18 Jul 2017

शिव शाबर मंत्र सिद्धि

इंसान के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष यह चुनने की कोशिश है कि क्या सुंदर है और क्या भद्दा, क्या अच्छा है और क्या बुरा? लेकिन अगर आप हर चीज के इस भयंकर संगम वाली शख्सियत को केवल स्वीकार कर लेते हैं तो फिर आपको कोई समस्या नहीं रहेगी।

समस्या सिर्फ आपके साथ है कि आप किसे अपनाएं व किसे छोड़ें और यह समस्या मानसिक समस्या है, न कि जीवन से जुड़ी समस्या। यहां तक कि अगर आपका दुश्मन भी आपके बगल में बैठा है तो आपके भीतर मौजूद जीवन को उससे भी कोई दिक्कत नहीं होगी। आपका दुश्मन जो सांस छोड़ता है, उसे आप लेते हैं। आपके दोस्त द्वारा छोड़ी गई सांसें आपके दुश्मन द्वारा छोड़ी गई सांसों से बेहतर नहीं होती है। दिक्कत सिर्फ मानसिक या कहें मनोवैज्ञानिक स्तर पर है। अस्तित्व के स्तर पर देखा जाए तो कोई समस्या नहीं है।

घोर का मतलब है – भयंकर। अघोरी का मतलब है कि ‘जो भयंकरता से परे हो’। शिव एक अघोरी हैं, वह भयंकरता से परे हैं। भयंकरता उन्हें छू भी नहीं सकती।

एक अघोरी जब इस अस्तित्व को अपनाता है तो वह उससे प्रेम के चलते नहीं अपनाता, वह इतना सतही या कहें उथला नहीं है, बल्कि वह जीवन को अपनाता है। वह अपने भोजन और मल को एक ही तरह से देखता है। उसके लिए जिंदा और मरे हुए शरीर में कोई अंतर नहीं है। वह एक सजी संवरी देह और व्यक्ति को उसी भाव से देखता है, जैसे एक सड़े हुए शरीर को। इसकी सीधी सी वजह है कि वह पूरी तरह से जीवन बन जाना चाहता है। वह अपनी दिमागी या मानसिक सोचों के जाल में नहीं फंसना चाहता।

कोई भी चीज उनमें घृणा नहीं पैदा कर सकती। वह हर चीज को, सबको अपनाते हैं। ऐसा वह किसी सहानुभूति, करुणा या भावनाओं के चलते नहीं करते, जैसा कि आप सोचते होंगे। वे सहज रूप से ऐसा करते हैं, क्योंकि वो जीवन की तरह हैं। जीवन सहज ही हरेक को गले लगाता व अपनाता है।

शिव जी का व्यक्तित्व विशाल है, अनेक आयामों से देखकर उनके अनेक नाम रखे गये हैं:

1. महेश्वर- महाभूतों के ईश्वर होने के कारण तथा सूंपूर्ण लोकों की महिमा से युक्त।

2. बडवामुख- समुद्र में स्थित मुख जलमय हविष्य का पान करता है।

3. अनंत रुद्र- यजुर्वेद में शतरूप्रिय नामक स्तुति है।

4. विभु और प्रभु- विश्व व्यापक होने के कारण।

5. पशुपति- सर्पपशुओं का पालन करने के कारण।

6. बहुरूप- अनेक रूप होने के कारण।

7. सर्वविश्वरूप- सब लोकों में समाविष्ट हैं।

8. धूर्जटि- धूम्रवर्ण हैं।

9. त्र्यंबक- आकाश, जल, पृथ्वी तीनों अंबास्वरूपा देवियों को अपनाते हैं।

10. शिव- कल्याणकारी, समृद्धि देनेवाले हैं।

11. महादेव- महान विश्व का पालन करते हैं।

12. स्थाणु- लिंगमय शरीर सदैव स्थिर रहता है।

13. व्योमकेश- सूर्य-चंद्रमा की किरणें जो कि आकाश में प्रकाशित होती हैं, उनके केश माने गये हैं।

14. भूतभव्यभवोद्भय- तीनों कालों में जगत् का विस्तार करनेवाले हैं।

15. वृषाकपि- कपि अर्थात श्रेष्ठ, वृष धर्म का नाम है।

16. हर- सब देवताओं को काबू में करके उनका ऐश्वर्य हरनेवाले।

17. त्रिनेत्र- अपने ललाट पर बलपूर्वक तीसरा नेत्र उत्पन्न किया था।

18. रुद्र- रौद्र भाव के कारण।

19. सोम- जंघा से ऊपर का भाग सोममय है। वह देवताओं के काम आता है और अग्नि- जंघा के नीचे का भाग अग्निवत् है। मनुष्य-लोक में अग्नि अथवा 'घोर' शरीर का उपयोग होता है।

20. श्रीकंठ- शिव की श्री प्राप्त करने की इच्छा से इन्द्र ने वज्र का प्रहार किया था। वज्र शिव ने कंठ को दग्ध कर गया था, अत: वे श्रीकंठ कहलाते हैं।

ऐसे अनेको नामो से शिव जी देवाधिदेव महादेव कहलाते है । अभी अमावस्या के बाद हम लोगो का श्रावण माह शुरू होगा और कुछ लोगो का श्रावण माह गुरुपूर्णिमा के बाद से ही शुरू हो गया है । आनेवाली अमावस्या के बाद पूर्णिमा तक बहोत ही अच्छे शुभ मुहूर्त है और ऐसे दुर्लभ मुहूर्त का लाभ प्रत्येक साधक को उठाना ही चाहिए ।

आज यहां दिया जानेवाला मंत्र साधना एक दुर्लभ साधना है,जिसका प्रभाव साधक के जीवन मे उसे कई सारे समस्याओं से मुक्ति दिला सकता है । जो शिवभक्त है,उनके लिए तो यह शाबर मंत्र शिवाशिष है । साधना संकल्प युक्त होकर सम्पन्न करे अर्थात मंत्र जाप से पूर्व दाहिने हाथ मे जल लेकर संकल्प करें "मैं अमुक गोत्रीय, अमुक पिता का पुत्र और अमुक नाम का साधक जीवन के समस्त दुःखो के नाश हेतू यह साधना प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूं " । जिन्हें गोत्र पता ना हो वह साधक अपने जाती का उच्चारण करे , जिनके पिता का स्वर्गवास हुआ हो वह अपनी माता का नाम ले सकते है या किसी साधक के माता-पिता इस दुनिया मे ना हो तो उस जगह  "अमुक गुरु का शिष्य" उच्चारण करे ।

साधना अमावस्या के दिन से शुरू करे,सफेद वस्त्र और आसान आवश्यक है । किसी भी धातु के प्लेट में अष्टगंध से स्वस्तिक बनाये और उसपर किसी भी प्रकार का शिवलिंग स्थापित करे । मंत्र जाप से पूर्व शिव मानस पूजन अवश्य करे और शिव मानस पूजन हेतु आपको सिर्फ शिव मानस पूजन स्तोत्र पढ़ना है ।

“शिव मानस पूजा” अर्थात्; मन से भगवान की पूजा । मन से कल्पित सामग्री द्वारा की जाने वाली पूजा को ही मानस पूजा कहा जाता है। मानस पूजा की रचना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने की है। “शिव मानस पूजा” में हम प्रभू को भक्ति द्वारा मानसिक रूप से तैयार की हुई वस्तुएं समर्पित करते हैं; अर्थात; किसी भी बाहरी वस्तुओं या पदार्थो का उपयोग नहीं किया जाता। मात्र मन के भावों मानस से ही भगवान को सभी पदार्थ अर्पित किए जाते हैं। शास्त्रों में भगवान “शिव मानस पूजा” को हजार गुना अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित “शिव मानस पूजा” मंत्र में मन और मानसिक भावों से शिव की पूजा की गई है। इस पूजा की विशेषता यह है कि; इसमें भक्त भगवान को बिना कुछ अर्पित किए बिना मन से अपना सब कुछ सौंप देता है।

आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचे गए इस स्त्रोत में भगवान की ऐसी पूजा है जिसमें भक्त किसी भौतिक वस्तु को अर्पित किये बिना भी, मन से अपनी पूजा पूर्ण कर सकता है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा, भगवान शिव की एक अनुठी स्तुति है। यह स्तुति शिव भक्ति मार्ग के अत्यंत सरल एवं एक अत्यंत गुढ रहस्य को समझाता है। यह स्तुति भगवान भोलेनाथ की महान उदारता को प्रस्तुत करती है।

इस स्तुति को पढ़ते हुए भक्तों द्वारा भगवान शिव को श्रद्धापूर्वक मानसिक रूप से समस्त पंचामृत दिव्य सामग्री समर्पित की जाती है।
“शिव मानस पूजा” में मन: कल्पित यदि एक फूल भी चढ़ा दिया जाए, तो करोड़ों बाहरी फूल चढ़ाने के बराबर होता है। इसी प्रकार मानस- चंदन, धूप, दीप नैवेद्य भी भगवान को करोड़ गुना अधिक संतोष देते हैं। अत: मानस-पूजा बहुत अपेक्षित है।

वस्तुत: भगवान को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं, वे तो भाव के भूखे हैं। संसार में ऐसे दिव्य पदार्थ उपलब्ध नहीं हैं, जिनसे परमेश्वर की पूजा की जा सके, इसलिए पुराणों में मानस-पूजा का विशेष महत्त्व माना गया है।

श्री शिव मानस पूजा स्तोत्र

रत्नैः कल्पित मासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्यांबरं
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदांकितं चंदनम् ।
जाजीचंपकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा दीपं
देवदयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥ १ ।।

सौवर्णे मणिखंडरत्नरचिते पात्रे घृतं पायसं भक्ष्यं
पंचविधं पयोदधियुतं रंभाफलं स्वादुदम् ।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडोज्ज्वलं
तांबूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभोस्वीकुरु ॥ २ ॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणाभेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तधा ।
साष्टांगं प्रणतिः स्तुति र्बहुविधा एतत्समस्तं
मया संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥ ३ ॥

आत्मा त्वं गिरिजा मति स्सहचराः प्राणाश्शरीरं गृहं पूजते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधि स्थितिः ।
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वागिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भोतवाराधनम् ॥ ४ ॥

करचरणकृतं वा कर्म वाक्कायजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
शिवशिव करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥ ५ ॥

:: इति श्री शिवमानस पूजा स्तोत्रं संपूर्णम् ::

शिव मानस पूजन के बाद आपको दिए जाने वाले मंत्र का अमावस्या से पूर्णिमा तक रोज काम से 108 बार जाप करे । कोई साधक ज्यादा मंत्र जाप करना चाहता है तो वह कर सकता है,इस मंत्र के जाप हेतु आप रुद्राक्ष माला का उपयोग कर सकते है या फिर माला ना होतो तो 30-40 मिनट तक भी जाप कर सकते हो ।

मंत्र-

।। ॐ नमो आदेश गुरुजी को आदेश, नाथो के नाथ आदिनाथ कैलाशपती, गंगाधारी पवित्र करे सिद्धि हमारी ,डम-डम डमरू बजाके भोलेनाथ आओ,त्रिशूल चलाके अमुक बाधा भगाओ,मेरी भक्ति गुरु की शक्ति,चलो मंत्र ईश्वरी वाचा ।।

मंत्र छोटा है परंतु अत्यंत प्रभावशाली है,अमावस्या से पूर्णिमा तक जाप करने से मंत्र सिद्धि हो जाती है । इस मंत्र के सिद्धि से जिस साधक ने कोई भी सिद्धि प्राप्त की हो तो उसकी वह सिद्धि पवित्र होकर शक्तिशाली हो जाती है । मंत्र में अमुक के जगह पर आप किसी भी बाधा का उच्चारण कर सकते है जैसे भूत बाधा, तंत्र बाधा, नोकरी प्राप्ति में आनेवाली बाधा,व्यवसायिक बाधा,पढ़ाई में आनेवाली बाधा,विवाह बाधा/प्रेम विवाह बाधा,साधना सिद्धि बाधा,आजीविका बाधा और रोग बाधा......।

मंत्र जाप के समय साधक का मुँह उत्तर दिशा के तरफ हो और हो सके तो साधना के आखरी दिन साधक 108 आहुतियां शुद्ध देसी गाय के घी का अवश्य ही दे तो मंत्र सिद्धि पुर्ण हो सकती है ।
इस तरह से साधना सम्पन्न कर लाभ उठाएं ।

फेसबुक और व्हाट्सएप के भूखे कथित तांत्रिकों ये साधना तुम लोग भी कर लो,जितना यहां से मंत्र चुराकर पोस्ट करते हो उससे अच्छा तो उतनी बार पढकर पोस्ट किया होता तो कुछ काम अच्छे तुम्हारे भी अब तक बन जाते थे ।


आदेश.......

7 Jul 2017

चंद्रग्रहण साधना

आज का ये पोस्ट उन सभी के लिए है जो अपना भविष्य बेहतर बनाना चाहते है । सभी को स्वयं के भविष्य का चिंता होना चाहिए ताकि जीवन मे दुख और दर्द कम हो । मैने जीवन मे ऐसे कई बेकार साधक देखे है जो सिर्फ निंदा करने में तो कोई बुराइया करने में अपना समय बर्बाद कर देता है और ये सब कुछ एक अच्छे साधक के लक्षण नही होते है । कुछ मूर्ख किसी अच्छे गुरु से दीक्षा प्राप्त करके स्वयं को विशेष समझने लगते है और दूसरों की बुराइया करने में अपने गुरु के महानता को दाग लगा देते है । मैं ये बात अच्छेसे जानता हूं व्हाट्सएप जैसे तांत्रिक ग्रुपो में मेरे आर्टिकल लोग अपने नाम से चला रहे है,कोई बात नही । ये भी एक अच्छा ही कार्य है परंतु कम से कम इतना तो याद रखो "जिस दिन उस आर्टिकल पर तुमसे कोई सवाल पूछे तो उसे क्या जवाब दोगे?",इतना तुम्हे समझ होता तो तुम लोग चोरी ही क्यों करते ।

मेरे ईमेल आई.डी. में "निखिल" नाम लिखा हुआ है तो इसमें भी लोगो को समस्या है । आज तक इसका जवाब मुझे किसी से नही मिला के इन लोगो को निखिल नाम ईमेल आई.डी. में रखने में क्या समस्या है । यहां पर निखिल नाम से कुछ भी नही लिखा जाता है और नाही इस ब्लॉग पर निखिल नाम के प्रोडक्ट बेचे जाते है । निखिल नाम के प्रोडक्ट फेसबुक पर बेचने वालों की कोई कमी नहीं है और निखिल नाम पर दीक्षा देने वाले भी फेसबुक पर आझाद घूम रहे है,आजकल तो कुछ लोग निखिल नाम पर साधना शिबिर भी ले रहे है । शिबिर लेने का हक सिर्फ जोधपुर में सुरक्षित है परंतु आज उनके शिष्य ही गुरु बन गए है,मैं आज फिर से एक बार इस ब्लॉग के माध्यम से लिखना चाहता हूँ "बुरी नजर वाले तेरा मुह काला",वैसे तो ये ट्रक पर ज्यादा लिखा जाता है परंतु कुछ मूर्खो ने अपने नाम को इज्जत देने के लिये मेरे नाम का इस्तेमाल करके बुराइया करने का संकल्प लिया है । माताराणी से प्रार्थना करता हु के तुम्हारा संकल्प पूर्ण होता रहे और तुम्हे इतनी तो बुद्धि मीले के तुम लोग मेरा चिंतन भगवान से ज्यादा ना करो ।

कई लोग मुझे कहते है,हमे आपसे गुरुदीक्षा लेना है परंतु साधक मित्रो मैं यह बात आज साफ साफ लिख देता हूं "मैं गुरुदीक्षा नही देता हूँ,मुझे गुरु बनने का कोई लालच नही है" । मेरा आज तक कोई भी एक शिष्य नही है,जब भी मुझे दीक्षा हेतु फोन आते है तो मैं उन्हें यही कहेता हु "ये रहा गुरुमंत्र और आज से तुम्हारे गुरु जो है वह गोरखनाथ जी है" , यह कार्य निशुल्क होता है । मेरे बारे में मूर्खो ने कही सारे वहम पाल के रखे है जो सही नही है,ये बात मैं उन लोगो को समझा रहा हु जो गलत सोच रखते है और सुबह-शाम फेसबुक की सेवा करते है । कुछ पालना ही है तो मेरे नाम से कुत्ता ही पालो,मुझे सही में अच्छा महसूस होगा परंतु वहम मत पालो । ये वहम पालने वाले लोग हाथ मे चूड़ियां पहनकर चुगलियां करते रहते है और स्वयं को तंत्र की कुछ किताबे पढकर प्रकांड तांत्रिक समजते है । चलिये अब गधो पर बात करने से अच्छा आगे बढ़ते हुए हम लोग साधना पर बात करते है ।

यह साधना ग्रहण काल मे शुरू करने से सफलता निच्छित मानी जाती है । इस साधना को प्रामाणिकता से करो तो तुम्हारा जीवन वर्तमान जीवन से बेहतर हो जाएगा, आज मैं सभी को चुनौती देकर बोल रहा हु "यह सरस्वती साधना है,इसको संपन्न कर ही लो तो बहोत कुछ अच्छा होगा " ।

साधना के फायदे भी लिख देता हूं,नही तो चंद्रग्रहण के अवसर पर यह साधना आप लोग नही करोगे । इस साधना से स्मरणशक्ति बढ़ती है,व्यवसाय में वृद्धि होती है,जिन्हें सरकारी नोकरी चाहिए उनके लिये यह साधना अमृत है,इस साधना से स्वयं का भूत-भविष्य-वर्तमान भी देखा जा सकता है और माताराणी ने चाहा तो दूसरो का भी देख सकते हो । यह साधना मैं अपने मानसपुत्र सागर मशरू से करवाना चाहता था परंतु वो अभी बच्चा है 16 वर्ष का और चमत्कार के पीछे पागल है । जब के इसी साधना के भरोसे उसने दसवीं कक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किये परंतु वह इस साधना के फायदों से अब तक अनजान था,अब नही रहेगा और साथ मे एक और व्यक्ति वीर राजपूत ये साधना कर ले तो अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा । शायद ये दोनों यह साधना पढ़े तो मुझे खुशी होगी,इन दोनों के साथ-साथ आप सभी यह साधना संपन्न करें ।

मैं गारंटी के साथ बोल रहा हूं,यह साधना जो भी करेगा उसको फायदा ही हो सकता है और किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नही हो सकता है । इस साधना से इच्छाएं भी पुर्ण हो सकती है साथ मे वशिकरण क्रिया भी संभव है मेरे प्यारे प्रेम के रोगियों । वैसे तो मैं वशिकरण क्रिया के खिलाफ हु परंतु क्या करे प्रेमवीरो का दिल भी रखना पड़ता है,जिस दिन आज ये प्रेम के रोगी किसी को वश में करके विवाह करना चाहते है,भविष्य में इनके ही लड़की/लड़के को कोई भी वश कर सकता है और वह लड़का/लड़की बुरे भी हो सकते है । शायद इन्हें तब ये क्रिया बुरी लग सकती है,आज तो सभी प्रेमरोगी/प्रेमवीर प्यार के नशे में पागल हो चुके है तो कुछ लोग अपने अय्याशी के लिए किसी को वश में करना चाहते है । ये सब कुछ अच्छा नही है,सबके पास निर्णय लेने का हक है अब अगर आपका पार्टनर ब्रेक अप कर रहा है तो ये उसकी आझादी है । आप उसको वशिकरण क्रिया से बंदी बनाकर क्या करोगे,कोई इससे ख़ुश नही रह सकता है । हा, मैं मानता हूं "आपको इसमे दर्द हुआ तकलीफ हुई परंतु जबरदस्ती करके क्या हासिल करोगे,प्यार?",जबरदस्ती प्रेम को प्राप्त करना फायदेमंद साबित नही होता है । अगर आपका पार्टनर आपसे भटक गया होतो वशिकरण क्रिया अवश्य करना ही चाहिए,यह अच्छी बात है ।

शायद अब ज्ञान की बाते बहोत हो गयी,अब सिर्फ साधानात्मक चिंतन होना चाहिए और मेरा भी चिंतन ना करो । 7 ऑगस्ट को चंद्र ग्रहण है जो हमारे देश मे दिखेगा,यह खंडच्छाया युक्त ग्रहण है परन्तु इसका भी महत्व माना जायेगा । ग्रहण रात्रि में 9.20 मिनट पर शुरू होगा और 2.20 मिनट पर समाप्त होगा,मतलब यह ग्रहण 5 घंटे तक का है । चंद्रग्रहण पर एक बार मंत्र जाप करने का अर्थ है एक लाख बार जाप करना,तो इसीलिए हम जो भी मंत्र साधना का आवश्यकता हो वह मंत्र जाप कर लेना चाहिए ।

मंत्र:-

।। ॐ श्रीं ह्रीं हसौ: हूं फट निलसरस्वत्यै स्वाहा ।।
Om shreem hreem hasouh hoom phat nilasaraswatyai swaahaa

ग्रहण काल मे मंत्र का ज्यादा से ज्यादा जाप करे,दिशा उत्तर,आसन-वस्त्र सफेद या नीले रंग के हो,माला स्फटिक या नीले हकीक का हो और माला नही हो तो भी बिना गिनती किये जाप कर सकते हो ।
ग्रहण साधना के बाद नित्य 21 दिनों तक रात्री में 9 बजे के बाद 11 माला जाप या फिर 30 मिनट जाप किया करे ।

हो सके तो इस आर्टिकल के लिंक को अपने व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक ग्रुप या प्रोफाइल पर शेयर करे ताकि चंद्रग्रहण के उच्चतम समय का और इस साधना का सभी लाभ उठा सके । यह आर्टिकल जनकल्याण हेतु है और इसको आप शेयर करके सभी लोगो की मदत करेगे यही मैं आप सभी से उम्मीद रखता हूं । जिन लोगो को लिंक शेयर करने में शर्म आता है वह इसमें ना पड़े,आगे आपकी मर्जी.......

आदेश.........