25 Feb 2018

तंत्र दोष निवारण प्रयोग (Black Magic Removel)




होली हिंदु धर्म का सबसे मुख्य त्योंहार माना जाता है जिसका शास्त्रों और ज्योतिष में भी विशेष महत्व बताया गया है। ज्योतिष की दृष्टि से होलिका दहन विशेष सिद्धीदायी मानी जाती है .. मान्यता है कि होलिका दहन की रात्रि में किए गए सभी धार्मिक अनुष्ठान सिद्ध होते हैं और इनका उचित फल मिलता है। साथ ही ये भी मान्यता है कि होली की पवित्र अग्नि में सभी तरह के परेशानी, व्याधि और रोग-भय आदी को नाश करने की क्षमता होती है। ऐसे में आज आपको होलिका दहन के किए जाने वाले एक ऐसे ही विशेष प्रयोग के बारे में बता रहा हु,जिसके जरिए आप जीवन की सारी परेशानियों और चिंताओं से मुक्ति पा सकते हैं।

तंत्र शास्त्रों के अनुसार होली की रात्रि का विशेष महत्व होता है। इस दिन किए गए टोने-टोटके, पूजा पाठ या साधना अचूक होते हैं तथा उनका फल तुरंत मिलता है। इस दिन किसी दूसरे के द्वारा किए गए काले जादू को भी तुरंत ही समाप्त किया जा सकता है।

होलिका दहन की रात को तंत्र साधना के लिए बढि़या माना जाता है। इस दिन लोग कई समस्याओं से निजात पाने के लिए तंत्र मंत्र का सहारा लेते हैं। 1 मार्च को शाम में 7 बजकर 37 मिनट पर भद्रा समाप्त हो जाएगा इसके बाद से होलिका दहन किया जाना शुभ रहेगा। वैसे शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार इस साल होलिका दहन के लिए बहुत ही शुभ स्थिति बनी हुई है। पूर्णिमा तिथि हो, प्रदोष काल हो और भद्रा ना लगा हो। इस वर्ष होलिका दहन पर ये तीनों संयोग बन रहे हैं। धार्मिक ग्रंथ और शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दिनों में किए गए व्रत और किए गए दान से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन वस्त्र, अनाज और अपने इच्छानुसार धन का दान करना चाहिए।

आज आपको तीव्र तंत्र बाधा दोष के निवारण हेतु एक गोपनीय तांत्रिक प्रयोग बता रहा हू, जिससे भयंकर से भयंकर तांत्रिक बाधा दोष (काला जादू) समाप्त किया जा सकता है । यह एक आसान सा साधना प्रयोग है और इस प्रयोग के बाद इसका अनुभव किया जा सकता है,यह एक शीघ्र फलदायी साधना है । ऐसा प्रयोग प्राप्त होना ही जीवन मे सौभाग्य माना जाता है,आपके साथ-साथ यह प्रयोग मैं स्वयं भी संपन्न करने वाला हूँ । यह प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए, बड़े से बड़े तांत्रिकों से लेकर एक सामान्य व्यक्ति को भी यह प्रयोग करना आवश्यक है । इससे तांत्रिक बाधा के साथ साथ जीवन मे सफलता प्राप्ति हेतु आनेवाले बाधा का भी नाश होता है ।

साधना सामग्री-पीली सरसों  5-10 ग्राम ।

एक व्यक्ति के लिए 5-10 ग्राम पीली सरसों ठीक है परंतु अगर पुरा परिवार यह साधना करना चाहता है तो ज्यादा पीली सरसों खरीदे,पंसारी के दुकान में आपको पीली सरसों आसानी से मिल जाएगा और यह सस्ता होता है इसलिए चिंता ना करे । एक व्यक्ति का तंत्र बाधा दोष निवारण का खर्च 3-5 रुपये आता है जो ज्यादा नही है ।

साधना विधि-दाहिने हाथ मे पीली सरसों रखे,जितना आप हाथ मे ले सकते हो उतना ही लीजिए,ज्यादा लेने की आवश्यकता नही है वर्णा सरसो हाथ से मंत्र जाप के समय गिरता रहेगा ।

दाहिने हाथ मे पीली सरसों लेकर,उस पर त्राटक करते हुए मंत्र का 36 मिनट तक जाप करे । मंत्र जाप के बाद (सरसो को मुठ्ठी में बंद करे ) अपने सर से लेकर पैरो तक 7 बार मुठ्ठी में बंद पीली सरसों को उतारे और उतारने के बाद सरसो को किसी प्लेट में रख दे । फिर घर से बाहर जाकर प्लेट में रखे हुए सरसो को होलिका में डाल दे,यह प्रयोग रात्रि में 9 बजे के बाद कभी भी कर सकते है । मंत्र जाप के समय जमीन पर आसन डालकर बैठ जाये और जाप करे परंतु सरसो को उतारने के व्यक्त खड़े होकर उतारना है । दिशा,आसन, वस्त्र का कोई बंधन नही है,आपके पास किसी भी रंग की धोती या वस्त्र हो काम चल जाएगा,आसन कोई भी चलेगा और किसी भी दिशा में मुख करके साधना कर सकते हो ।



मंत्र-
।।ह्रीं ह्लीं दुं दुर्गम्च्छेदिन्यै दुं ह्लीं ह्रीं फट ।।

Hreem hleem doom durgamcchedinyai doom hleem hreem phat



मंत्र का उच्चारण साफ-साफ होना जरूरी है और इस प्रयोग के बाद इसका असर पीली सरसों को होलिका में दहन करते ही देखने मिलता है ।


आप सभी को होली के पावन अवसर की हार्दिक शुभकामनाएं



आदेश.......


Holi is considered to be one of the most important festivals of the Hindus and it also has an important place in our scriptures and astrology. According to astrology Holika dahan is considered to be an important day when one can receive Siddhis, it is believed that any saadhna done on this day becomes successful and we receive ample benefits from them. It is also believed that the pure fire of holika pyre has the power to burn away any problem or disease. Keeping this in mnd, I'm revealing a specific prayog through which you can remove all problems and obstacles in your life.

According to tantra scriptures,the night of  holi has a lot of importance. Any tona-totka, pooja or saadhna work without fail and we receive the benefits immediately. We can even remove any kind of black magic that has been done by others.
This day is used by a lot of people to free themselves of their problems through tantra mantra. On 1st March after 7:37 pm Bhadra will end and then it would be an auspicious time to burn the holika pyre. According to tantra scriptures, this year holika is going to be very auspicious. The date is a Purnima, there's Pradosh kaal, and no Bhadra. According to scriptures,  fasting done during holashtak and even donations helps to relive our life's problems and bring us closer to God. You should donate food, clothes and money according to your own capability.

Today I'm going to tell you a very strong tantra prayog, which can remove the effects of even the most powerful black magic. It is a very easy prayog, and you will experience the benefits of this very soon. Along with you even I'm going to do this prayog. Everyone, including the biggest tantriks and even the commonest of people should do this as it helps to remove the obstacles in your tantra saadhnas as well as any obstacles in your success.

What you need - yellow Mustard - 5-10 grams.

This should be enough for one person. If the whole family wants to do this saadhna, then you will have to buy more accordingly. You can get it from any local shopkeeper and it is not very costly. Only 3-5 Rs have to be spent for each person.




Saadhna vidhi

Take a fistful of yellow Mustard, don't take more than what you can handle or else it will keep falling during the mantra chant.
Take the mustard seeds in your right hand, and while doing tratak on it ( gazing without blinking your eyes), do the mantra chant. After the chant, fold your hand into a fist with the mustard inside, stand up, and then place your fist near your head, take it down to your feet and then bring it back up to your head. Do this 7 times. Place the seeds in a plate. Next, go out and throw these seeds into the holika pyre. Do this after 9 pm in the night. During the japa, sit and do the chant and also place an aasan, but, do the next step standing up. There are no rules for clothes, aasan or direction.



मंत्र-
।।ह्रीं ह्लीं दुं दुर्गम्च्छेदिन्यै दुं ह्लीं ह्रीं फट ।।

Hreem hleem doom durgamcchedinyai doom hleem hreem phat



The mantra should be pronounced clearly and this effects of this prayog are  seen the instant you throw the seeds in the pyre.
Wishing you all a happy and prosperous Holi!


Aadhesh.. 


11 Feb 2018

शिव दर्शन अघोरी मंत्र साधना

हे मेरे प्रिय भोलेनाथ, आपके कृपा से मैं जीवित हु ।
हर सांस भी आपको दे दु तो,वो भी आपकी ही है,अब आपही बताए आपको क्या अर्पित कर सकता हूँ ?

यही बात है जो हर शिव भक्त अपने दिल मे रखता है,करे तो क्या करे अपने प्रिय ईष्ट भगवान शिव जी के लिए,बहोत कुछ करने की चाह होती है और मन मे एक ही स्वप्न होता है के मैं शिव जी का आशिर्वाद प्राप्त करु ।

13 फरवरी को महाशिवरात्रि का दिव्य पावन अवसर है जिसे खोना नही चाहिए अपितु अपने ईष्ट के कृपा को प्राप्त करने के लिए भक्ति, सेवा या मंत्र जाप अवश्य करना चाहिए । कोई एक बुरा आदत छोड़ ही दो इस महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर जैसे शराब पीना,सिगरेट पीना,मास खाना,घुटका खाना या फिर तंबाकू,जो भी इसमें से किसी भी शिव भक्त को बुरा आदत हो वह अब छोड़ ही दो । शिव भक्त को त्याग करना आना चाहिए और बुरे से बुरे आदतों को त्याग कर जो भी शिव भक्त भक्तिमार्ग पर आगे बढ़ता है उसे शिव कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है ।

अघोरी बड़े नशे में धुत होते है और उनका दिमाग सातवे आसमान पर बैठकर बाते करता है के "मैं ये हु-मैं वो हु,मैं ये कर सकता हु-मैं वो कर सकता हु" । हमेशा याद रखो ऐसे लोग अघोरी नही अपितु चप्पल चोर होते है और इन्हें नशा करने के अलावा कुछ नही आता है । मैंने अपने जीवन मे ऐसे अघोरी देखे है जिनको नशे की आदत नही है और कुछ तो ऐसे भी देखे के वह चाहे कितना भी शराब पिये उनको नशा होता ही नही था । सच्चा अघोरी हो या फिर सच्चा शिव भक्त हो वह सिर्फ एक ही बात समझता हैं, शिवभक्ती से बड़ा नशा इस संसार में है ही नही ।

भक्त ही समझे भक्ति का नशा,
और कौन जाने क्या होता है नशा ।

इसलिए कह रहा हु के इस महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर शिवभक्ती के नशे में डूब जाओ परंतु बेकार के चीजो से नशा मत करो और अब तक नशा करते आये हो तो उसको अब त्याग दो,तो ही आप सच्चे शिवभक्त कहलाओगे अन्यथा ढोंगी भक्तों को हर बार भगवान से भिक मांगते रहना पड़ता है और सच्चे भक्तों को भगवान कुछ भी मांगने से पहिले ही आशीर्वाद के रूप में जो चाहे वह दे देते है ।

शिव जी पर तो शिवपुराण के साथ साथ कई ग्रंथ लिखे हुए है परंतु भोले बाबा को कैसे प्रसन्न करे यह तो रावण ने इस दुनिया को सिखाया था । माँ सती  में स्वयं के जीवन को त्याग दिया तब जाकर कहा माँ पार्वती के रूप में आज भी वह भोले बाबा के साथ विराजमान है,यही बात रावण ने समझ ली और दशानन रावण अपने मुण्ड को काट कर चढ़ा रहा था,वह भी अपने जीवन को त्याग रहा था परंतू शिव जी ने उसको रोक लिया और आत्मलिंग प्रदान कर दिया ।

अब रावण तो दूसरा कोई बनना है ही नही परंतु कुछ तो त्याग करके देख ही लो और नशे का त्याग करोगे तो गारंटी के साथ बोल रहा हु मरोगे नही ।

मेरा काम था समझाना,जिसे समझना है वो समझ लेगा और इसी विश्वास के साथ आज का यह अद्वितीय मंत्र साधना दे रहा हु ।

यह मंत्र मुझे एक विचित्र अघोरी बाबा ने दिया था,इस मंत्र से बहोत सारे काम होते है परंतु मैं सिर्फ आपको शिव जी के कृपा को प्राप्त करने हेतु साधना विधान बता रहा हु,बाकी इस मंत्र से काम कैसे करने है वह गोपनीय रखना आवश्यक है ।

महाशिवरात्रि के रात्रि में अन्नग्रहण ना करे,जो भी खाना हो वह सूर्यास्त से पहिले ही खाना है । शिवलिंग या शिव जी के चित्र के सामने एक गाय के घी का दीपक जलाएं और उस दीपक के लौ में देखते हुये 3 घंटे तक जाप करे तो अवश्य ही शिव जी का दर्शन संभव है । साधना रात्रि में 9.30 बजे के बाद कभी भी शुरू करे सिर्फ 12 बजे से पहिले शुरू करे । आसन वस्त्र किसी भी रंग का चलेगा और मंत्र जाप के समय उत्तर दिशा में मुख करके बैठना है । जलते हुए दीपक के लौ में भोले बाबा के दर्शन संभव है,ऐसा मत सोचो के सामने आकर प्रत्यक्ष होंगे क्योंके प्रत्यक्ष दर्शन हेतु कठिन तपस्या की आवश्यकता होती है । साधना में धूपबत्ति जला सकते हो परंतु साधना कक्ष में ज्यादा धुवा मत करो नही तो आंखों में जलन होगा । दीपक के लौ में त्राटक करना है इसलिए ज्यादा से ज्यादा आंखों को खुला रखो ।

अघोर मंत्र

।। बम बम भोले,अघोर गौरा पारबती,शिवजी कुँवारा संग रहे ।।

इसमें सिर्फ शब्द है,नाही ॐ है और नाही आदेश है और नाही कोई दूहाई है फिर भी यह एक अद्वितीय अघोर मंत्र है । मंत्र जाप के समय ज्यादा गर्मी महसूस हो तो साधना में से उठ जाना उचित रहेगा क्योंके साधना जबरदस्ती संपन्न मत करो ।

आदेश
।।ॐ नमः शिवाय ।।



Shiv Darshan Aghori Mantra Saadhna

"My Dear Lord, I am alive by your grace. Every breath that I take belongs to you. What can I offer to you when everything that is mine has been given by you "

These are the thoughts of every Shiv bhakt. Every Shiv bhakt wants to do a lot for his Lord and carries the dream that one day He or She will receive the Lord's blessing. 


This year,  Mahashivratri is falling on 13th February, and it is a very auspicious time to get Lord Shiva's blessings through bhakti ( devotion), seva ( servitude)  or Mantra jap. This Mahashivratri, leave some of the bad habits that you've been carrying uptill now, like drinking alcohol, smoking cigarettes, eating meat, or even chewing tobacco. Every Shiv bhakt should learn to sacrifice, and anyone who leaves his bad habits and follows the bhakti path of Shiva always receives His blessings. 

A lot of aghoris stay intoxicated and say things like " I'm this - I'm that- I can do this- I can do that". You should know that these people are not real aghoris, they are fakes and they don't know anything except staying intoxicated. I've seen aghoris that do not take intoxicants and I've also seen aghoris who can drink huge quantities of alcohol and still not get drunk. A real shiv bhakt only knows one thing - 

 Only a devotee can understand the intoxicantation of devotion, 


No one else can understand intoxication. 

That's why I'm saying, this year get intoxicated with the love of lord but leave other intoxicants like alcohol and cigarettes. And if you've been doing so uptill now,  stop. Only then you will be seen as a true shiv bhakt. If you, then you are no different from the fake bhakts of God who have to beg Him for everything while the real ones get everything from Him without asking. 


There have been a lot of Granths written about Lord Shiva, including the Shiv puran, but it was Ravana who taught people how to impress Him. He understood that Maa Sati had to give up her life before she could get a permanent place beside the Lord. So even he was ready to cut off his head and tribute it to Him, but he was stopped by Shiva who rewarded him with the Atma-lingam. 


Learn how to sacrifice from ravana, and leave intoxicants. You won't die, I assure you. 

My work was to advise,  and that is done. Those who have wisdom will follow what has been said. Keeping that in mind, I'm giving a mantra has no double. This was given to be by an aghori baba, it is used for a lot of purposes, but only giving the vidhi to get blessing of the lord, nothing else. 

Don't eat at night on mahashivratri, eat before the sunset. Light a cow ghee lamp/diya in front of a Shivling or a photo of Lord Shiva, and stare into its flame continously while chanting the mantra for 3 hours. If done with diligence, then Darshan of the lord is definitely possible. Begin after 9:30 pm anytime but before 12 am. The asan and  clothes can be of any colour but the direction has to be North. Darshan of lord Shiv is definitely possible inside the flame of the lamp. Don't think there will be a pratyaksh darshan, that is only possible through very difficult austerities. You can light Dhoop batti but take care that the room does not get filled with smoke or your eyes will start to tear. Keep your eyes open as much as you can as you need to do tratak while staring into the flame. 


Mantra 


" ।। बम बम भोले,अघोर गौरा पारबती,शिवजी कुँवारा संग रहे ।।


" Bum Bum Bhole, Aghor Goura Parbati, Shivji Kunwara Sang Rahe" 



There are only words in this mantra,  but it is very powerful. If you feel hot during the chant, it would be better to get up rather than forcefully trying to complete the saadhna. 

Aadhesh... 


4 Feb 2018

सूर्यग्रहण मंत्र साधना





16 फ़रवरी 2018 को साल का पहला सूर्य ग्रहण घटित होगा। भारतीय समयानुसार इस सूर्य ग्रहण ग्रहण की समयावधि रात्रि 00:25:51 से सुबह 04:17:08 बजे तक रहेगी,ग्रहण के समय अनुसार यह ग्रहण 15 फरवरी के रात्रि में घटित होगा। यह आंशिक सूर्य ग्रहण होगा जो भारत में नहीं दिखाई देगा। हालांकि दुनिया के अन्य क्षेत्रों जैसे- साउथ अमेरिका, पेसिफिक, अटलांटिक और अंटार्कटिका में इसकी दृश्यता रहेगी। ग्रहण चाहे दुनिया मे कही पर भी हो परंतु तंत्र साधना हेतु वह एक अच्छा समय होता है जिसमे मंत्र सिद्धि प्राप्त की जा सकती है ।

यह ग्रहण हमारे देश मे तंत्र साधना हेतु फायदेमंद है क्युके जो मंत्र साधना हमे रात्रि में करना है,ठीक समयानुसार ग्रहण काल भी रात्रि में है । इसलिए हम इस बार "तंत्र उत्कीलन त्रिपुरा साधना" करेंगे, जो एक महत्वपूर्ण साधना है ।

यदि हम जीवन का गहराई से विश्लेषण करें, तो पायेंगे, कि व्यक्ति हर पल, हर क्षण, भय एवं बाधाओं से आशंकित रहता है। गहराई से विश्लेषण करने पर ऐसा ही प्रतीत होता है कि मनुष्य की शक्तियां कीलित हो गई हैं। शक्तियों का यह कीलन स्वार्थी लोगों द्वारा या उनकी स्वयं की गलतियों से भी हो सकता है। इस कारण जीवन में भय का वातावरण बना रहता है और यह भी सत्य है कि निर्भय हुए बिना जीवन का आनन्द संभव ही नहीं है।

जीवन में निर्भयता एवं बाधाओं के निवारण के लिए व्यक्ति अनेक उपाय करता ही रहता है। जिस प्रकार कांटे से कांटा निकाला जा सकता है उसी प्रकार जीवन में कुछ ऐसी बाधाएं, ऐसी समस्याएं होती हैं जिन्हें उच्च तंत्र साधनाओं द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है।

आवश्यकता केवल इस बात कि है कि हम अपने जीवन का विश्लेषण करें तथा इस बात को समझें कि हमारे जीवन में जो घटित हो रहा है वह सामान्य है अथवा असामान्य। सामान्य समस्याओं का हल तो सामान्य प्रयोगों से किया जा सकता है। किन्तु असामान्य समस्याओं का हल तो विशेष तंत्र प्रयोगों से ही संभव है और इस हेतु उच्चस्तरीय तंत्र साधनाएं सम्पन्न करनी होती हैं। इस हेतु श्रेष्ठ उपाय है – ‘ तंत्र उत्कीलन त्रिपुरा साधना ’।

त्रिपुर भैरवी दस महाविद्याओं में अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं तीव्र शक्ति स्वरूपा हैं। इनकी कृपा से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुरक्षा प्राप्त होेने लगती है और समस्त बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। इनकी तंत्र शक्ति के माध्यम से साधक पूर्ण क्षमतावान एवं वेगवान बन सकता है।

भगवती त्रिपुर भैरवी, महाभैरव की ही शक्ति हैं, उनकी मूल शक्ति होने के कारण उनसे भी सहस्र गुणा अधिक तीव्र तथा क्रियाशील हैं। साधक जिन लाभों को भैरव साधना सम्पन्न करने से प्राप्त करता है, जैसे शत्रुबाधा निवारण, वाद-विवाद मुकदमा आदि में विजय, आकस्मिक दुर्घटना टालना, रोग निवारण आदि इस साधना के माध्यम से इन विषम स्थितियों पर भी आसानी से नियंत्रण कर सकता है।

कैसा भी वशीकरण प्रयोग करवा दिया गया हो, कैसा भी भीषण तांत्रिक प्रयोग कर दिया गया हो, दुर्भावना वश वशीकरण प्रयोग कर दिया गया हो, गृहस्थ या व्यापार बन्ध प्रयोग हुआ हो, तो तंत्र उत्कीलन त्रिपुरा साधना सम्पन्न करने पर वह बेअसर हो जाता है।



उच्च स्तरीय तंत्र प्रयोग

जब किसी व्यक्ति पर या उसके परिवार पर द्वेष वश तांत्रिक प्रयोग होता है, तो वह परिवार अत्यन्त कष्ट भोगने के लिए विवश हो जाता है। तांत्रिक बाधा के कारण उसके समस्त कार्य बाधित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में तंत्र साधना सम्पन्न करने पर व्यक्ति का जीवन निष्कंटक तथा तेजस्वी क्षमताओं से युक्त हो जाता है।



कीलन दोष क्या है?

कीलन का तात्पर्य है, एक बन्धन। जिस प्रकार एक खूंटे से बंधा पशु उस खूंटे के चारों ओर तो चक्कर लगा सकता है लेकिन वह सीमा से आगे नहीं बढ़ सकता, खूंटे से गले तक की रस्सी किसी के लिए छोटी हो सकती है और किसी के लिए बड़ी, परन्तु बन्धन तो बन्धन ही है, वह एक पक्षी की भांति स्वच्छन्द विचरण तो नहीं कर सकता, इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की शक्तियों का कीलन किया हुआ है, और यह कीलन उसके कर्मों के कारण, उसके दोषों के कारण, उस पर किये गये किसी तांत्रिक प्रयोगों द्वारा आदि शक्ति के प्रभाव से हो जाता है, और जब तक यह दोष दूर नहीं हो जाता तब तक वह कितना ही प्रयास करे, उसके कार्य सफल नहीं हो पाते, उसके देखते-देखते उसके साथ वाले जीवन की दौड़ में आगे निकल जाते हैं और वह एक पशु की भांति अपने ही स्थान पर बंधा छटपटाता रहता है।



उत्कीलन क्या है?

क्या कीलन दोष का कोई उपाय है? क्या कीलन दोष ऐसा कलंक है, जिसे उतारा ही नहीं जा सकता? क्या साधक अपने भीतर अपनी शक्ति का उस स्तर तक विकास नहीं कर सकता, जिससे कीलन दोष दूर हो जाय?

ठीक यही प्रश्न तंत्र के आदि रचियता भगवान शिव से पार्वती ने किया था कि – हे प्रभु! आप तो भक्तों पर परम कृपा करने वाले हैं, आगम-निगम बीज मंत्रों के स्वरूप हैं, भक्ति मुक्ति के प्रदाता हैं फिर आपने मन्त्रों का कीलन क्यों किया? क्यों सांसारिक प्राणियों को मंत्र सिद्धि में पूर्णता प्राप्त नहीं होती?

देवों के देव महादेव ने कहा, कि जैसे-जैसे युग बदलेगा वैसे-वैसे लोगों में भक्ति-प्रीति कम होगी, राग, द्वेष, ईर्ष्या, विरोध, शत्रुता में वृद्धि होगी, एक प्राणी दूसरे प्राणी को देखकर प्रसन्न नहीं होगा, अपितु ईर्ष्या करेगा और इस ईर्ष्या के वशीभूत अपनी शक्तियों का उपयोग बुरे कार्यों में करेगा, यदि ऐसे गलत व्यक्तियों के हाथ में मंत्र सिद्धि, तंत्र सिद्धि लग गई तो वे संसार में विपत्ति की स्थिति उत्पन्न कर देंगे।



उत्कीलन महाविद्या

मनुष्य जीवन में ऐसा ही हो रहा है, कुछ स्वार्थी व्यक्तियों या स्वयं की कुछ गलतियों के कारण भी जीवन कीलित हो जाता है और उसके द्वारा किये गये कार्यों का उसे पूर्ण फल नहीं मिल पा रहा है। जीवन में उसे किसी भी प्रकार के कीलन को समाप्त करने हेतु ही ब्लॉग में विशेष ‘ तंत्र उत्कीलन त्रिपुरा साधना ’ दिया जा रहा है। जिससे कीलन दोष शांत करने में सफलता प्राप्त होगी, वह अपने ऊपर अन्य व्यक्तियों द्वारा किये गये तंत्र दूर कर सकेगा, अपने तंत्र ज्ञान को अपनी रक्षा के लिए प्रयोग कर सकेगा।



साधना विधान

यह साधना विशेष रूप से सूर्यग्रहण के समय और होली के रात्रि को 10 बजे के पश्चात् सम्पन्न करें। इस साधना हेतु आवश्यक है –एक नारियल, लाल सुपारी और काली हकीक माला आवश्यक है जो आपको पंसारी के दुकान में आसानी से मिल जाएगा । नारियल के सामने जब साधक मंत्र जप करता है तो कैसा ही कीलन प्रयोग हुआ हो वह स्वतः ही समाप्त हो जाता है क्युके नारियल स्वयं त्रिनेत्र से पूर्ण फल है,जिसे श्री फल भी कहा जाता है।

अपने सामने एक बाजोट पर लाल कपड़ा बिछा दें तथा उस लाल कपड़े पर कुंकुम से रंगे चावल और अष्टगन्ध फैला दें, उस पर एक पंक्ति में तिल तथा सरसों बराबर मात्रा में मिलाकर उनकी 11 ढेरियां बनाएं तथा प्रत्येक ढेरी पर एक-एक ‘ लाल सुपारी’ रख दें, अब इनके सामने ही ‘ नारियल ’ एक ताम्र पात्र में स्थापित कर दें। अब सर्वप्रथम विनियोग करें –


विनियोग

ॐ अस्य श्री सर्वयंत्रमंत्राणां उत्कीलनमंत्र स्तोत्रस्य मूल प्रकृतिर्ॠषिर्जगतीच्छन्दः, निरंजनी देवता क्लीं बीजं ह्रीं शक्तिः, ह्रः लौं कीलकं सप्तकोटिमन्त्रयन्त्रतन्त्रकी
लकानां संजीवन सिद्धर्थे जपे विनियोगः।


विनियोग के पश्चात् त्रिपुर भैरवी का ध्यान निम्न मंत्र का जप करते हुए करें –

उद्यद्भानु सहस्र कांति मरुणा क्षौमां शिरोमालिकाम् रक्तालिप्त पयोधरां जपपटीं विद्यामभीतिं वरम् हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्र विलसद् वक्त्रार विन्द श्रियम् देवी बद्ध हिमांशु रत्न मुकुटां वन्दे – रमन्दस्तिाम्।

भगवती त्रिपुर भैरवी की देह कान्ति उदीयमान सहस्र सूर्यों की कांति के समान है। वे रक्त वर्ण के रेशमी वस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके गले में मुण्ड माला तथा दोनों स्तन रक्त से लिप्त हैं। वे अपने हाथों में जप-माला, पुस्तक, अभय मुद्रा तथा वर मुद्रा धारण किए हुए हैं। उनके ललाट पर चन्द्रमा की कला शोभायमान है। रक्त कमल जैसी शोभा वाले उनके तीन नेत्र हैं। आपके मस्तक पर रत्न जटित मुकुट है तथा मुख पर मन्द मुस्कान है। आपको मेरा प्रणाम स्वीकार हो।



अपने दाहिने हाथ से नारियल को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्रों का उच्चारण करें –

ॐ मण्डूकाय नमः। ॐ कालाग्निरुद्राय नमः। ॐ मूलप्रकृत्यै नमः। ॐ आधारशक्त्यै नमः। ॐ कूर्माय नमः। ॐ अनन्ताय नमः। ॐ वाराहाय नमः। ॐ पृथिव्यै नमः। ॐ सुधाम्बुधये नमः। ॐ सर्वसागराय नमः। ॐ मणिद्विषाय नमः। ॐ चिन्तामणि गृहाय नमः। ॐ श्मशानाय नमः। ॐ पारिजाताय नमः। ॐ रत्न वेदिकायै नमः। ॐ मणिपीठाय नमः। ॐ नानामुनिभ्यो नमः। ॐ शिवेभ्यो नमः। ॐ शिवमुण्डेभ्यो नमः। ॐ बहुमांसास्थिमोदमान शिवोभ्यो नमः। ॐ धर्माय नमः। ॐ ज्ञानाय नमः। ॐ वैराज्ञाय नमः। ॐ ऐश्वर्याय नमः। ॐ अधर्माय नमः। ॐ अज्ञानाय नमः। ॐ अवराज्ञानाय नमः। ॐ अनैश्वर्याय नमः। ॐ आनन्दकन्दाय नमः। ॐ सर्वतत्वात्मपद्माय नमः। ॐ प्रकृतिमयपत्रेभ्यो नमः। ॐ विकारमयकेसरेभ्यो नमः। ॐ पंचाशद्वर्णढ़यकर्णिकायै नमः। ॐ अर्कमण्डलाय नमः। ॐ सोममण्डलाय नमः। ॐ महीमण्डलाय नमः। ॐ सत्वाय नमः। ॐ रजसे नमः। ॐ तमसे नमः। ॐ आत्मने नमः। ॐ अन्तरात्मने नमः। ॐ परमात्मने नमः। ॐ ज्ञानात्मने नमः। ॐ क्रियायै नमः। ॐ आनन्दायै नमः। ॐ ऐं पारयै नमः। ॐ परापरायै नमः। ॐ निस्धानाय नमः। ॐ महारुद्र भैरवाय नमः॥

मंत्र उच्चारण के पश्चात् मानसिक रूप से भगवान सदाशिव का ध्यान करें तथा भगवान सदाशिव से तंत्र बाधाओं से मुक्त कराने का निवेदन करें। भगवान शिव के ध्यान के पश्चात् साधक ‘ काली हकीक माला ’ से निम्न भैरवी उत्कीलन मंत्र की एक माला जप करें।


मंत्र
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं षट् पंचाक्षराणाम उत्कीलय उत्कीलय स्वाहा। ॐ जूं सर्वमन्त्र यन्त्र तन्त्राणां संजीवनं कुरु कुुरु स्वाहा॥
Om hreem hreem hreem shat panchaaksharaanaam utkilay utkilay swaahaa,om jum sarvmantra yantra tantranaam sanjivanam kuru kuru swaahaa


भैरवी उत्कीलन मंत्र पश्चात् साधक निम्न त्रिपुर भैरवी मंत्र की 31 माला मंत्र जप करें –

मंत्र
॥ह्सैं ह्सकरीं ह्सैं॥
Hasaim hasakareem hasaim


मंत्र जप की पूर्णता पर शक्ति स्वरूपा त्रिपुरा से तंत्र बाधाओं की समाप्ति की प्रार्थना करें तथा समस्त साधना सामग्री को लाल कपड़े में बांधकर होली की अग्नि में विसर्जित कर दें।

अन्य किसी मुहूर्त पर साधना प्रारम्भ करने पर सात दिन तक नित्य साधना सम्पन्न करने के पश्चात् आठवें दिन समस्त साधना सामग्री को किसी निर्जन स्थान पर जमीन में गाड़ दें। यह विशेष तांत्रोक्त प्रयोग सूर्यग्रहण और होली पर करे तो निच्छित ही सफलता मिलते हुए देखा गया है ।

आदेश......

3 Feb 2018

महाशिवरात्रि साधना



ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त करने का मंत्रतात्मक-तंत्रात्मक मार्ग भगवान शिव का ग्रहाधिपति स्वरूप चन्द्रमौलिश्वर मंत्र  साधना है । यह साधना आनेवाले महाशिवरात्रि के अवसर पर अवश्य ही संपन्न कर प्रत्यक्ष लाभ उठाने का प्रयास करे ।

भगवान् शिव अपने ‘चन्द्रमौलिश्वर स्वरूप’ द्वारा ग्रहों के दूषित प्रभावों से व्यक्ति को या साधक को छुटकारा दिलाते हैं, क्योंकि भगवान् चन्द्रमौलिश्वर देवाधिपति हैं, तंत्रेश्वर हैं, अतः समस्त मंत्र-तंत्र भी उनके अधीन हैं, ऐसे भगवान चन्द्रमौलिश्वर की साधना तो प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में एक बार अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए।

ग्रह का शाब्दिक अर्थ पकड़ लेना, कब्जे में कर लेना होता है। नवग्रह पृथ्वी-वासियों के लिए एक ब्रह्माण्डीय प्रभाव है और प्रत्येक मनुष्य नवग्रहों के प्रभाव से सन्तप्त या प्रसन्न होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य नवग्रहों के अधीन हैं। दुष्कर्म-सत्कर्म, पाप और पुण्य ग्रहों से ही संचालित होते हैं। ग्रहों के द्वारा त्रस्त होकर मनुष्य भांति-भांति के उपाय करता है, पर परिणाम आधा-अधूरा ही मिलता है। फिर मार्ग क्या है जिसके द्वारा रूष्ट ग्रह मनाए जा सकें और उनके प्रतिकूल प्रभावों को समाप्त किया जा सके।

यों तो ग्रह किसी को नहीं छोड़ते चाहे वह गरीब हो या अमीर, या फिर देवता ही क्यों न हों। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं हमारे सामने, जिनसे यह ज्ञात होता है, कि ग्रहों का व्यक्ति के जीवन पर कितना अधिक प्रभाव पड़ता है ।भ गवान श्रीराम जी को भी शनि की दशा से ग्रस्त होकर महल को छोड़कर वन में चौदह साल तक दर-दर भटकना पड़ा, यह बात ओर है कि वाल्मीकि ने भक्ति भाव पूर्वक उस वनवास को कुछ और नाम दे दिया, किन्तु सत्य यही है कि राम को भी जीवन में ग्रहों के दूषित प्रभाव के कारण चौदह साल तक जंगलों में रहकर जीवनयापन करना पड़ा।

महात्मा बुद्ध को भी मंगल एवं राहु के दूषित प्रभाव से ग्रसित होकर, अपना राजपाट छोड़कर उन सबसे संन्यास लेना पड़ा और राजा हरिश्चन्द्र को भी शनि की साढ़े साती के प्रभाव के कारण अपना राज्य त्याग कर श्मशान में रहना पड़ा और यही नहीं, अपितु उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब वह अपने पुत्र की लाश पर कफन भी न डाल सके, इस प्रकार की अनेकों ऐसी घटनाएं हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि इतने बड़े-बड़े महापुरुष भी ग्रहों के दूषित प्रभावों से बच नहीं पाये, भले ही इन घटनाओं को समाज ने कोई और (नाम) रूप दे दिया हो, किन्तु सत्य यही है, कि ग्रहों के प्रभाव से ही उनकी यह गति हुई।

ग्रहों के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए अवश्य ही ऐसी सत्ता के पास जाना पड़ेगा जिनके अधीन सभी ग्रह और नक्षत्र हैं, पर इससे पहले यह समझते हैं कि शास्त्र इसके विषय में क्या कहते हैं?

देवाधीनम् जगत
सर्वम् मंत्राधीनाश्च देवता

देवताओं के अधीन समस्त जगत है, पर मंत्र के अधीन देवता हैं अर्थात् मंत्र जप द्वारा देवताओं को तुष्ट किया जा सकता है।
नवग्रहों को भी देवताओं का दर्जा दिया गया है। सूर्य जगत की आत्मा हैं, वे सौर मंडल के मुखिया हैं। चंद्रमा मन को शीतलता प्रदान करने वाले देव हैं। मंगल युद्ध (पराक्रम) के देवता हैं। बुध को व्यापार का देवता माना गया है। बृहस्पति देवताओं और शुक्र दानवों के गुरु हैं। गुरु का स्थान तो सर्वोपरि है। शनि एक अर्ध देवता हैं। राहु उत्तर चंद्र आसंधि के देवता हैं और केतु दक्षिण चन्द्र आसंधि के देवता हैं।

ग्रह देवता स्वरूप हैं और सैद्धान्तिक रूप से मंत्रों के अधीन हैं। इसलिए ज्योतिषी आपकी जन्मपत्री का अध्ययन करके आपको ग्रहों की विपरीत दशा होने पर मंत्र जप की सलाह देते हैं और पंडित को यह कार्य देकर आप निश्चिंत हो जाते हैं। पर ग्रह दशा तो दूर नहीं होती है।

ज्योतिष के अनुसार प्रमुख नौ ग्रह होते हैं – सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु। यों तो आकाश में सैकड़ों ग्रह हैं, किन्तु ज्योतिष विज्ञान में मुख्य ग्रह नौ ही माने जाते हैं, जिनका प्रभाव जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे हमारे ऊपर पड़ता ही रहता है और इन्हीं के प्रभाव से हमें जीवन में सफलता-असफलता मिलती रहती है। हर ग्रह का मानव जीवन पर अपना अलग-अलग प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य को कई समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है। इन नौ ग्रहों में भी पांच ग्रह ऐसे हैं, जिनका प्रभाव प्रायः व्यक्ति पर मुख्य रूप से देखने को मिलता ही है।

1. सूर्य – जन्मपत्रिका में यदि सूर्य की स्थिति व्यक्ति को विपरीत फल देने वाली हो, तो उसे समाज में बदनामी, विश्वासघात एवं कष्टप्रदायक जीवन बिताते हुए असफलताओं का शिकार होना पड़ता है।

2. मंगल – यदि मंगल की स्थिति जन्मपत्री में अच्छी न हो, तो व्यक्ति का जीवन कई प्रकार की उलझनों से ग्रस्त रहता है, जिनसे उसे जीवन भर तनाव बना रहता है, यह ग्रह व्यक्ति को जेल की यात्रा, चोर या हत्यारा आदि भी बना देता है।

3. शुक्र – स्वप्न दोष, विवाह-बाधा आदि इस ग्रह बाधा के कारण ही होते हैं।

4. शनि – जन्मपत्रिका में शनि की अच्छी स्थिति में ना होती व्यक्ति को एक-एक पैसे का मोहताज बना देती है, जिसके कारण व्यक्ति का जीवन दरिद्रता और गरीबी में बीतने पर वह शारीरिक, आर्थिक और मानसिक तनावों से ग्रस्त होकर, मृत्यु तक को प्राप्त हो जाता है। इसके अलावा ऐक्सिडेन्ट, नौकरी छिन जाना, कोर्ट-कचहरी, डॉक्टरों आदि के चक्कर लगना आदि ये सब परेशानियां इस ग्रह बाधा के कारण ही मानव-मात्र को झेलनी पड़ती हैं।

5. राहु – इस ग्रह-दोष के कारण गृह कलह, आपसी मन मुटाव आदि अनेक प्रकार की समस्याओं से मनुष्य हर पल घिरा रहता है।


इस प्रकार अन्य ग्रह भी अपना दूषित प्रभाव मानव-जीवन पर डालते रहते हैं। जिनके चंगुल से बच निकलना मानव के लिए एक दुष्कर कार्य प्रतीत होता है। कई व्यक्ति ढोंगी पण्डित-पुरोहितों के चंगुल में फंसकर उपरोक्त समस्याओं के निवारण हेतु उनके द्वारा बताए गये उपायों को आजमाते हैं, परन्तु उनसे उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाता, अपने कार्यों की सिद्धि एवं सफलता के लिए वे उनसे कई प्रकार के छोटे-मोटे अनुष्ठान प्रयोग भी करवाते हैं, किन्तु फिर भी उनका अनुकूल फल उन्हें प्राप्त नहीं होता, तब उनका देवताओं आदि पर से विश्वास उठने लगता है, क्योंकि वे उन समस्याओं एवं परेशानियों का कारण नहीं जान पाते, जबकि इन आपदाओं-विपदाओं का मूल कारण ‘ ग्रह-बाधा ’ ही है।



कैसे करें ग्रहों के दुष्प्रभाव का पूर्ण शमन?

देवता मंत्रों के अधीन हैं और नवग्रह देवता स्वरूप हैं फिर भी ग्रह शांति मंत्र के लिए किया गया जप सफल क्यों नहीं होता। यही सोच रहे हैं ना आप? चलिए समझते हैं इसे-

इत्थं रूपेण कीलेन
महादेवेन कीलितम्

दुर्गा सप्तशती के कीलक अध्याय में स्पष्टतः वर्णित है कि महादेव ने मंत्रों को कीलित कर दिया। महादेव ने मंत्रों पर ताला लगा दिया है जिससे ईर्ष्या और लोभवश इन मंत्रों का दुरुपयोग नहीं किया जा सके, इस कारण मंत्र कीलित हैं।

जैसे हलवाई की दुकान पर आप विभिन्न प्रकार की मिठाईयां देखते हैं, उनकी खुशबू सूंघते हैं और क्षणिक तृप्ति का अहसास भी होता है, पर उससे आपकी भूख तो नहीं मिटेगी, क्षुधा तो तृप्त नहीं होगी क्योंकि मोल देकर आपने वह मिष्ठान खाया नहीं।

इसी तरह नवग्रह शांति हेतु पंडितों द्वारा किया मंत्र जाप क्षणिक संतोष दे सकता है, एक दिवास्वप्न की तरह, उनसे ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त नहीं होगी क्योंकि मंत्र कीलित हैं और उनका जप कोई और आपके लिए कर रहा है। जब आपको भोजन खाना है तो उसे पकाना भी पड़ेगा और खाना भी आपको ही पड़ेगा।



मंत्रों का निष्कीलन कैसे होगा?

ये विद्या किसे आती है? शास्त्रानुसार यह विद्या सिर्फ गुरु को आती है। गुरु आपकी योग्यता को भांप कर आपको उसके अनुरूप मंत्र देते हैं और साथ ही शक्तिपात द्वारा आपको सार्मथ्यवान बनाते हैं कि आप सफलता पूर्वक मंत्र जप करें और आपके मनोरथ दुष्ट ग्रहों के दुष्प्रभाव से अछुते रहें। यही कारण है कि, गुरु आशीर्वाद देते हुए कहते हैं –

मंत्रार्था सफला सन्तुः
सफला सन्तुः मनोरथाः

जिस कार्य हेतु आप मंत्र जप कर रहे हैं, वह सफल हो आपके मनोरथ पूर्ण हों और जब गुरु आशीर्वाद देते हैं, तो उसके उपरांत कार्य सिद्धि अवश्यम्भावी है।

तात्त्पर्य है कि नवग्रह शान्ति हेतु निष्कीलित मंत्र गुरु आज्ञा के पश्चात् जप करें। पर ग्रह तो नव (नौ) हैं तो मंत्र भी निश्चित रूप से नौ तो होंगे ही फिर ग्रहों की दशा भी तो परिवर्तित होती रहती है, तो समयानुरूप मंत्र जप भी भिन्न -भिन्न होंगे।

एक साधे सब सधे

पर, अगर आप उस एक साधना की तलाश में हैं जो नवग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों का आमूल नाश कर सके तब आपके लिए चंद्रमौलिश्वर साधना है।

मंत्रों को कीलित किया है शिव ने, सृष्टि के केन्द्र में शिव स्थित हैं, सभी देवों से श्रेष्ठ शिव हैं, महादेव रूप में। चन्द्रमा को जब दक्ष ने क्षय का श्राप दिया तो उसे अपनी जटाओं में स्थापित कर शिव ने पुनः जीवन दिया। इसी कारण से अमावस्या के बाद प्रतिपदा से हर दिन चन्द्रमा बढ़ता है और पूर्णिमा को अपने पूर्ण यौवन को प्राप्त होता है।

शिव आदि गुरु हैं। पार ब्रह्म परमेश्वर हैं और अगर बाधाएं ग्रह-दोष के कारण जीवन में आ रही हैं, तो उनका पूर्ण निवारण सिवाय शिव के किसी के पास नहीं है। शिव का चंद्रमौलिश्वर स्वरूप बाधाओं का पूर्ण संहार कर देगा।

चन्द्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गंगाधरे शंकरे,
सर्पैभूषित कण्ठकर्णविवरे नेत्रोत्थ वैश्वानरे।
दन्तित्वक् कृत सुन्दराम्बर धरे त्रैलोक्य सारे हरे,
मोक्षार्थ कुरुचित्तवृत्तिमचलाम् अन्यैस्तु किं कर्मभिः॥

अर्थात् – ‘सिर पर अर्धचन्द्र को धारण किए हुए भगवान् चन्द्रमौलिश्वर, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, जिनके मस्तक से गंगा प्रवाहित हो रही है, कण्ठहार के रूप में सर्प को धारण किए हुए हैं, जिनके तृतीय नेत्र से वैश्वानर अग्नि निकल रही है, हस्ति चर्म को सुन्दर वस्त्र के रूप में धारण किए हुए तीनों लोकों में अद्वितीय भगवान् शंकर, जो अपने इस रूप-गुण के कारण ‘ चन्द्रमौलिश्वर ’ कहे जाते हैं, वे मेरे मन और बुद्धि को मोक्ष मार्ग की ओर प्रेरित करते हुए मेरे समस्त ग्रह जन्य दोषों को दूर करें।’
आप स्वयं सोचिए जब आपके बच्चे को नजर लग जाती है तब आप लाल मिर्च अग्नि में जलाकर, उसकी नजर उतारते हैं, पर जब बाधा ग्रहों के दूषित प्रभाव की हो, तब अग्नि भी तो प्रचण्ड होनी चाहिए और शिव के त्रिनेत्र की ज्वाला से विकराल कोई अग्नि नहीं है। उनके एक दृष्टिपात से विपरीत ग्रहों के दुष्प्रभाव भस्म हो जाएंगे।

ग्रहों के दुष्प्रभाव को समाप्त करने की ही साधना है – 

चन्द्रमौलिश्वर साधना। इस साधना के बल पर वह व्यक्ति अपने जीवन में समस्त नौ ग्रहों के दूषित प्रभावों से मुक्ति प्राप्त कर उन ग्रहों को अपने अनुकूल बनाने में सफल हो पाता है, और तब उसे जीवन में कभी भी किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं भोगना पड़ता।

ग्रहों की दशा यदि सही रहे, तो व्यक्ति के जीवन में उन्नति के स्रोत हमेशा के लिए खुले रहते हैं, और वह कामयाबी की मंजिल की ओर बढ़ते हुए अपने जीवन में पूर्ण सुखी एवं सम्पन्न हो जाता है, क्योंकि इस साधना-शक्ति के द्वारा व्यक्ति/साधक एक बार में ही अपनी समस्त परेशानियों एवं बाधाओं से मुक्ति पा लेता है।

सामग्री – पाँच मुखी रुद्राक्ष, रुद्राक्ष माला।
दिवस – महाशिवरात्रि या किसी सोमवार के दिन।
समय – रात्रि 8 बजे के बाद से 11.30 तक।


साधना-विधान

रात्रिकालीन इस साधना में बैठने से पहले साधक स्नानादि करके पूर्णतया शुद्ध होकर, पीली धोती धारण कर अपने सामने किसी लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछा दें और फिर आसन पर शांतचित्त होकर बैठ जाएं, इसके पश्चात् तीन बार ‘ ॐ ’ की ध्वनि का उच्चारण करने के बाद 5 मिनट तक गुरु का ध्यान करें और प्रार्थना करें कि मुझे समस्त परेशानियों से मुक्ति प्राप्त हो, ऐसा कहकर उनसे आशीर्वाद ग्रहण करें, जिन्हें गुरु ना हो वह साधक शिव जी का ही ध्यान करे तत्पश्चात् किसी प्लेट में कुंकुम से ‘ॐ’ लिखकर, उसमें ‘पाँच मुखी रुद्राक्ष ’ को स्थापित कर दें, फिर कुंकुम का तिलक करके उस पर ‘ ॐ चन्द्रमौलिश्वराय नमः ’ मंत्र बोलते हुए 11 बार थोड़े-थोड़े चावल चढ़ाएं, तथा 11 बार इसी मंत्र से काले तिल, काली सरसों, काली मिर्च अलग-अलग चढ़ाएं, और धूप या अगरबत्ती जलाकर सरसों या तिल के तेल का दीपक जलाएं, ध्यान रहे कि पूरे साधना काल में दीपक प्रज्वलित रहे।
फिर साधक मन ही मन शिव के ‘ चन्द्रमौलिश्वर स्वरूप ’ को नमस्कार कर ‘ रुद्राक्ष माला ’ से निम्न मंत्र का 9 माला मंत्र जप करें।


मंत्र

॥ॐ शं चं चन्द्रमौलिश्वराय नमः॥
Om sham cham chandramoulishwaraay namah


जप-समाप्ति के बाद शिव-आरती करें, फिर ‘ पाँच मुखी रुद्राक्ष ’ पर अर्पित सामग्रियों को रात्रि के समय पूरे घर व दुकान तथा जो भी अपके आवासीय या व्यापारिक संस्थान हैं, सब जगह छिड़क दें, जिससे दुष्ट ग्रहों का प्रभाव दूर हो सके तथा भविष्य में भी उन ग्रह-दोषों का प्रभाव न हो, इसके पश्चात् रुद्राक्ष तथा माला को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें।

यह साधना पूर्ण सफलतादायक है, जिसे पूर्ण श्रद्धा और लगन से करने की आवश्यकता है, तभी साधक को इससे निश्चित लाभ की प्राप्ति संभव है।



आदेश......
।।ॐ नमः शिवाय ।।