सिद्ध हो जायेगा।




काली कीलकम्

मंत्र से अधिक प्रभाव कवच का होता है और कवच से गुना अधिक प्रभाव कीलक का कहा गया है । अतः काली पूजन के पश्चात कीलक का पाठ अवश्य करना चाहिए । इसका पाठ किए बिना मंत्र, स्तोत्र, कवच आदि के पाठ का फल नष्ट हो जाता है । कीलक पठ करने वाला मनुष्य धनवान, पुत्रवान, समाज में प्रमुख, धीर, निरोगी रहता है । उसके सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं । शत्रु या जंगली जीवों से उसे भय नहीं रहता । इस कीलक के प्रभाव से ही दुर्वासा, वशिष्ठ, दत्तात्रेय, देवगुरु बृहस्पति, इंद्र, कुबेर अंगिरा, भृगु, च्यवन, कार्तिकेय, कश्यप, ब्रह्मा आदि ऐश्वर्य संपन्न हुए हैं । काली ही परतत्त्व हैं, अतः उसका यह कीलक भी प्रभावशाली है, ऐसा शिवकथन है ।

दाए हाथ मे थोड़ा जल लेकर विनियोग मंत्र पढकर जल को जमिन पर छोड़ देना है।

विनियोग:-

ॐ अस्य श्री कालिका कीलकस्य सदाशिव ऋषिरनुष्टप् छन्दः, श्री दक्षिण कालिका देवता, सर्वार्थ सिद्धि साधने कीलक न्यासे जपे विनियोगः ।

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि कीलकं सर्वकामदम् ।
कालिकायाः परं तत्त्वं सत्यं सत्यं त्रिभिर्ममः ॥
दुर्वासाश्च वशिष्ठश्च दत्तात्रेयो बृहस्पतिः ।
सुरेशो धनदश्चैव अङ्गराश्च भृभूद्वाहः ॥
च्यवनः कार्तवीर्यश्च कश्यपोऽथ प्रजापतिः ।
कीलकस्य प्रसादेन सर्वैश्वर्चमवाप्नुयुः ॥



अथ कीलकम्

ॐ कारं तु शिखाप्रान्ते लम्बिका स्थान उत्तमे ।
सहस्त्रारे पङ्कजे तु क्रीं क्रीं वाग्विलासिनी ॥

कूर्चबीजयुगं भाले नाभौ लज्जायुगं प्रिये ।
दक्षिणे कालिके पातु स्वनासापुट युग्मके ॥

हूंकारद्वन्द्वं गण्डे द्वे द्वे माये श्रवणद्वये ।
आद्यातृतीयं विन्यस्य उत्तराधर सम्पुटे ॥

स्वाहा दशनमध्ये तु सर्व वर्णन्न्यसेत् क्रमात् ।
मुण्डमाला असिकरा काली सर्वार्थसिद्धिदा ॥

चतुरक्षरी महाविद्या क्रीं क्रीं हृदय पङ्कजे ।
ॐ हूं ह्नीं क्रीं ततो हूं हट् स्वाहा च कंठकूपके ॥

अष्टाक्षरी कालिकाया नाभौ विन्यस्य पार्वति ।
क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं स्वाहान्ते च दशाक्षरी ॥

मम बाहु युगे तिष्ठ मम कुण्डलिकुण्डले ।
हूं ह्नीं मे वह्निजाया च हूं विद्या तिष्ठ पृष्ठके ॥

क्रीं हूं ह्नीं वक्षदेशे च दक्षिणे कालिके सदा ।
क्रीं हूं ह्नीं वह्निजायाऽन्ते चतुर्दशाक्षरेश्वरी ॥

क्रीं तिष्ठ गुह्यदेशे मे एकाक्षरी च कालिका ।
ह्नीं हूं फट् च महाकाली मूलाधार निवासिनी ॥

सर्वरोमाणि मे काली करांगुल्यङ्क पालिनी ।
कुल्ला कटिं कुरुकुल्ला तिष्ठ तिष्ठ सदा मम ॥

विरोधिनी जानुयुग्मे विप्रचित्ता पदद्वये ।
तिष्ठ मे च तथा चोग्रा पादमूले न्यसेत्क्रमात् ॥

प्रभा तिष्ठतु पादाग्रे दीप्ता पादांगुलीनपि ।
नीली न्यसेद्विन्दु देशे घना नादे च तिष्ठ मे ॥

वलाका विन्दुमार्गे च न्यसेत्सर्वाङ्ग सुन्दरी ।
मम पातालके मात्रा तिष्ठ स्वकुल कायिके ॥

मुद्रा तिष्ठ स्वमत्येमां मितास्वङ्गाकुलेषु च ।
एता नृमुण्डमालास्त्रग्धारिण्य: खड्गपाणयः ॥

तिष्ठन्तु मम गात्राणि सन्धिकूपानि सर्वशः ।
ब्राह्मी च ब्रह्मरंध्रे तु तिष्ठ स्व घटिका परा ॥

नारायणी नेत्रयुगे मुखे माहेश्वरी तथा ।
चामुण्डा श्रवणद्वन्द्वे कौमारी चिबुके शुभे ॥

तथामुदरमध्ये तु तिष्ठ मे चापराजिता ।
वाराही चास्थिसन्धौ च नारसिंही नृसिंहके ॥

आयुधानि गृहीतानि तिष्ठस्वेतानि मे सदा ।
इति ते कीलकं दिव्यं नित्यं यः कीलयेत्स्वकम् ॥

कवचादौ महेशानि तस्यः सिद्धिर्न संशयः ।
श्मशाने प्रेतयोर्वापि प्रेतदर्शनतत्परः ॥

यः पठेत्पाठयेद्वापि सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ।
सवाग्मी धनवान्दक्षः सर्वाध्यक्ष: कुलेश्वर: ॥

पुत्र बांधव सम्पन्नः समीर सदृशो बले ।
न रोगवान् सदा धीरस्तापत्रय निषूदनः ॥

मुच्यते कालिका पायात् तृणराशिमिवानला ।
न शत्रुभ्यो भयं तस्य दुर्गमेभ्यो न बाध्यते ॥

यस्य य देशे कीलकं तु धारणं सर्वदाम्बिके ।
तस्य सर्वार्थसिद्धि: स्यात्सत्यं सत्यं वरानने ॥

मंत्रच्छतगुणं देवि कवचं यन्मयोदितम् ।
तस्माच्छतगुणं चैव कीलकं सर्वकामदम् ॥

तथा चाप्यसिता मंत्रं नील सारस्वते मनौ ।
न सिध्यति वरारोहे कीलकार्गलके विना ॥

विहीने कीलकार्गलके काली कवच यः पठेत् ।
तस्य सर्वाणि मंत्राणि स्तोत्राण्यन सिद्धये प्रिये ॥


साधना पुर्ण विधि-विधान से सम्पन्न करे। अवश्य आपको सफलता मिलेगा।




आदेश........