17 Aug 2017

सूर्यग्रहण साधना



ग्रहण एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक घटना है जिसके दूरगामी दुष्प्रभाव होते हैं और अनिष्ट शक्तियां इनका लाभ उठातीं हैं ।
हम जहां रह रहे हैं यदि उस क्षेत्र में ग्रहण दिखार्इ दे रहा हो, तो सभी आध्यात्मिक सावधानियां रखना आवश्यक है । पूरे वर्ष नियमित साधना करने से ग्रहण के दुष्प्रभाव कम करने में सहायता प्राप्त होती है । साथ ही यदि कोई ग्रहण काल में तीव्र साधना करता है तो उसे इसका व्यक्तिगत सकारात्मक लाभ भी आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगति के रूप में होता है ।
चंद्र की अपेक्षा सूर्य पृथ्वी पर जीवन के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण है । सूर्य को सूक्ष्म अथवा स्थूल स्तर पर अवरुद्ध करने से पृथ्वी सूक्ष्म एवं अमूर्त रूप से अधिक संवेदनशील हो जाती है जिसके कारण वातावरण अनिष्ट शक्तियों के (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) लिए अधिक पोषक बन जाता है ।


ग्रहण काल में साधना करने से वातावरण के बढे हुए रज-तम एवं काली शक्ति के प्रभाव को निष्प्रभ किया जा सकता है । इसलिए यदि कोई व्यक्ति ग्रहण काल में तीव्र साधना करता है तो वह अवश्य ही काली शक्तियों के दुष्प्रभाव से बच सकता है । एक ग्रहण से होनेवाले दूसरे ग्रहण तक काली शक्तियों के दुष्प्रभाव से बचने हेतु नित्य साधना करना मूर्खता है,इसलिए ग्रहण काल मे दुष्प्रभाव से बचने हेतु साधना करे और पूर्ण लाभ उठाएं । आजकल कुछ लोगो ने दुष्प्रभाव को ग्रहो का खेल बना दिया है जिसके कारण बहोत सारे लोगो का पेट रत्न बेचने से भर रहा है परंतु हमे यहां कुछ तो समझना ही होगा के हम जीवन मे आध्यात्मिक/भौतिक प्रगति कैसे करेगे? क्युके आज के समय मे सामान्य जीवन जीना एक श्राप बन चुका है,जिसके पास धन ना हो वह हर जगह हार जाता है ।


आज मैं धन-धान्य से संबंधित साधना दे रहा हु,जिसे ग्रहण काल मे संपन्न करना प्रत्येक व्यक्ति के लिये आवश्यक है । जो लोग ग्रहण काल को मजाक में लेते है शायद वह दुख-संकट के समय मे भी हँसते हो परंतु जिन्हें दुख-दर्द-संकट का एहसास है वह लोग इस साधना से खुशिया प्राप्त कर सकते है ।
ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा अतः इसका धार्मिक दृष्टिकोण से शुभाशुभ प्रभाव भी मान्य नहीं होगा। परंतु ज्योतिषीय दृष्टिकोण से इसका प्रभाव संपूर्ण विश्व पर पड़ेगा । ग्रहण चाहे दुनिया के किसी भी क्षेत्र में हो परंतु उसका असर सभी प्राणियों पर होता है,यह ग्रहण भारत मे दृश्य नही है तो कोई बात नही पर साधना सिद्धियों हेतु पूर्णतः एक अपेक्षाकृत योग है और इस अवसर का लाभ उठाना प्रत्येक साधक का कार्य है ।



चाणक्य ने तो स्पष्ट कहा है कि-

त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं
पुत्राश्च दाराश्च सुहज्जनाश्च।
तमर्शवन्तं पुराश्रयन्ति अर्थो
हि लोके मनुषस्य बन्धुः॥

निर्धन हो जाने पर मनुष्य को पत्नी, पुत्र, मित्र, निकट सम्बन्धी, नौकर और हितैषी जन सभी छोड़कर चले जाते हैं और जब पुन: धन प्राप्त हो जाता है तो फिर से उसी के आश्रय में आ जाते हैं। शास्त्रों में भी ‘ धर्मार्थ काम मोक्षाणां पुरुषार्थ चतुष्टयम्’ कहकर मनुष्य की उन्नति के लिए चार प्रकार के पुरुषार्थ बतायें हैं, जिसमें सबसे पहला पुरुषार्थ धर्म, दूसरा अर्थ (लक्ष्मी प्राप्ति), तीसरा काम (सन्तान उत्पन्न करना) और चौथा मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना आदि सम्पन्न करना है ।

दरिद्रता एवं दुःख को यदि जड़ से उखाड़ फेंकना हो, तो सूर्य ग्रहण मे कमला तंत्र वर्णित लक्ष्मी के मूल स्वरूप की ‘कमला साधना’ अवश्य सम्पन्न करें। इस साधना को जो भी साधक श्रेष्ठ मुहूर्त (सूर्य ग्रहण) में पूर्ण विधि-विधान से करता है, उसके जीवन की दरिद्रता समाप्त हो जाती है और उसका दुर्भाग्य, सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है।




साधना विधि-विधान:-


कमला तंत्र के अनुसार सूर्य ग्रहण से पूर्व साधक स्नान, ध्यान कर पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं और अपने सामने एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर लक्ष्मी चित्र स्थापित कर दें। लक्ष्मी जी के चित्र के समीप ही गुरु चित्र स्थापित कर, गुरु चित्र का पंचोपचार पूजन कर लें (जिनके गुरु ना हो वह शिव पूजन करे) । इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर नवग्रहों की शांति हेतु प्रार्थना करें ।


नवग्रह प्रार्थना –

ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु॥

नवग्रह प्रार्थना के पश्चात् एक थाली में नया पीला वस्त्र बिछाकर उसे बाजोट पर रख दें, कपड़े के ऊपर सिन्दूर से सोलह बिन्दियां लगावें। सबसे ऊपर चार फिर उनके नीचे चार-चार बिन्दियां चार पक्तियों में, इस प्रकार कुल 16 बिन्दियां लगा कर प्रत्येक बिन्दी पर एक-एक लौंग तथा एक-एक इलायची रख कर फिर इनका अष्टगंध से पूजन करें और हाथ जोड़कर निम्न ध्यान मंत्र का उच्चारण करें –


उद्यन्मार्तण्ड-कान्ति-विगलित
कवरीं कृष्ण वस्त्रवृतांगाम्।
दण्डं लिंगं कराब्जैर्वरमथ
भुवनं सन्दधतीं त्रिनेत्राम्॥

नाना रत्नैर्विभातां स्मित-मुख
-कमलां सेवितां देव-देव-सर्वै
र्भार्यां रा ज्ञीं नमो भूत स-रवि-कल
-तनुमाश्रये ईश्वरीं त्वाम्॥


जो साधक संस्कृत पढ़े लिखे नहीं हैं, उनको चिंता नहीं करनी चाहिए और धीरे-धीरे शब्द उच्चारण करते हुए यह ध्यान मंत्र पढ़ सकते हैं।



इसके बाद दोनों हाथों में पुष्प तथा अक्षत लेकर निम्न मंत्र से अपने घर में भगवती कमला (लक्ष्मी जी का रूप) का आह्वान करते हुए चित्र  पर पुष्प, अक्षत समर्पित करें ,अब दाहिने हाथ मे थोड़ा जल लेकर विनियोग मंत्र बोले और जल को जमीन पर छोड़ दे-


विनियोग:-

ॐ ब्रह्मा ॠषये नमः शिरसि। गायत्रीश्छन्दसे नमः मुखे,श्री जगन्मातृ महालक्ष्म्यै देवतायै नमः हृदि,श्रीं बीजाय नमः गुह्ये,सर्वेष्ट सिद्धये मम धनाप्तये ममाभीष्टप्राप्तये जपे विनियोगाय नमः।


इसके बाद साधक सामने शुद्ध घृत का दीपक जलाएं, उसका पूजन करें तत्पश्चात् सुगन्धित अगरबत्ती प्रज्वलित करें, ऐसा करने के बाद साधक चित्र पर कुंकुम समर्पित करें, पुष्प तथा पुष्प माला पहनाएं, अक्षत चढ़ावें तथा नैवेद्य का भोग लगावें, सामने ताम्बूल, फल और दक्षिणा समर्पित करें।


भगवती कमला के आह्वान और पूजन के पश्चात् इस साधना में ‘कवच’ पाठ का विधान है। इस दुर्लभ कवच का पांच बार पाठ करें, जो महत्वपूर्ण है, कवच पाठ से चित्र का साधक के प्राणों से सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, और साधना सम्पन्न करने पर साधक को ओज, तेज, बल, बुद्धि तथा वैभव प्राप्त होने लग जाता है। इस कवच का उच्चारण सनत्कुमार ने भगवती लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया था। कमला उपनिषद् में इस लघु कवच का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रयोग है –



कमला कवच:-


ऐंकारी मस्तके पातु वाग्भवी सर्व सिद्धिदा।
ह्रीं पातु चक्षुषोर्मध्ये चक्षु युग्मे च शांकरी।

जिह्वायां मुख-वृत्ते च कर्णयोर्दन्तयोर्नसि।
ओष्ठाधरे दन्त पंक्तौ तालु मूले हनौ पुनः॥

पातु मां विष्णु वनिता लक्ष्मीः श्री विष्णु रूपिणी।
कर्ण-युग्मे भुज-द्वये-रतन-द्वन्द्वे च पार्वती॥

हृदये मणि-बन्धे च ग्रीवायां पार्श्वयोर्द्वयोः।
पृष्ठदेशे तथा गृह्ये वामे च दक्षिणे तथा॥

स्वधा तु-प्राण-शक्त्यां वा सीमन्ते मस्तके तथा।
सर्वांगे पातु कामेशी महादेवी समुन्नतिः॥

पुष्टिः पातु महा-माया उत्कृष्टिः सर्वदावतु।
ॠद्धिः पातु सदादेवी सर्वत्र शम्भु-वल्लभा॥

वाग्भवी सर्वदा पातु, पातु मां हर-गेहिनी।
रमा पातु महा-देवी, पातु माया स्वराट् स्वयं॥

सर्वांगे पातु मां लक्ष्मीर्विष्णु-माया सुरेश्वरी।
विजया पातु भवने जया पातु सदा मम॥

शिव-दूती सदा पातु सुन्दरी पातु सर्वदा।
भैरवी पातु सर्वत्र भैरुण्डा सर्वदावतु॥

पातु मां देव-देवी च लक्ष्मीः सर्व-समृद्धिदा।
इति ते कथितं दिव्यं कवचं सर्व-सिद्धये॥



वास्तव में ही यह कवच जो कि ऊपर स्पष्ट किया गया है अपने आप में महत्वपूर्ण है, यदि साधक नित्य इसके ग्यारह पाठ करता है, तो भी उसे जीवन में धन, वैभव, यश सम्मान प्राप्त होता रहता है। प्रयोग में इसके पांच पाठ करें। कमला कवच के पाठ के पश्चात् ‘ कमल गट्टा माला ’ या " स्फटिक माला " का कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से पूजन करें और पूजन के पश्चात् ‘ जप माला ’ से निम्न कमला मंत्र की 16 माला मंत्र जप करें।



कमला मंत्र

॥ ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं क्लीं ह्सौः जगत्प्रसूत्यै नमः॥

Om aing ing hreeng shreeng kleeng hasoum jagatprasutyai namah


जब सोलह माला मंत्र जप हो जाय तब भगवती लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ आरती सम्पन्न करें ।


ग्रहण के बाद भी साधक को 21 दिनों तक नित्य 1 माला जाप करते रहना चाहिए और साधना काल मे साधनात्मक नियमो का भी पालन करे । मैं कुछ  साधनात्मक नियम बता देता हूं जो जरूरी है,प्रथम नियम साधना नित्य एक ही समय पर करे,दूसरा नियम स्त्री को जब राजस्वाल हो तो उस समय उनके हाथों बना भोजन ना करे और उनका स्पर्श भी ना होने दे,तीसरा नियम साधना में ब्रम्हचैर्यत्व का पालन करे,आखरी नियम मास-मदिरा का त्याग कर । जिसने भी ये चार नियम समझलिये उसका जीवन साधना के क्षेत्र में अद्वितीय हो सकता है । इस साधना के बाद आपको जीवन मे किसी भी प्रकार की कोई भी कमी ना पड़े यही संकल्प मैं इस ग्रहण में करने वाला हूँ ताकि आपका जीवन अद्वितीय बन सके ।


ग्रहण का समय:-इस बार 21 अगस्त को सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। भारतीय समय के मुताबिक यह ग्रहण रात में 9.15 मिनट से शुरु होगा और रात में 2.34 मिनट पर खत्म होगा। भारत में इस दौरान रात रहेगी तो यहां पर कहीं भी सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा परंतु साधको के लिये यह एक साधना सिद्धि हेतु महत्वपूर्ण समय माना जायेगा ।







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