26 Jan 2017

लीलावती अप्सरा मंत्र साधना.(चंद्रग्रहण पर विशेष साधना)

यह एक विशेष साधना है,जिसको सिर्फ चंद्रग्रहण पर ही शुरू किया जा सकता है,अन्य समय पर शुरुआत करने से लाभ प्राप्त करना कठिन है। यहा दिया जाने वाला लीलावती अप्सरा मंत्र पुर्ण और प्रामाणिक है,जिससे साधक को अवश्य ही लाभ प्राप्त हो सकता है।
11 फरवरी 2017 को सुबह चंद्रग्रहण है मतलब 10 फरवरी को रात्रि मे 12 बजे के बाद,यहा चंद्रग्रहण का समय दे रहा हूं।

उपच्छाया से पहला स्पर्श - 04:06
परमग्रास चन्द्र ग्रहण - 06:14
उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श - 08:22
उपच्छाया की अवधि - 04 घण्टे 16 मिनट्स 27 सेकण्ड्स है।


साधना के लाभ:

जो व्यक्ति पूर्ण रूप से हष्ट पुष्ट होते हुए भी आकर्षक व्यक्तित्व न होने के कारण अन्य लोगों को अपनी और आकर्षित नहीं कर पाते हैं तथा हीनभावना से ग्रस्त होते हैं , इस साधना के प्रभाव से उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक व चुम्बकीय हो जाता है तथा उनके संपर्क में आने वाले सभी लोग उनकी और आकर्षित होने लगते हैं । जो मन के अनुकूल सुंदर जीवन साथी पाना चाहते हैं किन्तु किसी कारणवश यह संभव न हो रहा हो, इस साधना के प्रभाव से उनको मन के अनुकूल सुंदर जीवन साथी प्राप्त होने की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं और मनचाहा जीवनसाथी मिल जाता है ।

जिस व्यक्ति के वैवाहिक, पारिवारिक, सामाजिक जीवन में क्लेश व तनाव की स्थिति उत्पन्न हो, इस साधना के प्रभाव से उनके वैवाहिक, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में प्रेम सौहार्द की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं !
जो व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में सफल होने की इच्छा रखते हैं किन्तु सफल नहीं हो पाते हैं, इस साधना के प्रभाव से उनके अंदर उत्तम अभिनय की क्षमता की वृद्धि होने के साथ-साथ अभिनय के क्षेत्र में सफल होने की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं । जो व्यक्ति युवावस्था में होने पर भी पूर्ण यौवन से युक्त नहीं होते हैं, इस साधना से उनके अंदर उत्तम यौवन व व्यक्तित्व निखर आता है ।

जो व्यक्ति सुन्दर रूप सौन्दर्य की इच्छा रखते हैं किन्तु प्रकृति द्वारा कुरूपता से दण्डित हैं, इस साधना के प्रभाव से उनके अंदर आकर्षक रूप सौन्दर्य निखर आता है । जो व्यक्ति कार्यक्षेत्र में मन के अनुकूल अधिकारी या सहकर्मी न होने के कारण असहज परिस्थियों में नौकरी करते हैं, या नौकरी चले जाने का भय रहता है, इस साधना के प्रभाव से उनके अधिकारी व सहकर्मी उनके साथ मित्रवत हो जाते हैं तथा नौकरी चले जाने का भय भी समाप्त हो जाता है ।
जो व्यक्ति ऐसा मानते हैं कि वह अन्य लोगों को अपनी बात या कार्य से प्रभावित नहीं कर पाते हैं, इस साधना के प्रभाव से उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक व चुम्बकीय हो जाता है तथा उनके संपर्क में आने वाले सभी लोग उनकी और आकर्षित होकर उनकी बातों या कार्य से प्रभावित होने लगते हैं ।

उपरोक्त विषयों में अत्यंत कम समय में ही अपेक्षित परिणाम देकर आनंदमय जीवन को प्रशस्त करने वाली यह लीलावती अप्सरा साधना अवश्य ही संपन्न कर लेनी चाहिए, जिससे निश्चित ही आप अपनी इच्छा की पूर्णता को प्राप्त कर सकते हैं व आनंदमय भौतिक जीवन व्यतीत कर सकते हैं । क्योंकि अप्सराएं सौन्दर्य, यौवन, प्रेम, अभिनय, रस व रंग का ही प्रतिरूप होती हैं, अतः इनका प्रभाव जहाँ भी होता है वहां पर सौन्दर्य, यौवन, प्रेम, अभिनय, रस व रंग ही व्याप्त होता है ।
लीलावती अप्सरा की साधना अनेक रूपों में की जाती है, जैसे माँ, बहन, पुत्री, पत्नी अथवा प्रेमिका के रूप में इनकी साधना की जाती है ओर साधक जिस रूप में इनको साधता है ये उसी प्रकार का व्यवहार व परिणाम भी साधक को प्रदान करती हैं, अप्सराओं को पत्नी या प्रेमिका के रूप में साधने पर साधक को कोई कठिनाई या हानी नहीं होती है, क्योंकि यह तो साधक के व्यक्तित्व को इतना अधिक प्रभावशाली बना देती हैं कि साधक के संपर्क में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अप्सरा साधक के मन के अनुकूल आचरण करने लगता है । अप्सरा को प्रत्यक्ष सिद्ध कर लिए जाने पर वह अपने गुण, धर्म, प्रभाव व सीमा के अधीन बिना किसी बाध्यता के अपनी सीमाओं के अधीन साधक की सभी इच्छाओं की पूर्ति करती है । माँ के रूप में साधने पर वह ममतामय होकर साधक का सभी प्रकार से पुत्रवत पालन करती हैं तो बहन व पुत्री के रूप में साधने पर वह भावनामय होकर सहयोगात्मक होती हैं ओर पत्नी या प्रेमिका के रूप में साधने पर उस साधक को उनसे अनेक सुख प्राप्त हो सकते हैं ।


साधना विधी:-

यह साधना ग्रहण शुरुआत होने के कुछ ही समय पहिले  ही शुरू करना है,जैसे 5-10 मिनट पुर्व शुरु कर सकते है और ग्रहण के समाप्ति के बाद भी 5-10 मिनट तक मंत्र जाप करते रहना है। मंत्र जाप बिना किसी माला के जाप करना भी सम्भव है। साधना करने हेतु किसी बाजोट पर पिला वस्त्र बिछाये और उसके उपर एक चमेली के फुलो का माला रखे,किसी प्लेट मे कुछ मिठाइयाँ रखे,एक छोटे ग्लास मे पानी रखें। बडा सा दिपक जलाये जो ग्रहण काल तक चलता रहे और दिपक मे शुद्ध देसी गाय के घी का ही उपयोग करें। धूप कोई भी चलेगा और साधना काल मे बुझ जाये तो कोई चिंता का बात नही है। मंत्र जाप उत्तर दिशा के तरफ ही मुख करके करना है,आसन वस्त्र का कोई बंधन नही है,किसी भी रंग के ले सकते हो । यह एक दिवसीय साधना है परंतु साधक चाहे तो चंद्रग्रहण के बाद भी नित्य जब तक चाहे तब तक मंत्र जाप कर सकता है।

मंत्र:-

।। ॐ हूं हूं लीलावती कामेश्वरी अप्सरा प्रत्यक्षं सिद्धि हूं हूं फट् ।।

om hoom hoom lilaawati kaameshwari apsaraa pratyaksham siddhi hoom hoom phat

साधना समाप्ति के बाद रखा हुआ मिठाइयों का भोग स्वयं ग्रहण करले और ग्लास मे रखा हुआ जल पिपल के पेड़ के जड पर चढा दे,जल चढाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण जी से मन ही मन साधना सफलता हेतु प्रार्थना करें। साधना से आपको अपने जिवन मे परिवर्तन नजर आयेगा,इस साधना से किसी प्रकार का कोई नुकसान नही होता है सिर्फ अप्सरा प्रति स्वयं का भावना शुद्ध रखें। जब भी जिवन मे किसी विशेष मनोकामना को पुर्ण करवाना हो तो शुक्रवार या सोमवार के रात्री मे 9 बजे के बाद अप्सरा से प्रार्थना करते हुए मंत्र का 1 घण्टे तक जाप करने से आपका कोई भी मनोकामना शिघ्र ही पुर्ण हो सकता है। मंत्र जाप से पहिले वही विधी करना है जैसे हमने चंद्रग्रहण के समय किया था। जो साधक अप्सरा को प्रत्यक्ष सिद्ध करना चाहते है उन्हे यह साधना कम से कम नित्य रात्रिकाल मे 2-3 घण्टे तक करते रहना चाहिए। येसा कम से कम 21 दिनो तक करने से लीलावती अप्सरा का प्रत्यक्षीकरण होना सा सम्भव है। यह विशेष साधना करने से आपको बहोत सारी अनुभुतिया हो सकती है,जिसमे आपको सुगंध का एहसास हो सकता है और पायल/घुंगरु के बजने का आवाज भी आसकता है।

आप सभी को साधना मे अवश्य ही सफलता प्राप्त हो,यही मातारानी से प्रार्थना है।



आदेश..........

25 Jan 2017

गायत्री मंत्र उपासना

गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ:

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

भावार्थ: उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।


गायत्री उपासना हम सबके लिए अनिवार्य है-

गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी कहा गया है । वेदों से लेकर धर्मशास्त्रों तक समस्त दिव्य ज्ञान गायत्री के बीजाक्षरों का ही विस्तार है । माँ गायत्री का आँचल पकड़ने वाला साधक कभी निराश नहीं हुआ । इस मंत्र के चौबीस अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं । गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, ऐसा ऋषिगणों का अभिमत है ।
गायत्री वेदमाता हैं एवं मानव मात्र का पाप नाश करने की शक्ति उनमें है । इससे अधिक पवित्र करने वाला और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है । भौतिक लालसाओं से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी और आत्मकल्याण की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु के लिए भी एकमात्र आश्रय गायत्री ही है । गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु,कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं, जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं ।
भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को नित्य-नियमित गायत्री उपासना करनी चाहिए । विधिपूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विभिन्न विपत्तियों, आसन्न विभीषिकाओं से उसकी रक्षा करती है । प्रस्तुत समय संधिकाल का है । आगामी वर्षों में पूरे विश्व में तेजी से परिवर्तन होगा । इस विशिष्ट समय में की गयी गायत्री उपासना के प्रतिफल भी विशिष्ट होंगे । युगऋषि, वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने गायत्री के तत्त्वदर्शन को जन-जन तक पहुँचाया व उसे जनसुलभ बनाया है । प्रत्यक्ष कामधेनु की तरह इसका हर कोई पयपान कर सकता है । जाति, मत, लिंग भेद से परे गायत्री सार्वजनीन है । सबके लिए उसकी साधना करने व लाभ उठाने का मार्ग खुला हुआ है ।


गायत्री उपासना का विधि-विधान-

गायत्री उपासना कभी भी, किसी भी स्थिति में की जा सकती है । हर स्थिति में यह लाभदायी है, परन्तु विधिपूर्वक भावना से जुड़े न्यूनतम कर्मकाण्डों के साथ की गयी उपासना अति फलदायी मानी गयी है । तीन माला गायत्री मंत्र का जप आवश्यक माना गया है । शौच-स्नान से निवृत्त होकर नियत स्थान, नियत समय पर, सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना की जानी चाहिए ।

उपासना का विधि-विधान इस प्रकार है:

(१) ब्रह्म सन्ध्या - जो शरीर व मन को पवित्र बनाने के लिए की जाती है । इसके अंतर्गत पाँच कृत्य करने होते हैं ।

(अ) पवित्रीकरण - बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें एवं मंत्रोच्चारण के बाद जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें ।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा । यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।


(ब) आचमन - वाणी, मन व अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें । हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाए ।

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा । ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा । ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ।


(क) शिखा स्पर्श एवं वंदन - शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए भावना करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे । निम्न मंत्र का उच्चारण करें

। ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते । तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥


(ड) प्राणायाम - श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है । श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं । प्राणायाम निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ किया जाए ।

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ ।

(य) न्यास - इसका प्रयोजन है-शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि देव-पूजन जैसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके । बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उनमें भिगोकर बताए गए स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें ।

ॐ वाङ् मे आस्येऽस्तु । (मुख को)
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु । (नासिका के दोनों छिद्रों को)
ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु । (दोनों नेत्रों को)
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु । (दोनों कानों को)
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु । (दोनों भुजाओं को)
ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु । (दोनों जंघाओं को)
ॐ अरिष्टानि मेऽङ्गानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु । (समस्त शरीर पर)

आत्मशोधन की ब्रह्म संध्या के उपरोक्त पाँचों कृत्यों का भाव यह है कि सााधक में पवित्रता एवं प्रखरता की अभिवृद्धि हो तथा मलिनता-अवांछनीयता की निवृत्ति हो । पवित्र-प्रखर व्यक्ति ही भगवान् के दरबार में प्रवेश के अधिकारी होते हैं ।


(२) देवपूजन - गायत्री उपासना का आधार केन्द्र महाप्रज्ञा-ऋतम्भरा गायत्री है । उनका प्रतीक चित्र सुसज्जित पूजा की वेदी पर स्थापित कर उनका निम्न मंत्र के माध्यम से आवाहन करें । भावना करें कि साधक की प्रार्थना के अनुरूप माँ गायत्री की शक्ति वहाँ अवतरित हो, स्थापित हो रही है।

ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि । गायत्रिच्छन्दसां मातः! ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥
ॐ श्री गायत्र्यै नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि, ततो नमस्कारं करोमि ।


(ख) गुरु - गुरु परमात्मा की दिव्य चेतना का अंश है, जो साधक का मार्गदर्शन करता है । सद्गुरु के रूप में पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी का अभिवंदन करते हुए उपासना की सफलता हेतु गुरु आवाहन निम्न मंत्रोच्चारण के साथ करें ।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः । गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ अखण्डमंडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।


(ग) माँ गायत्री व गुरु सत्ता के आवाहन व नमन के पश्चात् देवपूजन में घनिष्ठता स्थापित करने हेतु पंचोपचार द्वारा पूजन किया जाता है । इन्हें विधिवत् संपन्न करें । जल, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप तथा नैवेद्य प्रतीक के रूप में आराध्य के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं । एक-एक करके छोटी तश्तरी में इन पाँचों को समर्पित करते चलें । जल का अर्थ है - नम्रता-सहृदयता । अक्षत का अर्थ है - समयदान अंशदान । पुष्प का अर्थ है - प्रसन्नता-आंतरिक उल्लास । धूप-दीप का अर्थ है - सुगंध व प्रकाश का वितरण, पुण्य-परमार्थ तथा नैवेद्य का अर्थ है - स्वभाव व व्यवहार में मधुरता-शालीनता का समावेश ।

ये पाँचों उपचार व्यक्तित्व को सत्प्रवृत्तियों से संपन्न करने के लिए किये जाते हैं । कर्मकाण्ड के पीछे भावना महत्त्वपूर्ण है । 


(३) जप - गायत्री मंत्र का जप न्यूनतम तीन माला अर्थात् घड़ी से प्रायः पंद्रह मिनट नियमित रूप से किया जाए । अधिक बन पड़े, तो अधिक उत्तम । होठ हिलते रहें, किन्तु आवाज इतनी मंद हो कि पास बैठे व्यक्ति भी सुन न सकें । जप प्रक्रिया कषाय-कल्मषों-कुसंस्कारों को धोने के लिए की जाती है ।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करते हुए माला की जाय एवं भावना की जाय कि हम निरन्तर पवित्र हो रहे हैं । दुर्बुद्धि की जगह सद्बुद्धि की स्थापना हो रही है । 


(४) ध्यान - जप तो अंग-अवयव करते हैं, मन को ध्यान में नियोजित करना होता है । साकार ध्यान में गायत्री माता के अंचल की छाया में बैठने तथा उनका दुलार भरा प्यार अनवरत रूप से प्राप्त होने की भावना की जाती है । निराकार ध्यान में गायत्री के देवता सविता की प्रभातकालीन स्वर्णिम किरणों को शरीर पर बरसने व शरीर में श्रद्धा-प्रज्ञा-निष्ठा रूपी अनुदान उतरने की भावना की जाती है, जप और ध्यान के समन्वय से ही चित्त एकाग्र होता है और आत्मसत्ता पर उस क्रिया का महत्त्वपूर्ण प्रभाव भी पड़ता है । 


(५) सूर्यार्घ्यदान - विसर्जन-जप समाप्ति के पश्चात् पूजा वेदी पर रखे छोटे कलश का जल सूर्य की दिशा में र्अघ्य रूप में निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ चढ़ाया जाता है ।

ॐ सूर्यदेव! सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते । अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥
ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः॥

भावना यह करें कि जल आत्म सत्ता का प्रतीक है एवं सूर्य विराट् ब्रह्म का तथा हमारी सत्ता-सम्पदा समष्टि के लिए समर्पित-विसर्जित हो रही है ।

इतना सब करने के बाद पूजा स्थल पर देवताओं को करबद्ध नतमस्तक हो नमस्कार किया जाए व सब वस्तुओं को समेटकर यथास्थान रख दिया जाए । जप के लिए माला तुलसी या चंदन की ही लेनी चाहिए । सूर्योदय से दो घण्टे पूर्व से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक कभी भी गायत्री उपासना की जा सकती है । मौन-मानसिक जप चौबीस घण्टे किया जा सकता है । माला जपते समय तर्जनी उंगली का उपयोग न करें तथा सुमेरु का उल्लंघन न करें । 

 
(सौजन्य :- प.पु. गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी)




आदेश...........

मुवक्किल सिद्धी साधना (muwakkil)

मुवक्किल यह शब्द बहोत प्रचलित है क्युके सुलेमानी तंत्र मे इसका बहोत महत्व है। मुवक्किल जिन जिन्नात से भी कइ ज्यादा शक्तिशाली होता है,एक मुवक्किल हजार जिन्नो से लढकर जितने का ताकत रखता है। मुवक्किल को इस्लाम मे स्वर्गदूत कहा जाता है,इनको ज्यादा घुस्सा नही आता है और जिन बडे घुस्सेल होते है। मुवक्किल एक प्रकार से देखा जाये तो सबसे बडा रक्षात्मक शक्ति भी है,यह सभी कार्यो को पुर्ण करने मे सक्षम भी है। जब भी मुवक्किल से कार्य करवाया जाये तो कार्य पुर्ण होने के बाद उसको हक देना जरुरी होता है। मुवक्किल को सबसे ज्यादा प्रिय गेहु के आटे की गोलियाँ बहते हुए जल मे प्रवाहित करना पसंद है,बहते हुए जल मे जब मछलियाँ आटे की गोलियाँ खाती है तो मुवक्किल साधक को प्रत्यक्ष मदत करता है क्युके मुवक्किल का यह सबसे प्रिय हक है।

एक हदीस मे येसा कथन है के "मुवक्किल इतना बडा है की उनका आकार हमारे कल्पना से परे है",उन्हे अल्लाह ने इतना शक्ति दिया हुआ है के वे जन्नत का वजन सहन कर सकते है। कुरान 35:1 मे दिया हुआ है,मुवक्किल का आकार भिन्न रुप मे है और उनमे से कुछ को दो पंख किसीको तिन चार या उससे भी ज्यादा पंख है। अर्श सुरा घाफिर अध्याय क्रमांक 66 कविता 7 मे प्रमाण मिलता के मुवक्किल स्वर्गदूत है और वह प्रभु की स्तुती करने मे मग्न रहेते है। इसलिए जो लोग मुवक्किल को बुरा मानते है उन्हे अपना सोच बदल देना चाहिए,वैसे देखा जाये तो मुझे सुलेमानी तंत्र का थोड़ा बहोत ग्यान है परंतु कुरान का कोई ज्यादा ग्यान नही है। मैने यहा अपने सोच के हिसाब से लिखा है और मेरा हेतु किसीका भी दिल दुखाने का नही है,फिर भी मेरे शब्दो से किसिके दिल को ठेस पहोचती है तो मै उनसे माफी चाहता हूँ। मैंने कई बार मुवक्किल से मदत मांगा है और हर बार उनसे मुझे शत प्रतिशत मदत मिला है। मेरे पास जो गोपनीय मुवक्किल का मंत्र साधना है वह पुर्णत: प्रामाणिक है और मंत्र हिन्दी मे है,इसलिए मेरा मानना है के मुवक्किल जल्दी खुश होकर साधक का प्रत्येक नेक मनोकामना पुर्ण करते है।

मुवक्किल साधना अब तक गोपनीय रहा है क्युके इस साधना से अच्छे कार्यो के साथ बुरे कार्य भी सम्पन्न करवाये जा सकते है। मुवक्किल के पास खुदा की असिम शक्तियाँ है जिससे वह कोई भी कार्य कर सकते है। मुवक्किल सिद्धी कोई साधारण सिद्धी नही है,जिसने ये सिद्धी करली उसके लिये कोई भी कार्य करना असम्भव नही है। इनको सिद्ध करने पर इन्सान भगवान के नजदीक पहोचता है और अपने कार्य के साथ दुसरो के भी कार्यो को बेहद आसानी से करवा सकता है। जरुरी नही है के इनका मंत्र उर्दु या अरबी मे हो,मेरे पास जो मंत्र है वह तो हिन्दी मे है। मैने मुवक्किल से अपने कइ कार्य मे मदत ली है और हर बार 100 टंच के साथ मुझे मदत मिला है,मेरे कार्य पुर्ण हुए । मेरे लिए तो मुवक्किल सिद्धी एक चमत्कार से कुछ कम नही है,मैने जब भी इस सिद्धी को आजमाया तब मुझे कभी निराशा नही देखना पडा़ । अन्य साधना और मुवक्किल साधना मे मुझे कुछ ज्यादा अंतर महेसुस नही हुआ ।

आज के समय मे इंटरनेट पर आपको कइ मुवक्किल साधना देखने मिल जायेगा जो पाकिस्तान के लोगो से दिया हुआ है और वो लोग आमलियत (मंत्र) का न्योच्छावर राशी 25,000 हजार रुपये लेते है,जब के इतना राशी लेने का उनका कोई क्षमता नही है। फिर भी उन लोगो को मंत्र बेचने मे और हमारे यहा के लोगो को मंत्र खरीदने मे पता नही कोनसा आनंद प्राप्त होता है?  यह इस वर्ष का एक येसा साधना है जो सुलेमानी तंत्र से   सम्बन्धित है। भारत मे येसा साधना पोस्ट करना कोई मजाक नही है क्युके हमारा देश विभिन्न धर्म से बना हुआ है,जिसमें हिन्दू,मुस्लिम,सिख,इसाई और अन्य लोग रहते है। इस साधना को मानना और ना मानना उनका काम है जो इन्सानियत को अपना धर्म नही मानते है,इसलिए इस साधना को सभी लोग यह नही समज सकते की यह एक महत्वपूर्ण साधना है। यह साधना इन्सानो के लिए है,जिनका धर्म इन्सानियत है। जरुरी नही है के यह साधना सिर्फ़ मुस्लिम धर्म के लोग ही कर सकते है,मेरा यह मानना है के यह साधना सभी धर्म के लोग कर सकते है।

इस साधना मे कुछ नियम है जैसे 11,21 या 41 दिनो तक अगर यह साधना आप करते हो तो साधना काल मे मास,मच्छी,अंडा,प्याज,लहसुन और शराब का कोई भी साधक सेवन नही कर सकता है। इसमे ब्रम्हचैर्यत्व का पालन करना अत्यंत आवश्यक है,इस साधना मे झुट बोलने पर भी पाबंदी है। इस साधाना मे किसी भी प्रकार का दरूद शरिफ या आयतुल कुर्सी पढ़ने का कोई भी विधान नही है। इस साधना के मंत्र मे लिखा हुआ है ".........इन्सान फरिश्ता आया है......",यह शब्द आपको देखने मिलेंगे। क्योके यह साधना उन्हे करना चाहिए जो दिन-रात दुसरो के भलायी का सोचते है,जहा इस साधना से हम हमारा भला कर सकते है वही दुसरो का भी भला कर सकते है।

इस साधना मे सुलेमानी मुवक्किल पत्थर (रत्न) और माला का आवश्यकता है। यह साधना कोई भी व्यक्ति कर सकता है,मुझे पुर्ण विश्वास है के इस साधना मे आपको 100% सफलता मिल सकता है। इस साधना से आप किसी भी कार्य को पुर्ण करवा सकते हो,आपका सभी मनोकामना पुर्ण हो सकता ही है,आवश्यकता है तो सिर्फ मेहनत और विश्वास का जो आपके लिए जरुरी है। इस साधना के बारे मे और भी बाकि जानकारी उन साधकोको दिया जायेगा जो साधना करने मे सक्षम है क्योके स्वयं का और मेरा समय बरबाद करने के लिए मै किसीको भी मार्गदर्शन नही कर सकता हूँ। जो साधक मुवक्किल साधना मे सिद्धी प्राप्त करना चाहते हो,सिर्फ वही साधक मुझसे मेरे ई-मेल आई.डी. पर सम्पर्क करे,मेरा ई-मेल आई.डी.- amannikhil011@gmail.com है।
इस साधना मे सम्बन्धित सामग्री का न्योच्छावर धनराशि 5100/-रुपये है। इसमे दिया जाने वाला सुलेमानी मुवक्किल पत्थर (रत्न) एक विशेष प्रकार से सिद्ध किया हुआ पत्थर है। जिसे प्राप्त करने से तो साधना मे 50% सफलता तो प्राप्त किया ही जा सकता है और बाकि बचा 50% साधना सफलता मंत्र जाप से मिल सकता है। तो इस तरहा से हम मुवक्किल को 100% सिद्ध कर सकते है और सभी प्रकार का मनोकामना मुवक्किल से पुरा करवा सकते है।

आदेश......